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इस पाठशाला में 60 से 95 साल की महिलाएं हैं विद्यार्थी, अंगूठा छाप का टैग मिटाने की कर रही कोशिश - school for elderly woman

वाराणसी के एक गांव में एक ऐसी पाठशाला है, जहां 60 से 95 साल की महिलाएं विद्यार्थी हैं. जो महिलाएं कल तक अपने हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थी, अब वह एबीसीडी के साथ हस्ताक्षर भी कर लेती है. इस बदलाव को लाने की कोशिश एक महिला ने ही की है.

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school for elderly woman (photo credit- etv bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 25, 2024, 1:42 PM IST

वाराणसी: चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को, मिटा दें सारे जमाने के बंद रिवाजों को... मशहूर शायर तासीर सिद्दीकी का ये शेर समाज मे बदलाव की उस तस्वीर को बयां करने के लिए काफी है, जिसके लिए बनारस की बिना सिंह 14 सालों से संघर्ष कर रही हैं. बनारस की बीना सिंह ने एक अनूठा प्रयास शुरू किया और गांव की अंगूठा छाप महिलाओं को उनके उम्र की परवाह किये बिना शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. वाराणसी स्थित भुल्लनपुर गांव में कल तक अंगूठा छाप का टैग लेकर लोगों के बीच अनपढ़ गवार कहलाने वाली वह हर उम्र की महिलाओं संग वृद्ध महिलाएं अब अपने हाथों से हस्ताक्षर करना सीख गई हैं, जो कल तक हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रयास इसी गांव की रहने वाली बीना सिंह की वजह से सफल हो सका है.

इस पाठशाला में 60 से 95 साल की महिलाएं हैं विद्यार्थी (video credit- etv bharat)

अंगूठा छाप का टैग मिटाने में जुटी महिलाएं: आज बीना की पाठशाला में 50 साल से लेकर 95 साल तक की वृद्ध महिलाएं ककहरा पढ़कर जीवन के अंतिम समय में अपने ऊपर लगे अनपढ़ के धब्बे को हटाने में जुटी हैं. भुल्लनपुर गांव की रहने वाली बीना सिंह जब शादी होने के बाद गांव आईं तो महिलाओं के कम पढ़ा लिखा होने का दर्द उन्हें परेशान करने लगा. बीना खुद पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स भी कर चुकी हैं. इसलिए, उन्हें महिलाओं के शिक्षित होने की जरूरत का अंदाजा है. वृद्ध महिलाओं की इस तकलीफ को देखकर उन्होंने अनपढ़ वृद्ध माताओं की एक टीम तैयार करनी शुरू की.

गांव-गांव घूम कर घर-घर जाकर वृद्ध महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने ही घर के एक कमरे से वृद्ध माताओं की पाठशाला शुरू की. देखते ही देखते संख्या 5 से 50 और 50 से 65 हो गई. वर्तमान समय में यहां पर हर रोज शाम को 2 घंटे की क्लास लगा करती है. बीना सिंह वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आइडियल वूमेन वेलफेयर सोसाइटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. बीना की इस मुहिम को उनके पति भी पूरा सहयोग करते हैं.

उम्र पर भारी पढ़ रहा पढ़ने का जज्बा: सबसे बड़ी बात यह है, कि बीना के यहां आने वाली महिलाएं जो कल तक अंगूठा छाप थी वह बैंक से लेकर अन्य कामों में अंगूठे की जगह सिग्नेचर करने लगी हैं. बीना की क्लास की सबसे बुजुर्ग महिला 95 साल की शांति देवी हैं. शांति के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां उनकी उम्र को बयां करने के लिए काफी है, लेकिन शांति के अंदर जो जज्बा है, वह किसी बच्चे से कम नहीं है. हाथों में पेन और कॉपी पकड़कर वह एबीसीडी भी लिखती हैं और अपना नाम भी बखूबी लिख लेती है.

