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लाइकेन हो सकता जीव जंतुओं का अच्छा आहार,  वैज्ञानिक कर रहे इस पर शोध - RESEARCH ON LICHENS

सीएसआईआर और भारतीय लाइकेनोलॉजिकल सोसायटी के द्वारा ‘अपुष्पी अनुसंधान में प्रगति एवं दृष्टिकोण’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया.

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अपुष्पी अनुसंधान में प्रगति एवं दृष्टिकोण पर राष्ट्रीय सम्मेलन (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

लखनऊ: भारत में लाइकेन (कवक और शैवाल) को लेकर के वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. यह तमाम रोजमर्रा की चीजों में भी काफी मददगार साबित हो रहा है. छोटे पौधों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है, जो हमारे बायोडायवर्सिटी के लिए बहुत अच्छा होता है. यह बातें सोमवार को चीफ साइंटिस्ट डॉ. संजीवा नायका ने कहीं. सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान और भारतीय लाइकेनोलॉजिकल सोसायटी के द्वारा ‘अपुष्पी अनुसंधान में प्रगति एवं दृष्टिकोण’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा था. इस पर विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने विभिन्न अनुसंधान एवं विकास कार्यो पर चर्चाएं की.

डॉ. संजीवा नायका ने बताया, कि हाल के कुछ वर्षों में लाइकेन वर्गिकी एवं विविधता के क्षेत्र में नवीन शोधों में काफी वृद्धि हुई है. जिसके कारण भारत में पाए जाने वाली लाइकेन प्रजातियों की कुल संख्या में काफी वृद्धि हुई है. जो यह दर्शाता है, कि न सिर्फ भारत में नवीन प्रजातियों की खोज हुई है. बल्कि, बहुत सारे अल्प अन्वेषित क्षेत्रों की लाइकेन विविधता की जानकारी भी एकत्र की गयी है. जो भविष्य के अनुसंधानों के लिए काफी सहायक होगी.

चीफ साइंटिस्ट डॉ. संजीवा नायका ने लाइकेन शोध को लेकर साझा की जानकारी (Video Credit; ETV Bharat)



इसे भी पढ़ें - लोगों की थाली में कैमिकल फ्री दाल परोसने की कवायद, दलहन की प्राकृतिक खेती पर कृषि मंत्रालय का जोर, आईआईपीआर में बनेगा मॉडल खेत - Natural cultivation of pulses - NATURAL CULTIVATION OF PULSES

पूणे के अघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट की ऑफिसर डॉ. भारती शर्मा ने कहा, कि राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान से हमें बहुत सारी चीजे सीखने को मिल रही है. कवक और शैवाल के बारें में विश्व भर में वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. यहां पर तमाम एक्सपर्ट आए हुए हैं. जिनसे हमें लाइकेन के बारे में सीखने को मिल रहा है.

डीएमयू यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक डॉ. पिनाकियो उधोपमा ने कहा, कि पहली बार मैं उत्तर प्रदेश आई हूं. वह भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में इस कार्यक्रम को अटेंड करने के लिए पहुंची हूं. यह कार्यक्रम हमारे लिए बहुत लाभकारी साबित होने वाला है. क्योंकि, यहां पर हमें बहुत सारी चीजों के बारे में वैज्ञानिक बता रहे हैं. जो आगामी दिनों में हम अपने स्टूडेंट को बता सकेंगे.

पूणे के अघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डीएसटी वूमेन साइंटिस्ट-ए डॉ. गार्गी पंडित ने कहा, कि लाइकेन कई पारिस्थितिकी प्रणालियों में एक प्रमुख प्रजाति हैं. वे हिरण, पक्षियों और कृन्तकों जैसे कई जानवरों के लिए भोजन स्रोत और आवास के रूप में काम करते हैं. वे पक्षियों के लिए घोंसले बनाने की सामग्री प्रदान करते हैं. इस पर अभी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं. इससे बहुत सारी आयुर्वेद की दवाई बनती हैं, जो बहुत सारी गंभीर बीमारियों को भी दूर करती हैं. आज हमने यहां पर बहुत सारी चीज सीखी है. जो हम अपनी जूनियर से भविष्य में साझा करेंगे.

