ग्वालियर। अनेकों बलिदानों और लंबे संघर्ष के बाद मिली आजादी को देश के लोगों के लिए कल्याणकारी और न्यायसंगत बनाने और सत्ता का सुचारु संचालन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए देश के नेताओं, समाज सुधारकर, न्यायवेत्ता आदि ने घूम-घूमकर वर्षों तक अध्ययन किया. लंबी कवायद के बाद 26 नवंबर 1949 को देश के लिए एक सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया. यानी आज के दिन ही संविधान सभा ने भारतीय गणराज्य के लिए संविधान को मंजूरी दी. जिसे 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद ने अंगीकार किया. इसलिए यह दिन हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं.
भारतीय संविधान तो हमारी संसद का हिस्सा है, लेकिन ग्वालियर के लिए बड़े गौरव की बात है कि इस संविधान का ग्वालियर से भी एक भावनात्मक रिश्ता है. ग्वालियर में संविधान की मूल प्रति सुरक्षित है. आज गणतंत्र दिवस पर यह सबको दिखाई जाती है. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में युवक और युवतियां यहां पहुंच रहे हैं.
महाराज बाड़ा में रखी संविधान की दुर्लभ प्रति
ग्वालियर में महाराज बाड़ा स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में आज भी भारतीय संविधान की एक मूल दुर्लभ प्रति सुरक्षित रखी हुई है. जिसे हर वर्ष संविधान दिवस, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है. अब यह पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है. लिहाजा इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है. हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं. 1927 में सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित कराये गये इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई गयी थी. तब यह मोती महल में स्थापित किया गया था. तब इसका नाम आलीजा बहादुर लाइब्रेरी था. कालांतर में इसे महाराज बाड़ा स्थित एक भव्य स्वतंत्र भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. स्वतंत्रता के पश्चात् इसका नाम संभागीय केंद्रीय पुस्तकालय कर दिया गया.
11 प्रतियां की गई थी तैयार
आखिरकार ग्वालियर के इस केंद्रीय पुस्तकालय में रखी संविधान की यह मूल प्रति यहां पहुंची कब और कैसे ? यह सवाल सबके जेहन में आना लाजमी है. अंग्रेजी भाषा में लिखे गए पूरी तरह हस्त लिखित इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 11 प्रतियां तैयार की गयी थी. इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ कुछ प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजना तय हुआ था ताकि लोग अपने संविधान को देख सके. इसी योजना के तहत एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गई. इसकी सुरक्षा और संरक्षण की खास व्यवस्था भी की गई.
अंतिम पन्ने पर सभी सदस्यों के हस्ताक्षर
इसकी खास बात यह है इसकी सभी ग्यारह पाण्डुलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर किये थे. जो आज भी इस पर अंकित हैं. इसमें सबसे ऊपर पहला हस्तक्षर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हैं. इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीम राव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं. इतने बड़े नेताओं के ऑरिजनल दस्तखत देखने वालों में एक रोमांच पैदा हो जाता है.
पेज पर कई गई है स्वर्ण पॉलिश
केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकारी का कहना है कि वे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं. उनका कहना है कि यह पूरा संविधान हस्तलिखित है और सुन्दर शब्दांकन करने के लिए कैलीग्राफी करवाई गयी है. संविधान की इस पाण्डुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है. इसके पहले पेन को स्वर्ण से सजाया गया है. इसके अलावा हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गयी है.
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भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक
संविधान की इस पाण्डुलिपि में भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक भी मिलती है. इसके अलग-अलग पन्नों पर इतिहास के विभिन्न कालखंडों यानी मोहनजोदाड़ो, महाभारत काल, बौद्ध काल, अशोक काल से लेकर वैदिक काल तक मुद्राएं, सील और चित्र अंकित इस बात को परिलक्षित किया गया है कि हमारी भारतीय संस्कृति,परम्पराएं, राज - व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्थाएं अनादिकाल से ही गौरवशाली और व्यवस्थित थी. संविधान की प्रति देखने बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं. अब यहां इसका डिजिटल वर्जन ही लोगों को देखने को मिलता है. सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा पिछले वर्ष से ही किया गया है. यहां पहुंचे युवा इसे देखकर खुश और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.