शहडोल (अखिलेश शुक्ला): मध्य प्रदेश में रबी सीजन में गेहूं की खेती बड़े प्रमुखता के साथ की जाती है, लेकिन शहडोल में रबी और खरीफ दोनों सीजनों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां पहले खरीफ सीजन में धान की खेती की जाती है, फिर इसके बाद रबी सीजन में गेहूं की खेती बड़े रकबे में की जाती है. शहडोल क्षेत्र में धान की खेती की जाती है और धान की फसल कटते-कटते लेट हो जाती है.
इस वजह से ज्यादातर किसानों को गेहूं की फसल की बुवाई करने में देरी होती है. ऐसे में अगर आप गेहूं के फसलों की बुवाई देरी से कर रहे हैं, तो परेशान ना हों. गेहूं की खेती के स्टाइल में थोड़ा सा बदलाव करके आप गेहूं की बंपर पैदावार कर सकते हैं.
गेहूं की पिछेती खेती
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीके प्रजापति बताते हैं कि "गेहूं की खेती में अगर आप पीछे हो गए हैं और आपके खेत गहरे हैं, जहां बहुत ज्यादा नमी थी, जुताई नहीं कर पाए हैं. ऐसे में अब अगर आपकी खेती योग्य जमीन हो गई है तो परेशान न हों. गेहूं की खेती के लिए पिछैती (लेट होने वाली बुवाई) किस्मों का चयन करके और खेती में कुछ बातों का बेसिक ध्यान रखके उतना ही उत्पादन हासिल कर सकते हैं."
पिछेती खेती के लिए गजब किस्म
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि "गेहूं की फसल बुवाई में अगर देरी हो गई है, तो हमें किस्म का उचित चयन करना चाहिए. जो गर्मी की सहनशील किस्में होती हैं. उनका चयन करना चाहिए, जैसे की एच आई 1544 है, उषा तेजस है, जिसे एच आई 8759 बोला जाता है, CG 1029 नाम की किस्म है. गेहूं की ये सभी किस्में जो हैं, शहडोल कृषि विभाग ने जिले के कई ब्लॉकों में उपलब्ध कराई है. जिले का जो नरसरहा बीज निगम है, जहां बीज उपलब्ध होता है. वहां से इन किस्मों की आसानी से खरीदी कर सकते हैं."
ऐसे करें बुवाई
इसके अलावा बुवाई करने के लिए सीड ड्रिल के माध्यम से बुवाई कर सकते हैं या फिर सुपर सीडर मशीन के माध्यम से अगर बुवाई कर सकते हैं. सुपर सीडर मशीन से खेत में डायरेक्ट बुवाई हो जाएगी. 15 दिन का समय बच जाएगा, क्योंकि अभी भी कृषकों के जो जमीन हैं वो गीली होंगी. जिनके खेत अभी सूखे होंगे, वो अभी जुताई करेंगे, खेत की तैयारी करेंगे, तो लगभग 15 दिन का समय लग जाएगा और देरी हो जाएगी. अगर किसान सुपर सीडर मशीन के माध्यम से गेहूं की बुवाई करते हैं, तो 14 से 15 दिन का समय बच जाएगा. खेत की तैयारी करने में और गेहूं की बुवाई भी आसानी से हो जाएगी.
खाद और पानी का रखें ख्याल
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि "गेहूं की बुवाई होने के बाद खाद का मृदा परीक्षण के आधार पर उपयोग करना है. बीज को निश्चित रूप से उपचारित करें, इसके लिए कई तरह की जैविक और रासायनिक दवाइयां आती हैं. जिससे उपचारित कर सकते हैं, उसके बाद बुवाई करें. बुवाई के तुरंत बाद खरपतवार नाशी डाल सकते हैं. खेत में नमी होना अति आवश्यक है."
फसल में लगाए इतनी बार पानी
बता दें कि जैसे ही अंकुरण उपरांत 21 से 25 दिन की फसल हो जाए, तो उसमें सिंचाई निश्चित रूप से कर दें. जिससे जड़ मूल का निर्माण समय पर होता है. गेहूं के फसल तैयार होने में करीब 4 से 5 बार पानी देना पड़ता है. फसल की दूसरी बार सिंचाई 40 से 45 दिन में, इसके बाद 60 से 65 दिन में और 80 से 50 दिन में फिर 100 से 110 दिन में पानी देना जरूरी होता है.
खेत की मिट्टी के अनुसार दें पानी
फसल में पानी देना इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास किस प्रकार की भूमि है. हल्की या भारी भूमि है, हल्की भूमि से संदर्भ रेतीली जमीन है, और भारी भूमि से संदर्भ काली मिट्टी है, क्योंकि काली मिट्टी में पानी लंबे समय तक टिका रहता है.
फसल को पाले से ऐसे बचाएं
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ठंड बढ़ी हुई है, तापमान गिर रहा है. ऐसे फसलों में पाला की समस्या भी देखने को मिल सकती है. फसल को पाला से बचाने के लिए रात्रि के समय खेत के मेड़ पर जो पुआल, सूखी खरपतवार है उसे जला कर दुआं कर दें. इसके अलावा आप हल्की-हल्की स्प्रिंकलर इरिगेशन से फसल की सिंचाई करते रहते हैं, तो आपके गेहूं की फसल पर पाला लगने की समस्या कम रहेगी.
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पत्तियों के पीलेपन से ऐसे फसल को बचाएं
कई बार तापमान कम होने की वजह से गेहूं की फसल में नीचे की पत्तियां पीली पड़ेंगे लगती है. इसका मुख्य कारण होता है कि जो उर्वरक डाले जाते हैं वो जीवाणु द्वारा नाइट्राइट से नाइट्रेट में कन्वर्ट होते है. पौधे को उर्वरक की उपलब्धता नाइट्रेट फॉर्म में होती है और सही तरीके से फसल में उर्वरक उपलब्ध नहीं होने की वजह से पीला होने की समस्या आती है. इस समस्या से बचने के लिए 8 से 10 ग्राम यूरिया को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें इससे फसल का पीलापन सुधर सकता है.