यह भी पढ़ें - किसानों को खेत में कब और कितनी देनी है खाद बताएगी डिवाइस, युवा वैज्ञानिक मुनीर को मिलेगा 'यंग साइंटिस्ट अवार्ड' - Young Scientist Award - YOUNG SCIENTIST AWARD

लखनऊ: भारत में लाइकेन (कवक और शैवाल) को लेकर के वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. यह तमाम रोजमर्रा की चीजों में भी काफी मददगार साबित हो रहा है. छोटे पौधों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है, जो हमारे बायोडायवर्सिटी के लिए बहुत अच्छा होता है. यह बातें सोमवार को चीफ साइंटिस्ट डॉ. संजीवा नायका ने कहीं. सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान और भारतीय लाइकेनोलॉजिकल सोसायटी के द्वारा ‘अपुष्पी अनुसंधान में प्रगति एवं दृष्टिकोण’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा था. इस पर विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने विभिन्न अनुसंधान एवं विकास कार्यो पर चर्चाएं की.

डॉ. संजीवा नायका ने बताया, कि हाल के कुछ वर्षों में लाइकेन वर्गिकी एवं विविधता के क्षेत्र में नवीन शोधों में काफी वृद्धि हुई है. जिसके कारण भारत में पाए जाने वाली लाइकेन प्रजातियों की कुल संख्या में काफी वृद्धि हुई है. जो यह दर्शाता है, कि न सिर्फ भारत में नवीन प्रजातियों की खोज हुई है. बल्कि, बहुत सारे अल्प अन्वेषित क्षेत्रों की लाइकेन विविधता की जानकारी भी एकत्र की गयी है. जो भविष्य के अनुसंधानों के लिए काफी सहायक होगी.

चीफ साइंटिस्ट डॉ. संजीवा नायका ने लाइकेन शोध को लेकर साझा की जानकारी (Video Credit; ETV Bharat)



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पूणे के अघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट की ऑफिसर डॉ. भारती शर्मा ने कहा, कि राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान से हमें बहुत सारी चीजे सीखने को मिल रही है. कवक और शैवाल के बारें में विश्व भर में वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं. यहां पर तमाम एक्सपर्ट आए हुए हैं. जिनसे हमें लाइकेन के बारे में सीखने को मिल रहा है.

डीएमयू यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक डॉ. पिनाकियो उधोपमा ने कहा, कि पहली बार मैं उत्तर प्रदेश आई हूं. वह भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में इस कार्यक्रम को अटेंड करने के लिए पहुंची हूं. यह कार्यक्रम हमारे लिए बहुत लाभकारी साबित होने वाला है. क्योंकि, यहां पर हमें बहुत सारी चीजों के बारे में वैज्ञानिक बता रहे हैं. जो आगामी दिनों में हम अपने स्टूडेंट को बता सकेंगे.

पूणे के अघारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डीएसटी वूमेन साइंटिस्ट-ए डॉ. गार्गी पंडित ने कहा, कि लाइकेन कई पारिस्थितिकी प्रणालियों में एक प्रमुख प्रजाति हैं. वे हिरण, पक्षियों और कृन्तकों जैसे कई जानवरों के लिए भोजन स्रोत और आवास के रूप में काम करते हैं. वे पक्षियों के लिए घोंसले बनाने की सामग्री प्रदान करते हैं. इस पर अभी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं. इससे बहुत सारी आयुर्वेद की दवाई बनती हैं, जो बहुत सारी गंभीर बीमारियों को भी दूर करती हैं. आज हमने यहां पर बहुत सारी चीज सीखी है. जो हम अपनी जूनियर से भविष्य में साझा करेंगे.

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