देवघर: झारखंड विधानसभा चुनाव की तिथि की घोषणा कर दी गई है. 13 नवंबर से चुनाव शुरू होगी और 23 नवंबर को मतगणना होने के बाद यह तय हो जाएगा कि झारखंड में किस पार्टी की नई सरकार बनी है. चुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद झारखंड की विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव के प्रचार प्रसार में जुट गए हैं.
संथाल परगना में झारखंड के सबसे ज्यादा आदिवासी निवास करते हैं. साढ़े तीन करोड़ की आबादी में करीब 70 लाख की आबादी संथाल क्षेत्र में हैं. जिसमें करीब 20 लाख आबादी आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियों की नजर आदिवासियों पर है. चुनाव की घोषणा के बाद राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी समाज होगी क्योंकि झारखंड को आदिवासियों का राज्य कहा जाता है. जिस राजनीतिक दल को आदिवासी वोटरों का साथ मिलेगा वही झारखंड में अपना परचम लहरा सकता है.
संथाल के 18 सीटों में सिर्फ चार सीट पर बीजेपी के
आदिवासियों की जब बात होती है तो सबसे पहले संथाल परगना की चर्चा होती है. क्योंकि संथाल परगना के कुल 18 विधानसभा सीटों में करीब पच्चीस प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है. 18 सीटों में सिर्फ चार सीट पर ही भाजपा जीत दर्ज कर पाई है जबकि 14 सीटों पर कांग्रेस और जेएमएम ने कब्जा किया है. संथाल परगना में आदिवासी वोट पर सभी राजनीतिक पार्टियों की नजर बनी हुई है. दुमका, राजमहल, गोड्डा, पाकुड़, जामताड़ा और देवघर में रहने वाले आदिवासी इस बार लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लेने के लिए अभी से ही उत्सुक हैं.
आदिवासी वोट को पाने के लिए बीजेपी बांग्लादेशी घुसपैठ को बनाएगी मुद्दा- नारायण दास
आदिवासियों का वोट पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठा रही है. भारतीय जनता पार्टी विधायक नारायण दास ने कहा कि वर्ष 2024 के चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ सबसे अहम मुद्दा रहेगा. हमारी पार्टी ने पहले ही यह घोषणा कर दिया है कि अगर सरकार बनी तो एक-एक बांग्लादेशी को चिन्हित कर उन्हें राज्य से बाहर निकाला जाएगा. उन्होंने हेमंत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हेमंत सरकार अगर आदिवासियों के हित की बात करती तो आज संथाल की डेमोग्राफी में बदलाव देखने को नहीं मिलता. वर्तमान सरकार सिर्फ आदिवासियों के हित की दिखावा करती है. उन्हें सिर्फ अपने सत्ता से प्रेम है चाहे आदिवासियों का अस्तित्व क्यों न खत्म हो जाए.
क्या कहते हैं आदिवासी वोटर्स
देवघर के सोनारायठाड़ी के रहने वाले आदिवासी समाज के युवक विनोद किस्कू बताते हैं कि इस बार आदिवासी समाज उसी को अपना मत देगा जो आदिवासियों के हित के लिए काम करेगा. देवघर के लोगों ने कहा कि आज संथाल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज के लोगों को ब्लॉक स्तर से लेकर प्रमंडल स्तर तक भ्रष्टाचार से जूझना पड़ रहा है. आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भ्रष्टाचार चरम पर है. भ्रष्टाचार के साथ साथ आदिवासी बच्चों के बीच शिक्षा की घोर कमी है. इसलिए इस बार आदिवासी समाज उसी राजनीतिक दल को अपना मत देंगे जो आदिवासियों को शिक्षित करने का काम करेंगे.
वहीं ग्रामीण नीलकंठ बताते हैं कि झारखंड सरकार की तरफ से दी जा रही है योजनाओं का लाभ लोगों को मिल रहा है. ऐसे में अगर योजनाओं की राशि में बढ़ोतरी की जाती है तो वर्तमान सरकार को दोहराने के लिए भी यहां के आदिवासी विचार कर सकते हैं. देवघर के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी मतदाता बताते हैं कि आज भी कई ऐसे गांव हैं, जहां पर घंटों तक बिजली गायब रहती है. जिस वजह से गांव में रहने वाले लोगों को कई सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है. इसीलिए इस वर्ष आदिवासी समाज बिजली की समस्या को मुद्दा बनाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा.
जेएमएम-कांग्रेस हर वक्त आदिवासियों के अस्तित्व को बचाने के लिए तैयार- कांग्रेस
कांग्रेस नेता नियाज अहमद बताते हैं कि इस वर्ष आदिवासी एक बार फिर से इंडिया गठबंधन की सरकार को अपना समर्थन देगी. क्योंकि जिन क्षेत्रों में आदिवासियों की संख्या है. उन क्षेत्रों में आदिवासी कैंडिडेट को महत्व दिया जाता है जो कहीं ना कहीं आदिवासियों के लिए लाभकारी है. वहीं उन्होंने कहा कि कांग्रेस और जेएमएम हमेशा ही लोगों की हित में जुटी रहती है. चुनाव के समय लोगों के हित के बारे में सोचना सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं का काम होता है. कांग्रेस और झामुमो के कार्यकर्ता हर वक्त आदिवासियों के हित के बारे में सोचती है.
आदिवासी महिलाएं हेमंत सरकार में असुरक्षित- भाजपा
वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता अनिरुद्ध झा बताते हैं कि आज झारखंड में अशांति बनी हुई है. देवघर के मधुपुर की बात करें या फिर दुमका की बात करें हर जगह महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं. इसीलिए इस बार आदिवासी समाज के साथ-साथ सामान्य वर्ग के समाज भी भारतीय जनता पार्टी के साथ रहेंगे. हेमंत सरकार के राज में आज युवा ठगे से महसूस कर रहे हैं. वर्ष 2019 के चुनाव से पहले हेमंत सोरेन ने बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही थी. लेकिन आज भी युवाओं के लिए बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है.
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