कुल्लू: सनातन धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है. माघ मास की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा इसे तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी और स्वस्थ आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय चंद्रमा को अर्घ देकर अपना व्रत खोलती हैं.
किसकी की जाती है पूजा? संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. आचार्य दीप कुमार बताते हैं कि संकष्टी चतुर्थी पर जो भगवान गणेश की पूजा करते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस बार माघ मास की संकष्टी चतुर्थी 29 जनवरी सोमवार को मनाई जाएगी और चंद्रोदय का समय शाम 8:52 पर रहेगा. इस चतुर्थी का प्रारंभ 29 जनवरी को सुबह 6:10 पर होगा और समापन 30 जनवरी सुबह 8:54 पर होगा.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व: आचार्य दीप कुमार ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन भगवान गणेश को तिल गुड़ और गन्ने का भोग लगाया जाता है. इसलिए इसे तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा भगवान शिव, माता पार्वती, चंद्रमा और कार्तिकेय भगवान की पूजा का भी विधान धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया है.
कैसे करें व्रत: आचार्य दीप कुमार का कहना है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन महिलाओं को निर्जला व्रत रखना चाहिए. चंद्रोदय से पहले भगवान गणपति की पूजा करनी चाहिए और चांद निकलने के बाद उसे अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए. इस दिन महिलाओं को काले रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें तो उसे समय जल के छींटे आपके पैरों पर नहीं पढ़ने चाहिए.
व्रत और पूजा की विधि: आचार्य दीप कुमार ने कहा कि संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह के समय महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान गणेश की पूजा करें. भगवान गणेश के मंत्र का भी इस दिन जाप करना चाहिए और संकट चौथ व्रत की कथा सुननी चाहिए. इससे भगवान गणेश भी भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं और जीवन में सुख समृद्धि का वरदान देते हैं.