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पॉक्सो एक्ट का अपेक्षा अनुरूप पालन नहीं होने पर जिला जज ने जताई चिंता, कहा-पीड़ित बच्चों के जीवन में बदलाव लाने का लें प्रण

Seminar on POCSO Act in Dumka.पॉक्सो एक्ट के अनुपालन को लेकर दुमका में सेमिनार का आयोजन किया गया. जिसमें डिस्ट्रिक्ट जज ने अपेक्षा के अनुरूप पॉक्सो एक्ट का अनुपालन नहीं होने पर चिंता जताई और मौजूद पुलिस पदाधिकारियों को कई निर्देश दिए.

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Seminar On POCSO Act In Dumka
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 30, 2024, 2:17 PM IST

दुमकाः बच्चों से हो रहे लैगिंक अपराध रोकथाम को लेकर जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में पुलिस अधीक्षक के सभागार भवन में सोमवार को पॉक्सो एक्ट के असरदार अनुपालन पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया. जिसमें न्यायपालिका, पुलिस समेत बाल कल्याण समिति के सदस्य भी उपस्थित रहे. जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ने किया सेमिनार का उद्घाटनः इस सेमिनार का उदघाटन जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रथम सह पोक्सो विशेष न्यायालय के जज रमेश चंद्र ने किया. उनके साथ डालसा सचिव उत्तम सागर राणा, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी विश्वनाथ भगत, एसपी पीताम्बर सिंह खेरवार, पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) विजय कुमार, सहित पुलिस के कई पदाधिकारी मौजूद थे.

पॉक्सो एक्ट के अनुपालन में बरतें संवेदनशीलताः इस मौके पर जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रथम सह पॉक्सो विशेष न्यायालय के जज रमेश चंद्रा ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के बनने के 12 साल के बाद यह परिचर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि अपेक्षा के अनुरूप इस एक्ट का अनुपालन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि दरअसल गरीबी ही नहीं, बल्कि मनौवैज्ञानिक पहलु भी बालकों के साथ लैंगिक अपराध का प्रमुख कारण है. सभी प्रण लें कि वह बच्चों के जीवन में बदलाव लाएंगे और अपनी-अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे, दूसरों पर नहीं थोपेंगे. उन्होंने कहा कि पीड़ित को मुआवजा देने या कस्तूरबा विद्यालय में नामांकन से उसका जीवन नहीं चलनेवाला है, बल्कि उसे पूरे तरह से रिस्टोर करने की जरूरत है.

एसपी ने थाना प्रभारियों को दिए आवश्यक दिशा निर्देशः वहीं कार्यशाला में दुमका एसपी पीतांबर सिंह खेरवार ने कहा कि घटना अपने परिवार में हुई है, इस सोच के साथ पुलिस पदाधिकारी पॉक्सो के मामले का अनुसंधान करें तो संवेदनशीलता खुद ही आ जाएगी. उन्होंने सभी थाना प्रभारी को निर्देश दिया कि एक सप्ताह के अंदर प्रत्येक थाना में पॉक्सो विक्टिम के अनुकूल पेंटिंग, खिलौने, पेयजल और कुर्सियों से युक्त एक कमरे को तैयार करें जो कहीं से भी थाना के जैसा नहीं लगे. एसपी ने हिदायत दी कि किसी भी हाल में पोक्सो पीड़िता को रात में थाना में नहीं रखें. पीड़िता को पहले सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत करें और बाद में कोर्ट में बयान कराने ले जाएं. उन्होंने कहा कि पॉक्सो पीड़िता को सीडब्ल्यूसी या कोर्ट ले जाते हैं तो पुलिसकर्मी वर्दी में नहीं जाएं.

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष ने दी जानकारीः सीडब्ल्यूसी के चेयरपर्सन डॉ अमरेन्द्र कुमार ने कहा कि पॉक्सो का केस दर्ज होने पर 24 घंटे के अंदर एफआईआर की कॉपी और फार्म बी को भरकर सीडब्ल्यूसी के पास भेजना अनिवार्य है. इसके तीन कार्यदिवस के अंदर समिति बता देगी कि पीड़िता का प्रोडक्सन करना है या नहीं. पॉक्सो के केस में यदि पीड़िता को नियमानुसार पहले सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो उसे समिति सपोर्ट पर्सन दे सकेगी, जिससे उसकी मेडिकल जांच और बयान में पुलिस को भी सहयोग मिलेगा. समिति के पास कार्यालय में काउंसलर भी उपलब्ध है. पीड़िता को थाना में नहीं रखें. रात हो या देर रात उसे समिति के समक्ष प्रस्तुत करें. इस तरह बच्चों के प्रति बढ़ते लैंगिक अपराध को लेकर हुए इस सेमिनार में कई बेहतर सुझाव सामने आए.

