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हिमाचल की कमजोर आर्थिक सेहत में प्राण वायु फूंक सकते हैं पेड़, 3.21 लाख करोड़ की वन संपदा से 4 हजार करोड़ सालाना की आय संभव - Himachal Forest

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 1, 2024, 6:27 AM IST

Scientific exploitation of Himachal forest resources: हिमाचल प्रदेश की वन संपदा राज्य के कमजोर आर्थिक सेहत के लिए वरदान साबित हो सकते है. अगर वन संपदा को वैज्ञानिक दोहन किया जाए तो प्रदेश को सालाना 4 हजार करोड़ की आय संभावना है. इसको लेकर सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्त आयोग के सामने अपना पक्ष रखा है. पढ़िए पूरी खबर...

Himachal forest
हिमाचल वन संपदा (ETV Bharat FILE)

शिमला: हिमाचल की आर्थिक सेहत इस समय बहुत मंद है. राज्य की मंद आर्थिक सेहत को सेहतमंद बनाने में यहां के हरे-भरे पेड़ प्राण वायु का काम कर सकते हैं. देवभूमि के पास 3.21 लाख करोड़ रुपए की वन संपदा है. यदि इस वन संपदा के वैज्ञानिक दोहन की संभावना हो तो राज्य के खजाने को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है. हाल ही में हिमाचल के दौरे पर आए वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार ने वन संपदा को लेकर अपना पक्ष रखा. राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल में 3.21 लाख करोड़ रुपए की वन संपदा है. यदि इसके दोहन की अनुमति मिले तो सरकार को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश ने अपनी वन संपदा को बहुत संभाल कर रखा है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश एशिया का पहला राज्य है, जिसे कार्बन क्रेडिट राज्य का दर्जा मिला है. वर्ष 2015 में हिमाचल प्रदेश को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्रेडिट के तौर पर विश्व बैंक से 1.93 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि मिली थी. हिमाचल में ग्रीन फैलिंग यानी हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश सरकार वन संपदा के दोहन को लेकर बंधी हुई है.

वन संपदा के इकोलॉजिकल वायबल दोहन की अनुमति मांग रहा हिमाचल
वित्त आयोग के समक्ष सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि देवभूमि के पास 3.21 लाख करोड़ की वन संपदा है. यदि इसके इकोलॉजिकल वायबल और वैज्ञानिक सिल्वीकल्चरल प्रैक्टिसेज के अनुसार दोहन की अनुमति मिल जाए तो हिमाचल को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय होगी. वन संपदा के दोहन के रास्ते में फॉरेस्ट्री के राष्ट्रीय कानून व अलग-अलग न्यायालयों के आदेश आड़े आ जाते हैं. हिमाचल सरकार ने काफी समय से वन विभाग के तहत चलने वाले वर्किंग प्लान कार्यक्रम को भी स्थगित किया हुआ है. वर्किंग प्लान के तहत वनों से तय नियमों के अनुसार पेड़ काटे जाते हैं और कटान से प्राप्त लकड़ियों को अलग-अलग तरह से प्रयोग कर आय अर्जित की जाती है. फिर उतनी ही मात्रा में नए पौधे रोपे जाते हैं. गौरतलब है कि पूर्व में 15वें वित्त आयोग ने राज्य में वन आवरण के बदले टैक्स आवंटन में हिमाचल के हिस्से को साढ़े सात फीसदी से बढ़ाकर दस फीसदी कर दिया था. ये बढ़ोतरी फॉरेस्ट कवर के बदले मुआवजे के रूप में थी.

हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं खैर के पेड़
खैर के पेड़ों को व्यापक रूप से बेचने की अनुमति मिले तो भी राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति मिली है, लेकिन समूचे हिमाचल में ये अनुमति मिले तो राजस्व में उछाल आ सकता है. यहां ये उल्लेख दिलचस्प है कि हिमाचल के वरिष्ठ राजनेता रमेश ध्वाला ने बाकायदा सदन में दावा किया था कि अकेले कांगड़ा जिला के खैर के पेड़ पूरे हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं. रमेश ध्वाला ने 2 अप्रैल 2018 को विधानसभा में ये दावा किया था. ये भी गौरतलब है कि अनुमति न होने के कारण वन माफिया चोरी-चुपके खैर के पेड़ों को काटता है. खैर से दवाइयां बनती हैं, कत्था तैयार होता है और ये उद्योगों में रंगाई के काम आता है. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में जब पांच फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों को काटने की अनुमति दी थी तो सिर्फ 16 हजार खैर के पेड़ों को काटने से 200 करोड़ की आय का अनुमान लगाया गया था. ये भी एक तथ्य है कि खैर के पेड़ को काटने के बाद उसके आसपास चार से पांच खैर के पौधे खुद ही उग आते हैं.

एफसीए के कारण विकास कार्यों में अड़चन
राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत क्षेत्र वन वर्गीकृत क्षेत्र है. ये क्षेत्र 37986 वर्ग किलोमीटर बनता है. यहां फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट यानी एफसीए के प्रावधान लागू होते हैं. इन क्षेत्रों में किसी भी विकास कार्य के लिए केंद्र से अनुमति लेनी होती है, ये लंबी प्रक्रिया है. इस कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं. खैर, राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश का वन क्षेत्र निरंतर बढ़ रहा है. वर्ष 2019 से 2021 के बीच हिमाचल के वन क्षेत्र में .06 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश के घने वन देश के मैदानी राज्यों के लिए फेफड़ों का काम करते हैं. हिमाचल में हर साल वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए करोड़ों पौधे रोपे जाते हैं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य ने वनों को सुरक्षित रखा है. वनों के वैज्ञानिक दोहन की अनुमति मिलने से हिमाचल को सालाना चार हजार करोड़ रुपए तक की आय हो सकती है. देखना है कि वन संरक्षण के एवज में हिमाचल को वित्त आयोग की सिफारिश पर कोई आर्थिक प्रोत्साहन मिलता है या नहीं.

ये भी पढ़ें: सेब बागवानों के लिए खुशखबरी, इस बार नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान

शिमला: हिमाचल की आर्थिक सेहत इस समय बहुत मंद है. राज्य की मंद आर्थिक सेहत को सेहतमंद बनाने में यहां के हरे-भरे पेड़ प्राण वायु का काम कर सकते हैं. देवभूमि के पास 3.21 लाख करोड़ रुपए की वन संपदा है. यदि इस वन संपदा के वैज्ञानिक दोहन की संभावना हो तो राज्य के खजाने को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है. हाल ही में हिमाचल के दौरे पर आए वित्त आयोग के समक्ष राज्य सरकार ने वन संपदा को लेकर अपना पक्ष रखा. राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल में 3.21 लाख करोड़ रुपए की वन संपदा है. यदि इसके दोहन की अनुमति मिले तो सरकार को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय हो सकती है.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश ने अपनी वन संपदा को बहुत संभाल कर रखा है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश एशिया का पहला राज्य है, जिसे कार्बन क्रेडिट राज्य का दर्जा मिला है. वर्ष 2015 में हिमाचल प्रदेश को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्रेडिट के तौर पर विश्व बैंक से 1.93 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि मिली थी. हिमाचल में ग्रीन फैलिंग यानी हरे पेड़ों के कटान पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश सरकार वन संपदा के दोहन को लेकर बंधी हुई है.

