रांची: शरीर में सीसे यानी लेड की मात्रा तय मानक 8.5 माइक्रो ग्राम से अधिक होने पर इसका घातक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है. झारखंड के लोगों के स्वास्थ्य पर सीसा का क्या प्रभाव पड़ रहा है और यह हमारी वर्तमान के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी को कितना प्रभावित करेगा इसके लिए यूएस-एआईडी (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) के सहयोग से रांची में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है . इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत झारखंड में मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण पर सीसे के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है.
गर्भवती महिलाओं की हो रही है लेड टेस्टिंग
16 अक्टूबर 2024 से रांची के सदर अस्पताल में गर्भवती महिलाओं की लेड टेस्टिंग शुरू हो गई है. करीब एक वर्ष तक चलने वाले इस पायलट प्रोजेक्ट का जो प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आया है उसके अनुसार लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है. यानी उनके शरीर में सीसे की मात्रा सामान्य से अधिक पायी गई है.
इस संबंध में रांची सदर अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक और पैथोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. बिमलेश कुमार सिंह बताते हैं कि पूरी रिपोर्ट आने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट में यह तथ्य आया है कि कई सैंपल की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है.
नवजात में भी आ जाता है सीसा
झारखंड में यूएस-एआईडी के हेड और पूर्व स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख डॉ. सुमंत मिश्रा ने बताया कि यह पायलट प्रोजेक्ट एक स्टडी का भाग है. इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि झारखंड प्रदेश में सीसा जनित बीमारियों की क्या स्थिति है और वह गर्भवती महिलाओं से नई पीढ़ी को कितना प्रभावित कर रहा है.
उन्होंने बताया कि झारखंड में लोगों के शरीर में सीसा की मात्रा क्यों बढ़ रही है. इसके लिए एक विस्तृत स्टडी की जा रही है . गर्भवती महिलाओं के सैंपल जांच के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों में पानी, फसल, मसालों की भी जांच हो रही है, ताकि उन सोर्स का पता लगाया जा सके. डॉ सुमंत मिश्रा ने कहा कि जियो टैग भी कराई जा रही है.
स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है सीसा
डॉ. सुमंत मिश्रा ने बताया कि सीसा के स्वास्थ्य पर प्रभाव का भारत में कोई खास स्टडी नहीं हुआ है. ऐसे में यह स्टडी बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि शरीर में सीसे की मात्रा बढ़ने से मानसिक बीमारियां, बच्चों में आई क्यू लेवल, लीवर,किडनी सहित कई बीमारियां हो सकती हैं.
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