दुमकाः बच्चों से हो रहे लैगिंक अपराध रोकथाम को लेकर जिला विधिक सेवा प्राधिकार के तत्वावधान में पुलिस अधीक्षक के सभागार भवन में सोमवार को पॉक्सो एक्ट के असरदार अनुपालन पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया. जिसमें न्यायपालिका, पुलिस समेत बाल कल्याण समिति के सदस्य भी उपस्थित रहे. जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ने किया सेमिनार का उद्घाटनः इस सेमिनार का उदघाटन जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रथम सह पोक्सो विशेष न्यायालय के जज रमेश चंद्र ने किया. उनके साथ डालसा सचिव उत्तम सागर राणा, मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी विश्वनाथ भगत, एसपी पीताम्बर सिंह खेरवार, पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) विजय कुमार, सहित पुलिस के कई पदाधिकारी मौजूद थे.

पॉक्सो एक्ट के अनुपालन में बरतें संवेदनशीलताः इस मौके पर जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रथम सह पॉक्सो विशेष न्यायालय के जज रमेश चंद्रा ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के बनने के 12 साल के बाद यह परिचर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि अपेक्षा के अनुरूप इस एक्ट का अनुपालन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि दरअसल गरीबी ही नहीं, बल्कि मनौवैज्ञानिक पहलु भी बालकों के साथ लैंगिक अपराध का प्रमुख कारण है. सभी प्रण लें कि वह बच्चों के जीवन में बदलाव लाएंगे और अपनी-अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे, दूसरों पर नहीं थोपेंगे. उन्होंने कहा कि पीड़ित को मुआवजा देने या कस्तूरबा विद्यालय में नामांकन से उसका जीवन नहीं चलनेवाला है, बल्कि उसे पूरे तरह से रिस्टोर करने की जरूरत है.

एसपी ने थाना प्रभारियों को दिए आवश्यक दिशा निर्देशः वहीं कार्यशाला में दुमका एसपी पीतांबर सिंह खेरवार ने कहा कि घटना अपने परिवार में हुई है, इस सोच के साथ पुलिस पदाधिकारी पॉक्सो के मामले का अनुसंधान करें तो संवेदनशीलता खुद ही आ जाएगी. उन्होंने सभी थाना प्रभारी को निर्देश दिया कि एक सप्ताह के अंदर प्रत्येक थाना में पॉक्सो विक्टिम के अनुकूल पेंटिंग, खिलौने, पेयजल और कुर्सियों से युक्त एक कमरे को तैयार करें जो कहीं से भी थाना के जैसा नहीं लगे. एसपी ने हिदायत दी कि किसी भी हाल में पोक्सो पीड़िता को रात में थाना में नहीं रखें. पीड़िता को पहले सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत करें और बाद में कोर्ट में बयान कराने ले जाएं. उन्होंने कहा कि पॉक्सो पीड़िता को सीडब्ल्यूसी या कोर्ट ले जाते हैं तो पुलिसकर्मी वर्दी में नहीं जाएं.

बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष ने दी जानकारीः सीडब्ल्यूसी के चेयरपर्सन डॉ अमरेन्द्र कुमार ने कहा कि पॉक्सो का केस दर्ज होने पर 24 घंटे के अंदर एफआईआर की कॉपी और फार्म बी को भरकर सीडब्ल्यूसी के पास भेजना अनिवार्य है. इसके तीन कार्यदिवस के अंदर समिति बता देगी कि पीड़िता का प्रोडक्सन करना है या नहीं. पॉक्सो के केस में यदि पीड़िता को नियमानुसार पहले सीडब्ल्यूसी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो उसे समिति सपोर्ट पर्सन दे सकेगी, जिससे उसकी मेडिकल जांच और बयान में पुलिस को भी सहयोग मिलेगा. समिति के पास कार्यालय में काउंसलर भी उपलब्ध है. पीड़िता को थाना में नहीं रखें. रात हो या देर रात उसे समिति के समक्ष प्रस्तुत करें. इस तरह बच्चों के प्रति बढ़ते लैंगिक अपराध को लेकर हुए इस सेमिनार में कई बेहतर सुझाव सामने आए.

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