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नवरात्र के दूसरे दिन शाकंभरी देवी दर्शन में उमड़े भक्त - Sharadiya Navratri 2024

मान्यता है कि उत्तर भारत की नौ देवियों की प्रसिद्ध यात्रा मां शाकंभरी देवी के दर्शन बिना पूर्ण नहीं होती.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

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सहारनपुर शाकंभरी देवी मंदिर (Etv Bharat)

सहारनपुर: नवरात्रे आते ही पूरे भारत वर्ष में मां दुर्गा के मंदिरो में श्रदालुओं का तांता लगना शुरू हो गया है. चारो ओर मां दुर्गा के नाम की धूम मची हुई है. ऐसा ही नजारा सहारनपुर के सिद्ध पीठ मां शाकुम्भरी देवी के मंदिर में देखा जा रहा है. जानकारों के मुताबिक शिवालिक की छोटी पहाड़ियों के बीच सिध्दपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर को ब्रह्मपुराण में सिद्धपीठ कहा गया है. यह क्षेत्र भगवती शताक्षी और पंचकोसी सिद्धपीठ भी कहा जाता है. बताया जाता है, कि भगवती सती का शीश इसी क्षेत्र में गिरा था. इसलिए इस मंदिर की गिनती देवी के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में होती है. मान्यता यह भी है कि उत्तर भारत की नौ देवियों की प्रसिद्ध यात्रा मां शाकंभरी देवी के दर्शन बिना पूर्ण नहीं होती

सहारनपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दुरी पर हिमालय पुत्र शिवालिक की छोटी पहाडियो के बीच बसा यह मंदिर मां शाकुम्भरी देवी का है. मान्यता है कि उतर भारत में 9 सिद्दपीठो में मां शाकुम्भरी देवी के इस मंदिर का दूसरा स्थान है. मां शाकुम्भरी को शाक वाली माता के नाम से भी जाना जाता है.
कहते है, कि मां शाकुम्बरी देवी के दर्शनों को करने के बाद श्रद्धालु सभी मनोकामनाओं से परिपूर्ण हो जाता है.


इसे भी पढ़े-नवरात्र 2024 में दर्शन कीजिए यूपी के 9 बड़े शक्तिपीठ; पूरब से पश्चिम तक बरसती है माता रानी की कृपा - Navratri 2024

शकंराचार्य आश्रम के महंत सहजानंद आचार्य जी बताते हैं, कि देवी पुराण, शिव पुराण और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश में महा दैत्य रुरु का दुर्गम नाम का पुत्र हुआ. दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर चारों वेदों पर अधिकार कर लिया. ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग दिया. चारों ओर हाहाकार मच गया. ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने के कारण यज्ञ अनुष्ठान बंद हो गए और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी. जिसके कारण भयंकर अकाल पड़ गया. किसी प्राणी को पानी नहीं मिला, वनस्पति भी पानी के अभाव में सूख गई. सभी जीव भूख-प्यास से मरने लगे. दुर्गमासुर का देवताओं से भयंकर युद्ध हुआ. जिसमें देवता पराजित हुए और दुर्गमासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं में छिप गए. देवताओं ने मां जगदंबा की स्तुति की, जिसके बाद मां जगदंबा प्रकट हुईं.

संसार की दुर्दशा देखकर मां जगदंबा का हृदय द्रवित हो गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. मां के शरीर पर 100 आंखें प्रकट हुईं. शत नैना देवी ने हमें आशीर्वाद दिया और संसार में वर्षा हुई, जिससे नदियां और तालाब जल से भर गए. श्रीमहंत सहजानंद ब्रह्मचारी बताते, हैं कि उस समय देवताओं ने मां शताक्षी देवी के नाम से पूजा की. जब मां ने पहाड़ की ओर देखा तो सबसे पहले एक कंद निकला जिसे सरल कहते हैं. इस दिव्य रूप में मां शाकंभरी देवी के नाम से पूजी गईं.

नवरात्र में शक्ति पीठ अलोप शंकरी मंदिर में जुटी भीड़: संगम नगरी प्रयागराज के शक्तिपीठ मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ी है. देवी के 52 शक्तिपीठों मेंं से एक शक्ति पीठ प्रयागराज का अलोप शंकरी मंदिर भी है. जहां पर नवरात्र के पहले दिन देवी मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना की जा रही है. मान्यता है, कि अलोप शंकरी मंदिर में जगत जननी के हाथ की छोटी उंगली गिरी थी. लेकिन, यहां पर उस स्थान पर देवी के अंग का स्वरूप नहीं दिखता है, बल्कि एक कुंड है. उसी कुंड और उसके ऊपर लगे पालने की पूजा की जाती है.मंदिर में लाल चुनरी में लिपटे एक पालने का भक्त दर्शन और पूजन करते है. श्रद्धालु मंदिर के कुंड में जल चढ़ाते हैं और पालने पर माला फूल प्रसाद चढ़ाते हैं. उसके बाद कुंड की परिक्रमा कर मां का आशीर्वाद लेते हैं.नवरात्र में इस मंदिर यहां काफी भीड़ होती है. मां का दर्शन पाने के लिए लोगों को घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती है.