इसे भी पढ़े- यूपी बोर्ड के विद्यार्थी सीखेंगे रोबोटिक और एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी, जानिए किन विद्यालयों में बनेगी लैब

शांति देवी (95) का कहना है, कि पहले वह पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. नाम लिखना तो बहुत दूर की बात है, लेकिन बीना सिंह के प्रयासों से वह अब बैंक में अपने सिग्नेचर करती हैं. पैसा निकालना हो तो फॉर्म भर कर देती हैं, जिसके बाद बैंक के लोग भी हैरान हैं. शांति की ही तरह यहां पर और भी बहुत सी महिलाएं हैं जो पूरा दिन अपने घर के कामकाज को खत्म करके समय से अपने इस खास पाठशाला में पहुंच जाती हैं. हाथों में कॉपी, पेंसिल स्लेट और किताबें लेकर क, ख, ग, घ ए, बी, सी, डी पढ़ने वाली यह महिलाएं निश्चित तौर पर आज के बदलते सामाजिक परिवेश की सबसे बड़ी मिसाल हैं. यह भी साफ करता है, कि यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र कभी भी आड़े नहीं आती.

वृद्ध महिलाओं को स्कूल जाता देख बच्चे भी जाना चाहते है स्कूल: फिलहाल, बीना सिंह का साथ उनकी टीम के साथ उनका परिवार भी देता है. पति चंद्रशेखर सिंह एक छोटी सी डेयरी चलाते हैं और पत्नी इन महिलाओं को शिक्षित करने के साथ ही साथ घर परिवार का भी पूरा साथ देती हैं. पति के अलावा बच्चे, देवरानी, देवर और घर में मौजूद अन्य सदस्यों का भी पूरा ध्यान रखती हैं. खाना बनाना और पति के बिजनेस में उनका सहयोग करना भी बीना नहीं भूलती हैं. यही वजह है कि आज बीना के प्रयासों ने इस गांव को निरक्षर से साक्षर बनाने में बड़ा रोल अदा किया है. वृद्ध माताओं को स्कूल जाता देखकर बच्चे भी अभी स्कूल जाना चाहते हैं.

इतना ही नहीं गांव की बीना सिंह अब तक 10 ऐसी गरीब लड़कियों की शादी भी करवा चुकी हैं, जिनके मां-बाप सक्षम नहीं थे. जुलाई के महीने में भी एक गरीब बेटी की शादी का जिम्मा उन्होंने उठाया है. जिनको शादी में दिए जाने वाले सारे सामान के साथ 200 से ढाई सौ लोगों के खाने-पीने का जिम्मा बिना ही उठा रही है. इसके अलावा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनके पैरों पर उन्हें खड़ा करने के लिए तरह-तरह के सामान बनाना सीखने और ब्यूटीशियन का कोर्स करवाने का काम भी बिना सिंह अपने बल पर करती हैं.

यह भी पढ़े-यूपी पुलिस का सच; महिला एसआई को रात 11 बजे ड्यूटी पर बुलाते अफसर, थाना छोड़ फ्लैट पर करते मीटिंग - Female Police Night Duty

वाराणसी: चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को, मिटा दें सारे जमाने के बंद रिवाजों को... मशहूर शायर तासीर सिद्दीकी का ये शेर समाज मे बदलाव की उस तस्वीर को बयां करने के लिए काफी है, जिसके लिए बनारस की बिना सिंह 14 सालों से संघर्ष कर रही हैं. बनारस की बीना सिंह ने एक अनूठा प्रयास शुरू किया और गांव की अंगूठा छाप महिलाओं को उनके उम्र की परवाह किये बिना शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. वाराणसी स्थित भुल्लनपुर गांव में कल तक अंगूठा छाप का टैग लेकर लोगों के बीच अनपढ़ गवार कहलाने वाली वह हर उम्र की महिलाओं संग वृद्ध महिलाएं अब अपने हाथों से हस्ताक्षर करना सीख गई हैं, जो कल तक हाथों में पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रयास इसी गांव की रहने वाली बीना सिंह की वजह से सफल हो सका है.

इस पाठशाला में 60 से 95 साल की महिलाएं हैं विद्यार्थी (video credit- etv bharat)

अंगूठा छाप का टैग मिटाने में जुटी महिलाएं: आज बीना की पाठशाला में 50 साल से लेकर 95 साल तक की वृद्ध महिलाएं ककहरा पढ़कर जीवन के अंतिम समय में अपने ऊपर लगे अनपढ़ के धब्बे को हटाने में जुटी हैं. भुल्लनपुर गांव की रहने वाली बीना सिंह जब शादी होने के बाद गांव आईं तो महिलाओं के कम पढ़ा लिखा होने का दर्द उन्हें परेशान करने लगा. बीना खुद पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ ही प्रोफेशनल कोर्स भी कर चुकी हैं. इसलिए, उन्हें महिलाओं के शिक्षित होने की जरूरत का अंदाजा है. वृद्ध महिलाओं की इस तकलीफ को देखकर उन्होंने अनपढ़ वृद्ध माताओं की एक टीम तैयार करनी शुरू की.

