पटना : लोग अक्सर कहते नजर आते हैं, 'गर्व से कहो हम बिहारी हैं'. हमारे राजनेता भी कहते हैं बढ़ता बिहार. पर जब-जब आंकड़े आते हैं तो कहना पड़ता है, आखिर क्यों ऐसा हो गया बिहार. आखिर किसकी नजर लगी कि ऐसा हश्र हो गया.
36 राज्यों में 36वें स्थान पर बिहार : डबल इंजन की सरकार के नेता अक्सर कहते दिखाई पड़ते हैं कि बिहार में साक्षरता दर को बढ़ाना है. तभी तो सबसे बड़ा बजट शिक्षा पर ही जाता है, पर न जाने ये बजट धरातल पर क्यों सार्थक नहीं हो पाता है. शिक्षा के मामले में एसडीजी इंडेक्स में बिहार सबसे निचले पायदान पर अर्थात 36 में स्थान पर है. सवाल उठता है कि क्या जो भी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव होने थे सभी ठंडे बस्ते में चले गए?
'शिक्षा में फेल हो गया बिहार' : अर्थशास्त्री डॉक्टर अविरल पांडे का मानना है कि, शिक्षा के मामले में बिहार का परफॉर्मेंस बेहद खराब है. पास होने के लिए 33 प्रतिशत नंबर चाहिए, वह भी बिहार को नहीं मिल पाया. बिहार मात्र 32 अंक हासिल कर सका.
''प्राइमरी स्कूलों में छात्र नामांकन तो ले रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे ऊपर के क्लास में पहुंच रहे हैं, वैसे-वैसे ड्रॉप आउट की संख्या बढ़ रही है. क्वालिटी एजुकेशन के मामले में भी बिहार निचले पायदान पर है. सरकार को चिंतन करने की जरूरत है.''- डॉक्टर अविरल पांडे, अर्थशास्त्री
शिक्षा में फिसड्डी है बिहार : दरअसल, पिछले 19 साल से बिहार की शिक्षा व्यवस्था की कमान नीतीश कुमार के हाथ में है. सरकार के द्वारा शिक्षा में सुधार के दावे भी किए जाते हैं, लेकिन दावों की हकीकत की पोल नीति आयोग की रिपोर्ट खोल रही है ज्यादातर इंडेक्स में बिहार फिसड्डी साबित हुआ है. मतलब शिक्षा की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है.
नींद हराम करने वाली आयी रिपोर्ट : बिहार में आधे दर्जन शिक्षा मंत्री बदल गए लेकिन शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर नहीं बदली. नीति आयोग की रिपोर्ट को नीतीश सरकार की ओर से कई बार खारिज किया गया है लेकिन इस बार जो रिपोर्ट आई है वह सरकार में बैठे लोगों की नींद हराम करने वाली है.
'इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम करने की जरूरत' : अर्थशास्त्री डॉक्टर विद्यार्थी विकास का कहना है कि नीति आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा के मामले में बिहार सबसे नीचे है. स्कूलों में कंप्यूटराइजेशन नहीं हो पाए हैं. शिक्षक और छात्र का अनुपात भी राष्ट्रीय स्तर से कम है. सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है.
''स्कूलों में गुणात्मक शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षक की जरूरत है. पिछली रिपोर्ट से सरकार ने कोई सीख नहीं ली. अगर कमेटी गठित कर अध्ययन कराया जाता और उसके बाद कदम उठाए जाते तो शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरी हो सकती थी.''- डॉक्टर विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री
क्वालिटी एजुकेशन में बिहार निचले स्थान पर : अब जरा रिपोर्ट की तरफ रुख करते हैं. नीति आयोग ने कहा है कि 12 राष्ट्रीय स्तर के इंडिकेटर के आधार पर गुणात्मक शिक्षा अर्थात क्वालिटी एजुकेशन के मामले में बिहार निचले स्थान पर है. आपको बता दें कि 36 राज्यों की सूची में बिहार का 36 वे स्थान पर है. एसडीजी इंडेक्स में 100 अंक निर्धारित किए गए हैं जिसमें बिहार को मात्र 32 अंक हासिल हुए हैं.
प्राइमरी में दाखिला ले रहे बच्चे : 6 राज्य ऐसे हैं जिन्हें 50 से कम अंक हासिल हुए हैं. मध्य प्रदेश, नागालैंड, असम, मेघालय, उड़ीसा और बिहार का नाम इस सूची में शामिल है. बिहार सरकार के लिए सुखद बात यह है कि प्राइमरी एजुकेशन में एनरोलमेंट रेट के मामले में बिहार का प्रदर्शन बेहतर रहा है. 97% बच्चे स्कूल में दाखिला ले रहे हैं.
ड्रॉप आउट में तीसरे स्थान पर बिहार : शिक्षा का अधिकार नियम का असर है कि बच्चे स्कूल तक पहुंच रहे हैं लेकिन सेकेंडरी लेवल तक आते-आते ड्रॉप आउट रेट बढ़ने लगती है. रिपोर्ट के मुताबिक 20.5% बच्चे दशवीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे हैं. ड्रॉप आउट के मामले में बिहार तीसरे स्थान पर है. बिहार से पहले उड़ीसा और मेघालय है.
सेकेंडरी लेवल में छोड़ जाते बच्चे : सकल नामांकन अनुपात अर्थात ग्रॉस एनरोलमेंट अनुपात के मामले में भी बिहार की स्थिति चिंताजनक है. सेकेंडरी लेवल अर्थात 15 वर्ष से 17 वर्ष के बीच के 36% बच्चे ही स्कूल में पढ़ाई कर पा रहे हैं. बाकी के 64% बच्चे सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे हैं. इस मामले में बिहार का 35 वां स्थान है.
सिर्फ 17 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर रहे : उच्च शिक्षा की बात कर लें तो यहां भी हालत चिंताजनक है. मात्र 17.01% छात्र ही उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं, बाकी के 83% बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं मिल पा रही है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो के मामले में 36 राज्यों की सूची में इस मामले में बिहार 33 वें स्थान पर है. इस श्रेणी में 18 वर्ष से 23 वर्ष के बीच के छात्र आते हैं.
81% स्कूलों में कंप्यूटर नहीं : स्कूलों में कंप्यूटराइजेशन पर जोर दिया जाता है बिहार के स्कूलों में कंप्यूटर लगे हैं लेकिन सिर्फ 18.9% स्कूलों में ही कंप्यूटर लगे हैं. 81% स्कूलों में कंप्यूटर नहीं लग सके हैं. इस मामले में बिहार 34 वे स्थान पर है.
55 छात्रों पर एक शिक्षक : शिक्षक और छात्र अनुपात में भी बिहार निचले पायदान पर है. राष्ट्रीय स्तर पर जहां 18 बच्चों पर एक शिक्षक हैं. वहीं बिहार में 55 छात्रों पर एक शिक्षक हैं, जबकि केंद्र सरकार के मुताबिक 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना जरूरी है. बिहार 36 राज्यों की सूची में अंतिम पायदान पर है.
बिहार में लिटरेसी रेट 67.3% : बिहार लिटरेसी रेट को लेकर भी सुर्खियों में रहता है 15 साल से अधिक उम्र के लोगों में लिटरेसी रेट के मामले में बिहार निचले पायदान पर है. बिहार में लिटरेसी रेट 67.3% है. तभी तो आंकड़ों को लेकर अर्थशास्त्री भी चिंता जता रहे हैं.
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