यह भी पढ़े-शुभ नवरात्र; राशि अनुसार 9 दिन करें मंत्र का जाप; खास विधि से करें पूजन, बनी रहेगी मां की कृपा - Navratri 2024

सहारनपुर: नवरात्रे आते ही पूरे भारत वर्ष में मां दुर्गा के मंदिरो में श्रदालुओं का तांता लगना शुरू हो गया है. चारो ओर मां दुर्गा के नाम की धूम मची हुई है. ऐसा ही नजारा सहारनपुर के सिद्ध पीठ मां शाकुम्भरी देवी के मंदिर में देखा जा रहा है. जानकारों के मुताबिक शिवालिक की छोटी पहाड़ियों के बीच सिध्दपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर को ब्रह्मपुराण में सिद्धपीठ कहा गया है. यह क्षेत्र भगवती शताक्षी और पंचकोसी सिद्धपीठ भी कहा जाता है. बताया जाता है, कि भगवती सती का शीश इसी क्षेत्र में गिरा था. इसलिए इस मंदिर की गिनती देवी के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में होती है. मान्यता यह भी है कि उत्तर भारत की नौ देवियों की प्रसिद्ध यात्रा मां शाकंभरी देवी के दर्शन बिना पूर्ण नहीं होती

सहारनपुर मुख्यालय से 50 किलोमीटर की दुरी पर हिमालय पुत्र शिवालिक की छोटी पहाडियो के बीच बसा यह मंदिर मां शाकुम्भरी देवी का है. मान्यता है कि उतर भारत में 9 सिद्दपीठो में मां शाकुम्भरी देवी के इस मंदिर का दूसरा स्थान है. मां शाकुम्भरी को शाक वाली माता के नाम से भी जाना जाता है.
कहते है, कि मां शाकुम्बरी देवी के दर्शनों को करने के बाद श्रद्धालु सभी मनोकामनाओं से परिपूर्ण हो जाता है.


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शकंराचार्य आश्रम के महंत सहजानंद आचार्य जी बताते हैं, कि देवी पुराण, शिव पुराण और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश में महा दैत्य रुरु का दुर्गम नाम का पुत्र हुआ. दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर चारों वेदों पर अधिकार कर लिया. ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग दिया. चारों ओर हाहाकार मच गया. ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने के कारण यज्ञ अनुष्ठान बंद हो गए और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी. जिसके कारण भयंकर अकाल पड़ गया. किसी प्राणी को पानी नहीं मिला, वनस्पति भी पानी के अभाव में सूख गई. सभी जीव भूख-प्यास से मरने लगे. दुर्गमासुर का देवताओं से भयंकर युद्ध हुआ. जिसमें देवता पराजित हुए और दुर्गमासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं में छिप गए. देवताओं ने मां जगदंबा की स्तुति की, जिसके बाद मां जगदंबा प्रकट हुईं.

संसार की दुर्दशा देखकर मां जगदंबा का हृदय द्रवित हो गया और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. मां के शरीर पर 100 आंखें प्रकट हुईं. शत नैना देवी ने हमें आशीर्वाद दिया और संसार में वर्षा हुई, जिससे नदियां और तालाब जल से भर गए. श्रीमहंत सहजानंद ब्रह्मचारी बताते, हैं कि उस समय देवताओं ने मां शताक्षी देवी के नाम से पूजा की. जब मां ने पहाड़ की ओर देखा तो सबसे पहले एक कंद निकला जिसे सरल कहते हैं. इस दिव्य रूप में मां शाकंभरी देवी के नाम से पूजी गईं.

नवरात्र में शक्ति पीठ अलोप शंकरी मंदिर में जुटी भीड़: संगम नगरी प्रयागराज के शक्तिपीठ मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ी है. देवी के 52 शक्तिपीठों मेंं से एक शक्ति पीठ प्रयागराज का अलोप शंकरी मंदिर भी है. जहां पर नवरात्र के पहले दिन देवी मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना की जा रही है. मान्यता है, कि अलोप शंकरी मंदिर में जगत जननी के हाथ की छोटी उंगली गिरी थी. लेकिन, यहां पर उस स्थान पर देवी के अंग का स्वरूप नहीं दिखता है, बल्कि एक कुंड है. उसी कुंड और उसके ऊपर लगे पालने की पूजा की जाती है.मंदिर में लाल चुनरी में लिपटे एक पालने का भक्त दर्शन और पूजन करते है. श्रद्धालु मंदिर के कुंड में जल चढ़ाते हैं और पालने पर माला फूल प्रसाद चढ़ाते हैं. उसके बाद कुंड की परिक्रमा कर मां का आशीर्वाद लेते हैं.नवरात्र में इस मंदिर यहां काफी भीड़ होती है. मां का दर्शन पाने के लिए लोगों को घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ती है.


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