वन संपदा के इकोलॉजिकल वायबल दोहन की अनुमति मांग रहा हिमाचल
वित्त आयोग के समक्ष सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि देवभूमि के पास 3.21 लाख करोड़ की वन संपदा है. यदि इसके इकोलॉजिकल वायबल और वैज्ञानिक सिल्वीकल्चरल प्रैक्टिसेज के अनुसार दोहन की अनुमति मिल जाए तो हिमाचल को साल भर में चार हजार करोड़ रुपए की आय होगी. वन संपदा के दोहन के रास्ते में फॉरेस्ट्री के राष्ट्रीय कानून व अलग-अलग न्यायालयों के आदेश आड़े आ जाते हैं. हिमाचल सरकार ने काफी समय से वन विभाग के तहत चलने वाले वर्किंग प्लान कार्यक्रम को भी स्थगित किया हुआ है. वर्किंग प्लान के तहत वनों से तय नियमों के अनुसार पेड़ काटे जाते हैं और कटान से प्राप्त लकड़ियों को अलग-अलग तरह से प्रयोग कर आय अर्जित की जाती है. फिर उतनी ही मात्रा में नए पौधे रोपे जाते हैं. गौरतलब है कि पूर्व में 15वें वित्त आयोग ने राज्य में वन आवरण के बदले टैक्स आवंटन में हिमाचल के हिस्से को साढ़े सात फीसदी से बढ़ाकर दस फीसदी कर दिया था. ये बढ़ोतरी फॉरेस्ट कवर के बदले मुआवजे के रूप में थी.

हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं खैर के पेड़
खैर के पेड़ों को व्यापक रूप से बेचने की अनुमति मिले तो भी राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के दस फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों के कटान की अनुमति मिली है, लेकिन समूचे हिमाचल में ये अनुमति मिले तो राजस्व में उछाल आ सकता है. यहां ये उल्लेख दिलचस्प है कि हिमाचल के वरिष्ठ राजनेता रमेश ध्वाला ने बाकायदा सदन में दावा किया था कि अकेले कांगड़ा जिला के खैर के पेड़ पूरे हिमाचल का कर्ज उतार सकते हैं. रमेश ध्वाला ने 2 अप्रैल 2018 को विधानसभा में ये दावा किया था. ये भी गौरतलब है कि अनुमति न होने के कारण वन माफिया चोरी-चुपके खैर के पेड़ों को काटता है. खैर से दवाइयां बनती हैं, कत्था तैयार होता है और ये उद्योगों में रंगाई के काम आता है. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में जब पांच फॉरेस्ट डिवीजन में खैर के पेड़ों को काटने की अनुमति दी थी तो सिर्फ 16 हजार खैर के पेड़ों को काटने से 200 करोड़ की आय का अनुमान लगाया गया था. ये भी एक तथ्य है कि खैर के पेड़ को काटने के बाद उसके आसपास चार से पांच खैर के पौधे खुद ही उग आते हैं.

एफसीए के कारण विकास कार्यों में अड़चन
राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68.16 प्रतिशत क्षेत्र वन वर्गीकृत क्षेत्र है. ये क्षेत्र 37986 वर्ग किलोमीटर बनता है. यहां फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट यानी एफसीए के प्रावधान लागू होते हैं. इन क्षेत्रों में किसी भी विकास कार्य के लिए केंद्र से अनुमति लेनी होती है, ये लंबी प्रक्रिया है. इस कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं. खैर, राज्य सरकार ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश का वन क्षेत्र निरंतर बढ़ रहा है. वर्ष 2019 से 2021 के बीच हिमाचल के वन क्षेत्र में .06 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्त आयोग को बताया कि हिमाचल प्रदेश के घने वन देश के मैदानी राज्यों के लिए फेफड़ों का काम करते हैं. हिमाचल में हर साल वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए करोड़ों पौधे रोपे जाते हैं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य ने वनों को सुरक्षित रखा है. वनों के वैज्ञानिक दोहन की अनुमति मिलने से हिमाचल को सालाना चार हजार करोड़ रुपए तक की आय हो सकती है. देखना है कि वन संरक्षण के एवज में हिमाचल को वित्त आयोग की सिफारिश पर कोई आर्थिक प्रोत्साहन मिलता है या नहीं.

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