कानपुर : देशभर में आमतौर पर अधिकतर किसान खेती के दौरान रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं. केंद्र सरकार की ओर से पिछले कुछ समय से लगातार इस बात को लेकर जोर दिया जा रहा है, किसान जिस प्राकृतिक खेती की ओर अपना रुख करें और फसलों की पैदावार प्राकृतिक खेती द्वारा ही करें. ऐसे में कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (शाक भाजी विभाग) में वैज्ञानिकों ने गन्ने की पत्तियों व धान की पुआल से कमाल ही कर दिखाया.
प्राकृतिक खेती करते हुए यहां पर वैज्ञानिकों ने छह अलग-अलग फसलों पर लगभग दो वर्षों तक शोध किया. जिसका नतीजा रहा, वैज्ञानिकों को फसलों के उत्पादन में 12 से 24 प्रतिशत तक वृद्धि का इजाफा मिल गया. पूरे शोध की जानकारी वैज्ञानिकों द्वारा जहां कृषि मंत्रालय को दी गई है, वहीं अब वैज्ञानिकों ने कानपुर समेत सूबे के सभी किसानों के लिए इस प्राकृतिक खेती के फार्मूले को अपनाने की कवायद शुरू करा दी है.
यहां जानिए कुल कितनी तैयार हुई फसल | |
फसल का नाम कुल मात्रा | (क्विंटल में) |
पत्ता गोभी | 210.09 |
लोबिया | 89.28 |
लोबिया (खरीफ में) | 87.12 |
मटर | 82.12 |
तोरई | 168.02 |
मूंग | 9.10 |
टमाटर | 350.68 |
जीवामृत व गोबर की खाद के प्रयोग से लहलहा गईं फसलें : वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव ने बताया कि इस फार्मिंग लैंड पर दो साल पहले पत्ता गोभी, लोबिया, मटर, टमाटर, मूंग, तोरई की फसलों को तैयार करने की कवायद की गई थी. इसके लिए फसलों में गोबर की खाद (20 टन प्रति हेक्टेयर) व जैविक मल्चिंग (गन्ने की पत्ती व धान की पुआल से तैयार किया गया मिश्रण) जिसकी मात्रा 7.5 टन प्रति हेक्टेयर रही. इसके उपयोग से युक्त फसलों को जब तैयार किया गया तो उनकी जो दो साल में पैदावार हुई, वह रासायनिक उर्वरकों की पैदावार की अपेक्षा 12 प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक अधिक मिली.
तीन वर्षों तक चलेगा शोध : डॉ. राजीव ने बताया कि यह शोध कुल तीन वर्षों तक चलेगा. अब आखिरी साल में जो फसलों की पैदावार है, उनके जो मूल्य होंगे इसका आंकलन किया जाएगा और इससे यह भी तय हो जाएगा कि किसानों को प्राकृतिक खेती की मदद से आय में कितना अधिक इजाफा हो सकता है. डॉ राजीव ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार की ओर से कुछ समय पहले जिस प्राकृतिक खेती मिशन को लांच किया गया है, उसमें यह शोध एक नजीर बनेगा.
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