जयपुर: रेवासा पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य वेदांती महाराज का देवलोकगमन होने के बाद शनिवार को अग्नि संस्कार के रूप में उनका अंतिम संस्कार किया गया. रेवासा के जानकीनाथ मंदिर के नजदीक गौशाला में उनका अंतिम संस्कार किया गया. इससे पहले महाराज की बैंकुठी को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण करवाया गया और फिर जानकी नाथ मंदिर से उनकी अंतिम यात्रा प्रारंभ हुई. इस दौरान देश-विदेश से बड़ी संख्या में राघवाचार्य महाराज के अनुयायी भी रेवासा धाम पहुंचे. अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में संत समाज से साधु संत भी मौजूद रहे. यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, दांतारामगढ़ विधायक वीरेन्द्र सिंह और हवामहल विधायक और हाथोज धाम के पीठाधीश्वर बालमुकुंदाचार्य इस दौरान अंतिम यात्रा में शामिल हुए.
महंत राजेंद्र दास होंगे रेवासा धाम के पीठाधीश्वर: रेवासा पीठाधीश्वर राघवाचार्य के निधन के बाद उनकी इच्छा अनुसार पीठ के अगले पीठाधीश्वर की घोषणा की गई. राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने राघवाचार्य महाराज की वसीयत पढ़ कर सुनाई. वसीयत के अनुसार महंत राजेंद्र दास देवाचार्य अब नए पीठाधीश्वर होंगे. राघवाचार्य महाराज ने 9 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. राजेंद्र दास देवाचार्य मलूक पीठाधीश्वर बंसीवट वृंदावन को रेवासा पीठाधीश्वर के रूप में उत्तराधिकारी घोषित किया गया है. शनिवार सुबह राघवाचार्य महाराज के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए महंत राजेंद्र दास देवाचार्य मलूका पीठाधीश्वर बंसीवट वृंदावन धाम से रेवासा पहुंचे.
संत परंपरा से जुड़ा रहा है रेवासा धाम: वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार गलता के महान संत कृष्ण दास पयहारी के शिष्य स्वामी अग्रदेवाचार्य ने सोलहवीं शताब्दी में रेवासा को अपनी तपस्या स्थली बनाया था. अग्रदेवाचार्य ने विश्व ब्रह्म ज्ञान, श्रीराम भजन मंजरी, हितोपदेश, शृंगार रस सागर, उपासना बावनी के अलावा संस्कृत ग्रंथ अष्टयाम, ध्यान मंजरी आदि की रचना की थी. स्वामी अग्रदेवाचार्य की ख्याति को सुनकर आमेर के तत्कालीन नरेश राजा मान प्रथम भी उनसे मिलने धाम पहुंचे थे और धार्मिक शिक्षा ग्रहण की थी. अग्रदेवाचार्य बारह महीनों राम रास रचाया करते थे. इनकी बनाई रास मंडलियों ने संपूर्ण भारत में कृष्ण की तरह राम रस की धारा को फैलाया.
शेखावाटी के राजा रायसल के अलावा जयपुर और सीकर रियासत से रैवासा पीठ का जुड़ाव बना रहा. शुक्रवार को ब्रह्मलीन हुए रेवासा पीठ के 17 वें पीठाधीश्वर डॉ. राघवाचार्य वेदान्ती ने कई ग्रंथों की रचना की थी.साथ ही राम जन्म भूमि आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. उन्होंने वेद विज्ञान का विस्तार करने के साथ ही रेवासा को राम भक्ति का प्रमुख केन्द्र बनाया था. वरिष्ठ पत्रकार शेखावत बताते हैं कि रेवासा धाम का इतिहास इतना समृद्ध है कि देश में कायम 52 द्वारों में से चतुर सम्प्रदाय के 14 द्वारे अकेले रेवासा पीठ के अन्तर्गत आते हैं. इनमें अयोध्या और तिरुपति में हाथीराम मठ भी रेवासा से जुड़े हैं.
तुलसीदास भी जुड़े रहे थे रेवासा धाम से: भक्तमाल के टीकाकार प्रिया दास आदि ने तुलसीदास जी के रेवासा जाने का उल्लेख किया है. अग्रस्वामी चरितम में तुलसीदास जी के रेवासा में आने का उल्लेख है. गोस्वामी तुलसीदास रेवासा के जानकीनाथ मंदिर में रहे थे. रेवासा प्रवास के दौरान उन्होंने ‘जानकी नाथ सहाय करें तब कौन बिगाड़ करे नर तेरो...’ भजन की रचना की थी. उन्होंने अयोध्या कांड के कुछ पद भी रेवासा में लिखे थे. पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत का रेवासा पीठ से गहरा लगाव रहा. भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी आदि भी इस पीठ से जुड़े हुए हैं.