गांव-गांव घूम कर घर-घर जाकर वृद्ध महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. अपने ही घर के एक कमरे से वृद्ध माताओं की पाठशाला शुरू की. देखते ही देखते संख्या 5 से 50 और 50 से 65 हो गई. वर्तमान समय में यहां पर हर रोज शाम को 2 घंटे की क्लास लगा करती है. बीना सिंह वृद्ध महिलाओं को शिक्षित करने के लिए आइडियल वूमेन वेलफेयर सोसाइटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. बीना की इस मुहिम को उनके पति भी पूरा सहयोग करते हैं.

उम्र पर भारी पढ़ रहा पढ़ने का जज्बा: सबसे बड़ी बात यह है, कि बीना के यहां आने वाली महिलाएं जो कल तक अंगूठा छाप थी वह बैंक से लेकर अन्य कामों में अंगूठे की जगह सिग्नेचर करने लगी हैं. बीना की क्लास की सबसे बुजुर्ग महिला 95 साल की शांति देवी हैं. शांति के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां उनकी उम्र को बयां करने के लिए काफी है, लेकिन शांति के अंदर जो जज्बा है, वह किसी बच्चे से कम नहीं है. हाथों में पेन और कॉपी पकड़कर वह एबीसीडी भी लिखती हैं और अपना नाम भी बखूबी लिख लेती है.

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शांति देवी (95) का कहना है, कि पहले वह पेन भी नहीं पकड़ पाती थीं. नाम लिखना तो बहुत दूर की बात है, लेकिन बीना सिंह के प्रयासों से वह अब बैंक में अपने सिग्नेचर करती हैं. पैसा निकालना हो तो फॉर्म भर कर देती हैं, जिसके बाद बैंक के लोग भी हैरान हैं. शांति की ही तरह यहां पर और भी बहुत सी महिलाएं हैं जो पूरा दिन अपने घर के कामकाज को खत्म करके समय से अपने इस खास पाठशाला में पहुंच जाती हैं. हाथों में कॉपी, पेंसिल स्लेट और किताबें लेकर क, ख, ग, घ ए, बी, सी, डी पढ़ने वाली यह महिलाएं निश्चित तौर पर आज के बदलते सामाजिक परिवेश की सबसे बड़ी मिसाल हैं. यह भी साफ करता है, कि यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र कभी भी आड़े नहीं आती.

वृद्ध महिलाओं को स्कूल जाता देख बच्चे भी जाना चाहते है स्कूल: फिलहाल, बीना सिंह का साथ उनकी टीम के साथ उनका परिवार भी देता है. पति चंद्रशेखर सिंह एक छोटी सी डेयरी चलाते हैं और पत्नी इन महिलाओं को शिक्षित करने के साथ ही साथ घर परिवार का भी पूरा साथ देती हैं. पति के अलावा बच्चे, देवरानी, देवर और घर में मौजूद अन्य सदस्यों का भी पूरा ध्यान रखती हैं. खाना बनाना और पति के बिजनेस में उनका सहयोग करना भी बीना नहीं भूलती हैं. यही वजह है कि आज बीना के प्रयासों ने इस गांव को निरक्षर से साक्षर बनाने में बड़ा रोल अदा किया है. वृद्ध माताओं को स्कूल जाता देखकर बच्चे भी अभी स्कूल जाना चाहते हैं.

इतना ही नहीं गांव की बीना सिंह अब तक 10 ऐसी गरीब लड़कियों की शादी भी करवा चुकी हैं, जिनके मां-बाप सक्षम नहीं थे. जुलाई के महीने में भी एक गरीब बेटी की शादी का जिम्मा उन्होंने उठाया है. जिनको शादी में दिए जाने वाले सारे सामान के साथ 200 से ढाई सौ लोगों के खाने-पीने का जिम्मा बिना ही उठा रही है. इसके अलावा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनके पैरों पर उन्हें खड़ा करने के लिए तरह-तरह के सामान बनाना सीखने और ब्यूटीशियन का कोर्स करवाने का काम भी बिना सिंह अपने बल पर करती हैं.

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