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सर्वपितृ अमावस्या के दिन धरती लोक से होगी पितरों की विदाई, शुभ मुहूर्त पर ऐसे करेंगे पूजा तो मिलेगा पूर्वजों का आशीर्वाद - Sarvapitri Amavasya 2024

Sarvapitri Amavasya 2024: पितृ पक्ष में आने वाले अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को पितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से जाना चाहता है. तो आईए जानते हैं कि इस अमावस्या का क्या महत्व है और यह कब है.

Sarvapitri Amavasya 2024
Sarvapitri Amavasya 2024 (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 28, 2024, 12:51 PM IST

Updated : Oct 2, 2024, 12:56 PM IST

कुरुक्षेत्र: हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष चल रहा है. जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए और उनकी मुक्ति के लिए पिंडदान पूजा अर्चना और तर्पण किए जाते हैं. पितृ पक्ष में आने वाले अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को पितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से जाना चाहता है.

इस दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं. वहीं, अगर किसी इंसान को अपने किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु की तिथि पता नहीं है तो या किसी कारणवश उसके श्राद्ध के दिन उसकी श्राद्ध नहीं कर पाते क्या कुछ भूल चूक हो जाती है, तो उसका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है. उनके लिए पिंडदान किए जाते हैं और इस अमावस्या के दिन यह माना जाता है कि पितर धरती लोक से स्वर्ग लोक में चले जाते हैं. जो 1 साल बाद पितृपक्ष में वापस आते हैं.

कब है सर्व पितृ अमावस्या: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है. जिसे हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. इस अमावस्या का आरंभ 1 अक्टूबर को सुबह 9:34 से हो रहा है. जबकि इसका समापन 2 अक्टूबर को सुबह 2:19 पर होगा. सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए इस अमावस्या को 2 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा.

इसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना की जाती है. उसके लिए पहका कुतुप शुभ मुहूर्त का समय सुबह 11:45 से शुरू होकर दोपहर 12:24 तक रहेगा. दूसरा रोहिणी शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12:34 से दोपहर 1:34 तक रहेगा.वहीं, जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना चाहते हैं. उनके लिए तर्पण करने का शुभ मुहूर्त 2 अक्टूबर को दोपहर 1:21 से शुरू होकर 3:43 तक रहेगा. जो अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर सकते हैं.

श्राद्ध और तर्पण करने का सही तरीका: सर्व पितृ अमावस्या के दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं. लेकिन कुछ लोग कहीं धार्मिक स्थल पर जाने की बजाय अपने घर पर भी उनके लिए पूजा अर्चना करते हैं. ऐसे में सही प्रकार से दर्पण कैसे किया जाता है, यह सबसे अहम होता है. क्योंकि अगर कुछ गलती हो जाती है, तो उनके पितर उनसे नाराज हो जाते हैं. इसलिए अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान और पिंडदान करें.

सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद शुभ मुहूर्त के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पर को मोड़कर घुटनों को जमीन पर टिका कर बैठ जाएं. उसके बाद तांबे का लोटा लेकर उसमें तिल, जो, चावल , गाय का कच्चा दूध, जल , गंगाजल, सफेद फूल आदि डालें. उसके उपरांत अपने हाथ में एक कुशा लेकर दोनों हाथों में जल भरकर अपने अंगूठे के माध्यम से धरती पर जल अर्पित करें. यह विधि 11 बार करें और अपने पितरों से सुख शांति की कामना करें और उसके बाद अपने पितरों के लिए खाना निकाले, इसके साथ-साथ देवता, गाय,चींटी , कौवा और कुत्ते के लिए भी खाना निकाले. सबसे अंतिम में गरीबों वह ब्राह्मण को दान दक्षिण और वस्त्र दान करें.

अमावस्या का महत्व: पंडित ने बताया कि सर्व पितृ अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व है. क्योंकि इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ पिंडदान तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं. ताकि उनके पितरों की आत्मा को शांति मिल सके और उनको पितृ दोष से मुक्ति मिल सके. अगर किसी इंसान की कुंडली में पितृ दोष है, तो उसके घर में सुख शांति का वास नहीं होता तो वही उनके हर काम में बाधा होती है. उनका जीवन में प्रगति नहीं मिलती.

वहीं, माना जाता है कि जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना नहीं करते तो उनकी पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती. वह पृथ्वी लोक पर ही भटकती रहती है. उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए और उनको प्रश्न करने के लिए विशेष तौर पर इस अमावस्या के दिन पूजा अर्चना की जाती है. माना जाता है कि इस अमावस्या के दिन उनके सभी पितर पृथ्वी से स्वर्ग लोक में चले जाते हैं, जो 1 साल के बाद पितृपक्ष में वापस आते हैं. सनातन धर्म में इसका बहुत ही ज्यादा महत्व होता है.

सर्व पितृ अमावस्या के दिन है सूर्य ग्रहण : हिंदू पंचांग के अनुसार और खगोलीय वैज्ञानिकों के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण का भी योग बन रहा है. इसलिए कुछ लोगों के मन में शंका होती है कि सूर्य ग्रहण होने के चलते क्या उनकी पितरों के लिए की गई पूजा किसी प्रकार से बाधित हो सकती है. आपको बता दें कि सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को रात के 9:00 बजे से रात के 3:17 तक रहेगा. उस समय भारत में रात होने की वजह से उसका प्रभाव भारत में दिखाई नहीं देगा जिसके चलते पूजा पर भी उनका कोई प्रभाव नहीं होगा. लेकिन फिर भी सूर्य ग्रहण से पहले सावधानी जरूर रखनी चाहिए और सूर्य ग्रहण के समय के बाद पानी में स्नान करें और हो सके तो दान करें.

