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1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में गणपति की अद्भुत प्रतिमाएं, नृत्य मुद्रा में दर्शन देते हैं विघ्नहर्ता - sagar rehli dancing ganesh

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 12, 2024, 6:00 PM IST

गणेश चतुर्थी में भगवान गणेश को प्रसन्न करने उनके भक्त तरह-तरह के जतन कर रहे हैं लेकिन ये भक्तों को कम ही मालूम होगा कि नृत्य मुद्रा में गणेश पूजन का विशेष मंगलकारी फल मिलता है. मान्यता है कि गणेश जी जब अति प्रसन्न होते हैं, तब वह नृत्य करते हैं जहां तक नृत्य मुद्रा में गणेश प्रतिमा की बात है तो रहली में स्थित 1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में ऐसी दो प्रतिमाएं स्थापित हैं.

1000 YEAR OLD SURYA TEMPLE REHLI DANCING GANESH
1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में गणपित की अद्भुत प्रतिमाएं (Etv Bharat)

सागर : रहली में स्थित 1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में मौजूद गणेश प्रतिमाओं में से एक नृत्य मुद्रा में है, तो एक त्रिभंग मुद्रा में. जानकार बताते हैं कि रहली का सूर्य मंदिर कलचुरी कालीन है. कलचुरीकाल के शासक शिव जी की उपासना और शिव परिवार का पूजन करते थे.

मंदिर की जानकारी देते इतिहासकार (Etv Bharat)

शिव परिवार को साथ गणपति पूजन की परंपरा

डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे कहते हैं, '' रहली सूर्य मंदिर में प्रतिमाएं दीवारों पर लगी हैं, वह शैव धर्म से संबंधित हैं. शिव परिवार के सदस्य के रूप में भगवान गणेश लोकप्रिय रहे हैं. परिवार में शिव-पार्वती के बाद गणेश सर्वप्रिय रहे हैं. गणपति को गणों का नायक और विघ्नहर्ता भी कहा गया है. भगवान गणेश और शिव परिवार की प्रतिमाओं से स्पष्ट हैं कि यहां शिव परिवार की पूजा की परंपरा थी. समकालीन शासक चंदेल, परमार और प्रतिहार भी शैवधर्म को मानते थे और शिव परिवार में गणेश जी की पूजा की परंपरा विशेष रूप से थी.''

SAGAR REHLI DANCING GANESH
1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में गणपित की अद्भुत प्रतिमाएं (Etv Bharat)

मूर्तिकला से स्पष्ट की गणेश प्रतिमाएं कलचुरीकाल की

रहली क्षेत्र के सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं हैं, उससे स्पष्ट है कि ये सूर्य मंदिर कलचुरीकाल का रहा होगा. ये प्रतिमाएं कलचुरीकाल की हैं और वर्तमान मेंं
सूर्य मंदिर अपने मूल स्वरूप में नहीं है. लेकिन मंदिर में नटराज, देवी, गणेश और विष्णु की प्रतिमाएं संग्रहित की गई हैं. रहली क्षेत्र में कल्चुरियों का शासन रहा है. यहां जो प्रतिमाएं मिली वह सभी कलचुरी काल की हैं. उनमें कलचुरी काल की मूर्तिकला स्पष्ट नजर आती.

विशेष नृत्य मुद्रा में भगवान गणेश

कलचुरी कालीन जिन मंदिरों का निर्माण किया गया, उनमें गणेश प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं. उमा महेश्वर की प्रतिमा में शिव परिवार गणेश, कार्तिकेय और शिव के गण दर्शाए गए हैं. इसके साथ रहली सूर्य मंदिर में गणेश जी की स्वतंत्रत प्रतिमाएं भी नजर आती हैं. सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं शिलाफलक पर लगाई गई हैं, वह स्वतंत्र प्रतिमाएं हैं. इन प्रतिमाओं को दो स्तंभों के बीच में दर्शाया गया है.

1000 year old surya temple rehli
शिव परिवार को साथ गणपति पूजन की परंपरा (Etv Bharat)

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भगवान राम की मूर्तियों से बनाई गणेश प्रतिमा, बर्तन, कांच और हार्डवेयर से दिखा चुके हैं कमाल

नृत्य मुद्रा में गणेश प्रतिमा

पहली प्रतिमा नृत्य गणेश की प्रतिमा है, जिसमें नृत्य गणेश को चतुर्भुजी दर्शाया गया है. उनके एक हाथ में परशु और एक हाथ मेंं पार्श्व और मोदक भी है. गणेश का एक हाथ नृत्य मुद्रा में है. यह नृत्य मुद्रा की अद्भुत प्रतिमा है, जिसमें गणेश जी मूषक पर नृत्य करते हुए दर्शाए गए हैं. ऐसा माना जाता है कि गणेश जब नृत्य मुद्रा में होते हैं, तो काफी प्रसन्न और मंगलकारी होते हैं. इस मुद्रा में गणेश पूजा भी अच्छी मानी जाती है.

