देहरादून: उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे मातृ मृत्यु दर कम किए जाने को लेकर स्वास्थ्य विभाग कार्ययोजना तैयार करने जा रहा है. ताकि, राष्ट्रीय स्तर पर एमएमआर के आंकड़ों में बेहतर सुधार किया जा सके. इसी कड़ी में स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक ली. बैठक के दौरान मंत्री ने बच्चों और महिलाओं में एनीमिया की कमी को दूर करने के लिए जिला स्तर पर विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिए. साथ ही विभागीय योजनाओं की जानकारी जनता को हो और वो इसका लाभ उठा सके, इसके लिए प्रचार-प्रसार करने को कहा. इसके लिए आईईसी विभाग को प्रदेश और जिला स्तर पर कार्ययोजना के तहत काम करने के निर्देश दिए.
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की तीसरे चरण की समीक्षा बैठक ली. बैठक के दौरान प्रदेश में मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए बृहद कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए. साथ ही एनएचएम सलाहकार और पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक (डीजी हेल्थ) तृप्ति बहुगुणा को कार्ययोजना तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी. खासकर प्रदेश के जिन जिलों में मातृ मृत्यु दर की स्थित गंभीर है, उन जिलों पर फोकस करने के निर्देश दिए गए हैं. जिससे मातृ मृत्यु दर को कम करते हुए एसडीजी टारगेट 2030 के तहत प्रति एक लाख लाइव बर्थ को शत प्रतिशत तक लाया जा सके.
सभी जिला और उप जिला अस्पतालों को डायलिसिस की सुविधा से किया जाएगा लैस: मंत्री रावत ने कहा कि वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 103 है. जबकि, पूरे देश की मातृ मृत्यु दर 97 है. बच्चों और महिलाओं में एनीमिया की कमी दूर करने के लिए भी विशेष अभियान चलाए जाए. उन्होंने बताया कि डायलिसिस की सुविधाएं एनएचएम के तहत उपलब्ध कराई जा रही है. जिसके तहत सभी जिला और उप जिला अस्पतालों को डायलिसिस की सुविधा से लैस करने को कहा गया है. ताकि, किडनी के मरीजों को बड़े अस्पतालों के चक्कर न काटने पड़े.
वहीं, बैठक के दौरान मंत्री रावत ने प्रदेश और जिला स्तर पर आईईसी की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताते कहा कि आईईसी की कार्यप्रणाली में जल्द से जल्द सुधार लाया जाए. क्योंकि, विभाग की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने में आईईसी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में आईईसी को राज्य और जिला स्तर पर विशेष कार्ययोजना तैयार कर स्वास्थ्य योजनाओं के प्रचार-प्रसार में तेजी लाने के निर्देश दिए. साथ ही हर तीन महीने में आईईसी कार्यशाला का आयोजन भी किया जाए.
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