रीवा। क्या भला कोई आम इतना खास हो सकता है जिसके लिए भारत सरकार को डाक टिकट तक जारी करना पड़ा गया. वैसे तो फलों का राजा आम ही होता है लेकिन आमों का एक राजा भी है जिसे 'सुंदरजा' आम(Sundarja Mango) कहा जाता है. सुंदरजा आम बेहद खास है. इसकी मिठास कुछ अलग है जिसके चलते यह देश भर में काफी मशहूर है. सुंदरजा आम बाहर से जितना सुन्दर है उतनी ही सुंदरता इसके स्वाद में भी है. आम की खासियत इतनी ज्यादा है कि साल 1968 में भारत सरकार की ओर से सुंदरजा आम के नाम पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया था.
रीवा राजघराने की देन है 'सुंदरजा' आम
गोविंदगढ़ के किला परिसर में मौजूद है सुंदरजा आम. यहां आम के बाग और सुंदरजा के पौधे रीवा राजघराने की देन है. बताया जाता है कि रीवा रियासत के महाराजा रघुराज सिंह जू देव ने साल 1885 में गोविंदगढ़ में इस खास आम की ब्रीड को तैयार करवाया था. जिसके बाद गोविन्दगढ़ किले के तालाब किनारे इसका रोपण किया गया था. अब इसी ब्रीड की प्रजाति आज विंध्य सहित प्रदेश के कुछ अन्य हिस्सों में फैली हुई है. महाराजा रघुराज सिंह ने सुंदरजा आम के पेड़ की ब्रीडिंग करवाकर उसे गोविन्दगढ़ तालाब के किनारे लगवाया था, तब से लेकर अब तक 139 साल बीत गए और सुन्दरजा आम का वह पहला पेड़ आज भी अपनी जगह पर मौजूद है.
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'सुंदरजा' आम की जानिए खासियत
सुंदरजा आम को आंख बंदकर इसकी खुशबू से भी पहचाना जा सकता है. जिसके चलते लोग सुंदरजा आम को बेहद पसंद करते हैं. सुंदरजा आम सिर्फ रीवा के गोविंदगढ़ में ही पैदा होता है. यहां की जलवायु इन आमों के पेड़ों के लिए अच्छी मानी जाती है. इस आम की सबसे खास बात यह है कि इस आम में विटामिन ए, विटामिन सी, कार्बोहाईड्रेट और चीनी की कम मात्रा होती है. इसका औषधीय गुण यह है कि डायबिटीज के पेशेंट यदि इसे खाते हैं, तो यह नुकसान नहीं पहुंचाता. यही वजह है कि डायबिटीज के पेशेंट इस आम को खूब पसंद करते हैं. इस आम को कुछ दिनों तक स्टोरेज करके भी रखा जा सकता है. इस खास आम ने समूचे देश में अपनी जड़ें जमा लीं है. सुंदरजा के एक छोटे से पेड़ में तकरीबन 125 किलो तक आम की पैदावार हो जाती है. जिसमें से एक एक आम का वजन कम से कम 200 ग्राम से 500 ग्राम तक होता है.
सबसे बड़ा आम अनुसंधान केन्द्र है यहां
जिले के गोविन्दगढ़ और रीवा के कुठूलिया में स्थित प्रदेश का सबसे बड़ा आम अनुसंधान केन्द्र स्थापित है. इस अनुसंधान केंद्र में 150 से भी ज्यादा आम की प्रजाति वाले पेड़ मौजूद हैं. इन सभी आम की प्रजातियों वाले इस बगीचे में एक ऐसे खास आम की उपज की जाती है जो देश भर में अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए है जिसका नाम सुंदरजा है. इसके अलावा यहां अमरपाली, दशहरी, लंगड़ा, मल्लिका, बेंगलुरु, चौसा, बॉम्बे ग्रीन सहित लॉकडाउन के नाम से भी एक प्रजाति भी शामिल है.
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GI टैग के साथ डाक टिकट भी हो चुका जारी
इस आम की खासियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 1968 में भारत सरकार की ओर से सुंदरजा आम के नाम का 50 पैसे वाला एक डाक टिकट भी जारी हो चुका है. यह आम स्वाद में इतना रसीला है कि बीते साल ही इसे GI टैग की उपलब्धि भी हासिल हुई है.
एक्सपोर्ट होता है सुंदरजा आम
अपनी खूबियों के चलते ही यह आम एक्सपोर्ट होता है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, पाकिस्तान, इंग्लैंड और अमेरिका सहित अरब देशों में सुंदरजा अपनी खासियत के चलते आम प्रेमियों को लुभाता है. विदेशों में इस आम की खूब डिमांड है. जिस तरह से लखनऊ में दशहरी आम मशहूर है उसी तरह से रीवा का सुंदरजा. लखनऊ से जैसे दशहरी आम रीवा के लिए ट्रांसपोर्ट किया जाता है अब उसी तरह से सुंदरजा आम लखनऊ के लिए भेजा जाता है. इसके साथ ही लखनऊ के आलावा इस खास आम को बड़ौदा, बनारस, गोरखपुर, और छत्तीसगढ़ के लिए भी ट्रांसपोर्ट किया जाता है.
राजघराने की खास पसंद बना सुंदरजा आम
सुंदरजा आम रीवा राजघराने की खास पसंद में शामिल था. वैसे गोविंदगढ़ की पहचान सफेद शेरों से रही है. दुनिया भर में मौजूद सफेद शेर रीवा के इसी गोविंदगढ़ की देन हैं ठीक उसी तरह से सुंदरजा आम भी गोविंदगढ़ की ही देन है. यह आम रीवा राजघराने की खास पंसद रहा है.
कृषि वैज्ञानिक ने बताई सुंदरजा की खासियत
कृषि वैज्ञानिक टीके सिंह ने बताया कि "1885 में महाराजा रघुराज सिंह ने इस खास आम के पेड़ की ब्रीडिंग कराई थी. जिसका पहला पेड़ आज भी गोविंदगढ़ तलाब के किनारे मौजूद है. इस सुंदरजा आम के नाम से 1968 में भारत ने एक डॉक टिकट भी जारी किया था. बीते वर्ष इस आम को GI टैग की उपलब्धि हासिल हुई थी. रीवा में लगभग 100 से 150 एकड़ भूमि में इसकी खेती की जाती है. जिसमें ढाई टन से ज्यादा की पैदावार केवल एक एकड़ जमीन में होती है. बाजार में इस आम की कीमत भी इसे खास बनाती है क्योंकि फुटकर विक्रेता इसे 400 से 500 रुपये किलो की दर से बेचते हैं".