त्रिभंग मुद्रा में गणेश

रहली सूर्य मंदिर की दूसरी गणेश प्रतिमा त्रिभंग मुद्रा में है, जो नृत्य मुद्रा की तरह चतुर्भुजी है. इस प्रतिमा में भी एक हाथ में परशु है लेकिन दूसरे हाथ में एक आयुध अस्पष्ट है. एक हाथ में पार्श्व है और एक हाथ अभय मुद्रा में है. गणेश जी की मूर्ति पारंपरिक आभूषण पहने हुए हैं. भगवान गणेश की त्रिभंग मुद्रा की प्रतिमा भी मंगलकारी मानी जाती है.

सागर : रहली में स्थित 1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में मौजूद गणेश प्रतिमाओं में से एक नृत्य मुद्रा में है, तो एक त्रिभंग मुद्रा में. जानकार बताते हैं कि रहली का सूर्य मंदिर कलचुरी कालीन है. कलचुरीकाल के शासक शिव जी की उपासना और शिव परिवार का पूजन करते थे.

मंदिर की जानकारी देते इतिहासकार (Etv Bharat)

शिव परिवार को साथ गणपति पूजन की परंपरा

डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे कहते हैं, '' रहली सूर्य मंदिर में प्रतिमाएं दीवारों पर लगी हैं, वह शैव धर्म से संबंधित हैं. शिव परिवार के सदस्य के रूप में भगवान गणेश लोकप्रिय रहे हैं. परिवार में शिव-पार्वती के बाद गणेश सर्वप्रिय रहे हैं. गणपति को गणों का नायक और विघ्नहर्ता भी कहा गया है. भगवान गणेश और शिव परिवार की प्रतिमाओं से स्पष्ट हैं कि यहां शिव परिवार की पूजा की परंपरा थी. समकालीन शासक चंदेल, परमार और प्रतिहार भी शैवधर्म को मानते थे और शिव परिवार में गणेश जी की पूजा की परंपरा विशेष रूप से थी.''

SAGAR REHLI DANCING GANESH
1000 साल पुराने सूर्य मंदिर में गणपित की अद्भुत प्रतिमाएं (Etv Bharat)

मूर्तिकला से स्पष्ट की गणेश प्रतिमाएं कलचुरीकाल की

रहली क्षेत्र के सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं हैं, उससे स्पष्ट है कि ये सूर्य मंदिर कलचुरीकाल का रहा होगा. ये प्रतिमाएं कलचुरीकाल की हैं और वर्तमान मेंं
सूर्य मंदिर अपने मूल स्वरूप में नहीं है. लेकिन मंदिर में नटराज, देवी, गणेश और विष्णु की प्रतिमाएं संग्रहित की गई हैं. रहली क्षेत्र में कल्चुरियों का शासन रहा है. यहां जो प्रतिमाएं मिली वह सभी कलचुरी काल की हैं. उनमें कलचुरी काल की मूर्तिकला स्पष्ट नजर आती.

विशेष नृत्य मुद्रा में भगवान गणेश

कलचुरी कालीन जिन मंदिरों का निर्माण किया गया, उनमें गणेश प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं. उमा महेश्वर की प्रतिमा में शिव परिवार गणेश, कार्तिकेय और शिव के गण दर्शाए गए हैं. इसके साथ रहली सूर्य मंदिर में गणेश जी की स्वतंत्रत प्रतिमाएं भी नजर आती हैं. सूर्य मंदिर में जो प्रतिमाएं शिलाफलक पर लगाई गई हैं, वह स्वतंत्र प्रतिमाएं हैं. इन प्रतिमाओं को दो स्तंभों के बीच में दर्शाया गया है.

1000 year old surya temple rehli
शिव परिवार को साथ गणपति पूजन की परंपरा (Etv Bharat)

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नृत्य मुद्रा में गणेश प्रतिमा

पहली प्रतिमा नृत्य गणेश की प्रतिमा है, जिसमें नृत्य गणेश को चतुर्भुजी दर्शाया गया है. उनके एक हाथ में परशु और एक हाथ मेंं पार्श्व और मोदक भी है. गणेश का एक हाथ नृत्य मुद्रा में है. यह नृत्य मुद्रा की अद्भुत प्रतिमा है, जिसमें गणेश जी मूषक पर नृत्य करते हुए दर्शाए गए हैं. ऐसा माना जाता है कि गणेश जब नृत्य मुद्रा में होते हैं, तो काफी प्रसन्न और मंगलकारी होते हैं. इस मुद्रा में गणेश पूजा भी अच्छी मानी जाती है.

त्रिभंग मुद्रा में गणेश

रहली सूर्य मंदिर की दूसरी गणेश प्रतिमा त्रिभंग मुद्रा में है, जो नृत्य मुद्रा की तरह चतुर्भुजी है. इस प्रतिमा में भी एक हाथ में परशु है लेकिन दूसरे हाथ में एक आयुध अस्पष्ट है. एक हाथ में पार्श्व है और एक हाथ अभय मुद्रा में है. गणेश जी की मूर्ति पारंपरिक आभूषण पहने हुए हैं. भगवान गणेश की त्रिभंग मुद्रा की प्रतिमा भी मंगलकारी मानी जाती है.

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