ये भी पढ़ें: तिरुपति लड्डू विवाद के बाद देश में हिंदू मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से फ्री करने का शोर क्यों ? - Tirupati Laddu controversy

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कुरुक्षेत्र: हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष चल रहा है. जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए और उनकी मुक्ति के लिए पिंडदान पूजा अर्चना और तर्पण किए जाते हैं. पितृ पक्ष में आने वाले अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को पितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से जाना चाहता है.

इस दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं. वहीं, अगर किसी इंसान को अपने किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु की तिथि पता नहीं है तो या किसी कारणवश उसके श्राद्ध के दिन उसकी श्राद्ध नहीं कर पाते क्या कुछ भूल चूक हो जाती है, तो उसका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है. उनके लिए पिंडदान किए जाते हैं और इस अमावस्या के दिन यह माना जाता है कि पितर धरती लोक से स्वर्ग लोक में चले जाते हैं. जो 1 साल बाद पितृपक्ष में वापस आते हैं.

कब है सर्व पितृ अमावस्या: पंडित विश्वनाथ ने बताया कि आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है. जिसे हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. इस अमावस्या का आरंभ 1 अक्टूबर को सुबह 9:34 से हो रहा है. जबकि इसका समापन 2 अक्टूबर को सुबह 2:19 पर होगा. सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है. इसलिए इस अमावस्या को 2 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा.

इसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना की जाती है. उसके लिए पहका कुतुप शुभ मुहूर्त का समय सुबह 11:45 से शुरू होकर दोपहर 12:24 तक रहेगा. दूसरा रोहिणी शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12:34 से दोपहर 1:34 तक रहेगा.वहीं, जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना चाहते हैं. उनके लिए तर्पण करने का शुभ मुहूर्त 2 अक्टूबर को दोपहर 1:21 से शुरू होकर 3:43 तक रहेगा. जो अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना, तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर सकते हैं.

श्राद्ध और तर्पण करने का सही तरीका: सर्व पितृ अमावस्या के दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं. लेकिन कुछ लोग कहीं धार्मिक स्थल पर जाने की बजाय अपने घर पर भी उनके लिए पूजा अर्चना करते हैं. ऐसे में सही प्रकार से दर्पण कैसे किया जाता है, यह सबसे अहम होता है. क्योंकि अगर कुछ गलती हो जाती है, तो उनके पितर उनसे नाराज हो जाते हैं. इसलिए अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान और पिंडदान करें.

सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद शुभ मुहूर्त के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पर को मोड़कर घुटनों को जमीन पर टिका कर बैठ जाएं. उसके बाद तांबे का लोटा लेकर उसमें तिल, जो, चावल , गाय का कच्चा दूध, जल , गंगाजल, सफेद फूल आदि डालें. उसके उपरांत अपने हाथ में एक कुशा लेकर दोनों हाथों में जल भरकर अपने अंगूठे के माध्यम से धरती पर जल अर्पित करें. यह विधि 11 बार करें और अपने पितरों से सुख शांति की कामना करें और उसके बाद अपने पितरों के लिए खाना निकाले, इसके साथ-साथ देवता, गाय,चींटी , कौवा और कुत्ते के लिए भी खाना निकाले. सबसे अंतिम में गरीबों वह ब्राह्मण को दान दक्षिण और वस्त्र दान करें.

अमावस्या का महत्व: पंडित ने बताया कि सर्व पितृ अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व है. क्योंकि इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ पिंडदान तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं. ताकि उनके पितरों की आत्मा को शांति मिल सके और उनको पितृ दोष से मुक्ति मिल सके. अगर किसी इंसान की कुंडली में पितृ दोष है, तो उसके घर में सुख शांति का वास नहीं होता तो वही उनके हर काम में बाधा होती है. उनका जीवन में प्रगति नहीं मिलती.

वहीं, माना जाता है कि जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना नहीं करते तो उनकी पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती. वह पृथ्वी लोक पर ही भटकती रहती है. उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए और उनको प्रश्न करने के लिए विशेष तौर पर इस अमावस्या के दिन पूजा अर्चना की जाती है. माना जाता है कि इस अमावस्या के दिन उनके सभी पितर पृथ्वी से स्वर्ग लोक में चले जाते हैं, जो 1 साल के बाद पितृपक्ष में वापस आते हैं. सनातन धर्म में इसका बहुत ही ज्यादा महत्व होता है.

सर्व पितृ अमावस्या के दिन है सूर्य ग्रहण : हिंदू पंचांग के अनुसार और खगोलीय वैज्ञानिकों के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण का भी योग बन रहा है. इसलिए कुछ लोगों के मन में शंका होती है कि सूर्य ग्रहण होने के चलते क्या उनकी पितरों के लिए की गई पूजा किसी प्रकार से बाधित हो सकती है. आपको बता दें कि सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को रात के 9:00 बजे से रात के 3:17 तक रहेगा. उस समय भारत में रात होने की वजह से उसका प्रभाव भारत में दिखाई नहीं देगा जिसके चलते पूजा पर भी उनका कोई प्रभाव नहीं होगा. लेकिन फिर भी सूर्य ग्रहण से पहले सावधानी जरूर रखनी चाहिए और सूर्य ग्रहण के समय के बाद पानी में स्नान करें और हो सके तो दान करें.

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Last Updated : Oct 2, 2024, 12:56 PM IST
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