जगदलपुर : बस्तर में पिछले 2 दशकों से शंकर पटेल निस्वार्थ भाव से आदिवासी बच्चों को खेलों के गुण सिखाने का काम कर रहे हैं. साल 2005 में लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में टाटा कंपनी का स्टील प्लांट शुरू होना था. इस निजी कंपनी में शंकर पटेल खेल प्रशिक्षक का काम करते थे. कंपनी ने उन्हें ग्रामीण इलाकों के बच्चों को खेल के गुर सिखाने के लिए नियुक्त किया था. बाद में प्रस्तावित प्लांट से कंपनी ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.साथ ही साथ कंपनी बोरिया बिस्तर बांध कर वापस चली गई. लेकिन बस्तर में खेल को बढ़ावा देने और यहां के लगाव ने शंकर पटेल को यहीं रोक लिया.
उम्र भी नहीं रोक सका जज्बा : 71 वर्षीय शंकर पटेल का जज्बा खेल के प्रति अब भी बरकरार है. यही कारण है की जिस उम्र में लोग घर में बैठ जाते हैं और परिजनों पर आश्रित हो जाते हैं. उस उम्र में भी शंकर पटेल ने खेल का मैदान नहीं छोड़ा. वे आज भी नियमित रूप से मैदान में पंहुच कर आदिवासी युवक युवतियों को एथेलेटिक्स, ऊंची कूद, लंबी कूद, गोला फेंक सहित अन्य खेलों की बारीकियां समझते हैं.
''2021 से फिटनेस के लिए शंकर पटेल सर के यहां ज्वाइन किया था. पटेल सर निशुल्क ट्रेनिंग देते हैं. परीक्षण केंद्र में एथेलेटिक्स, मैराथन, 100, 200, 500 मीटर, 1 किलोमीटर से 10 किलोमीटर के लिए प्रशिक्षण मिलता है.'' खगेश्वर कश्यप, खिलाड़ी
आदिवासी बच्चों को निशुल्क ट्रेनिंग : वहीं खिलाड़ी प्रमिला मंडावी ने बताया कि वो 10 किलोमीटर दूर गांव से रोज साइकिल चलाकर ट्रेनिंग लेने आती है. करीब 7-8 सालों से ट्रेनिंग ले रही हैं. कक्षा छठवीं से सर के साथ ट्रेनिंग कर रहीं हैं.
'' पटेल सर काफी अच्छे से सिखाते हैं. जिसके चलते नेशनल 5000 मीटर प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया था. इसके अलावा रोड रनिंग भी सिखाया जाता है. अभी तक 21 किलोमीटर और 10 किलोमीटर का दौड़ लगाया है. जिसमें भी पहला और दूसरा स्थान क्लब के युवाओं ने प्राप्त किया है.'' प्रमिला मंडावी, छात्रा
आदिवासी बच्चों को आगे बढ़ाना लक्ष्य : वहीं ट्रेनिंग देने वाले शंकर पटेल ने बताया कि पिछले 20 सालों से लोहंडीगुड़ा इलाके में बच्चों को एथेलेटिक्स, कबड्डी, खोखो और दौड़ जैसे खेलों की ट्रेनिंग दे रहे हैं. बच्चे नेशनल प्रतियोगिता में अपना जौहर दिखाते हैं. साथ ही बस्तर के आदिवासी बच्चों को पुलिस, सीआरपीएफ, अग्निवीर , नगर सैनिक और वन विभाग के जितने भी वैकेंसी निकलती है. उनमें भर्ती के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.
''गांव के करीब 5 से 7 युवाओं ने रेस में नेशनल खेला है. स्टेट लेवल में 100 से अधिक बच्चे खेल चुके हैं. उद्देश्य केवल यही है कि आदिवासी बच्चे देश सेवा में बढ़े. और अपना नाम रौशन करें. इसीलिए उन्हें निःशुल्क ट्रेनिंग दिया जाता है.''- शंकर पटेल, ट्रेनर
अपने जज्बे के जरिए उन्होंने अब तक हजारों बच्चों को खेल के गुर सिखाएं हैं. यही कारण है कि उनके ट्रेंड 150 से अधिक बच्चे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं. इतना ही नहीं उन्होंने बच्चों को रोजगार और देश प्रेम की दिशा भी दिखाई. शंकर पटेल से ट्रेनिंग पाकर 100 से अधिक बच्चे बस्तर फाइटर, एसटीएफ और थल सेना में नियुक्ति हो चुके हैं.