सागर। पान की खेती के लिए बुंदेलखंड का नाम कभी देश भर में जाना जाता था. यहां से बड़े पैमाने पर पान देश भर में और विदेशों तक सप्लाई होता था. लेकिन अब पान की खेती का कारोबार सिमट रहा है और पहले के मुकाबले अब पान की खेती महज 25 प्रतिशत ही बची है. पान की खेती करने वाले किसानों की माने तो सरकारी नीतियों और गुटखा लाॅबी के कारण पान की खेती का व्यवसाय धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है. पान किसान अब दूसरे धंधे और व्यवसाय की तरफ रूख करते जा रहे हैं.
बुंदेलखंड में होती है पान की खेती
बुंदेलखंड की बात करें तो सागर और छतरपुर दो ऐसे जिले हैं, जहां पिछले 100 सालों से चौरसिया समाज के लोग पान की खेती करते आ रहे हैं. सागर जिले के रहली विकासखंड के बलेह का बंगला पान तो पूरे देश में मशहूर है. छतरपुर जिले के महाराजपुर इलाके में बड़े पैमाने पर पान की खेती की जाती थी लेकिन समय के साथ-साथ पान की खेती का रकबा ना के बराबर बचा है. पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि पहले के मुकाबले पान की खेती अब सिर्फ 25 फीसदी रह गयी है.
![Bundelkhand pan ki kheti](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-06-2024/mp-sgr-01-pan-kisan-problem-spl-7208095_14062024165711_1406f_1718364431_113.jpg)
दम तोड़ रहा है पान का व्यवसाय
एक समय था जब पान की खेती करने वाले किसान बढ़िया मुनाफा कमाते थे और पान की डिमांड देश भर के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश तक होने के कारण बुंदेलखंड के पान किसान काफी मुनाफा कमा रहे थे. लेकिन सरकार की उपेक्षा के चलते पान की खेती ने दम तोड़ दिया. दरअसल पान की खेती की लागत काफी ज्यादा होती है और रखरखाव में काफी मेहनत करनी होती है. मौसम का मिजाज थोड़ा भी बदलने पर पान की खेती को नुकसान होता है लेकिन सरकार द्वारा पान की खेती को सामान्य फसलों या उद्यानिकी फसलों में शामिल नहीं किए जाने के कारण किसानों को पान की खेती में नुकसान पर मुआवजा या राहत नहीं मिलती है. इसके अलावा गुटखा और पानमसाला के बढ़ते चलन के कारण पान का क्रेज कम हुआ है. इसलिए पान की खेती करने वाले किसानों ने धीरे-धीरे पान की खेती से मुंह मोडकर दूसरे धंधे या व्यवसाय शुरू कर दिए हैं.
![Betel Farming Shrink in Bundelkhand](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14-06-2024/mp-sgr-01-pan-kisan-problem-spl-7208095_14062024165711_1406f_1718364431_325.jpg)
एक एकड़ में 5 से 6 लाख की लागत
सागर जिले के रहली विकासखंड के बलेह गांव में पान की खेती करने वाले किसान दयाशंकर चौरसिया बताते हैं कि "यहां पर पान की खेती कम से कम 100 साल से हो रही है. आज ये हालात हैं कि सिर्फ 20 प्रतिशत लोग पान की खेती कर रहे हैं. इसकी लागत ज्यादा है और फायदा कम है." महेश चौरसिया बताते हैं कि "मैं करीब 30 साल से पान की खेती कर रहा हूं. एक एकड़ में कम से कम 5 से 6 लाख की लागत आती है, अगर अच्छी फसल मिली तो 10 लाख रूपए तक मिल जाते हैं लेकिन इकट्ठा नहीं बिक पाता है. यहां पहले करीब 200 परिवार पान की खेती करते थे लेकिन अब सिर्फ 25 फीसदी लोग पान की खेती कर रहे हैं, 75 प्रतिशत लोगों ने पान की खेती छोड़ दी है."
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'राजपत्र में प्रकाशन के बाद मिलेगा मुआवजा'
उद्यानिकी विभाग के तकनीकी अधिकारी पी डी चौबे कहते हैं कि "फिलहाल नुकसान होने पर सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिलता लेकिन उच्च तकनीक से पान की खेती करने के लिए उद्यानिकी विभाग द्वारा अनुदान दिया जाता है. किसान को डीबीटी के माध्यम से अनुदान दिया जाता है. मुआवजे के लिए फसल को उद्यानिकी फसल में शामिल करने के लिए सरकार ने प्रावधान किए हैं. सरकार के फैसले के राजपत्र में प्रकाशन के बाद मुआवजा और राहत मिलना शुरू होगी."