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घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी, सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचे भरतपुर - Keoladeo National Park

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहली बार रेड ब्रेस्टेड पैराकीट और हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर पक्षी देखे गए हैं. दुर्लभ प्रजाति के पक्षी नजर आने से पक्षी प्रेमियों में भी उत्साह है.

घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी
घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 25, 2024, 5:56 PM IST

घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी

भरतपुर. दुनियाभर में अपनी जैव विविधता और पक्षियों की प्रवास स्थली के रूप में पहचाने जाने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहली बार रेड ब्रेस्टेड पैराकीट नजर आया है. पैराकीट की यह प्रजाति पहली बार हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों से सैकड़ों किलोमीटर की उड़ान भरकर यहां पहुंचा है. वहीं, कई साल बाद यहां हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर भी नजर आया है. पर्यटन सीजन में दो नए और दुर्लभ प्रजाति के पक्षी नजर आने से पक्षी प्रेमियों में भी उत्साह है.

डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि अब तक घना में कभी भी रेड ब्रेस्टेड पैराकीट प्रजाति का पक्षी नहीं देखा गया. यह पहली बार है, जब उद्यान में इस प्रजाति के करीब 4-5 पक्षी नजर आए हैं. ये पक्षी देखने में अन्य पैराकीट (तोता) जैसे ही नजर आते हैं, इसलिए इनको आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है. ये उद्यान के मुख्य सड़क मार्ग के पास वाले पेड़ों पर नजर आए. इनके शरीर के आगे का भाग लाल रंग का होता है, इसीलिए इनको रेड ब्रेस्टेड पैराकीट बोला जाता है.

इसे भी पढ़ें-घना में कई साल बाद ब्लैक नेक्ड स्टार्क व डस्की आउल ने की नेस्टिंग, पहुंचे कई प्रजाति के हजारों पक्षी

हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर : डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि जब हर जगह से वल्चर के कम या विलुप्त होने की सूचनाएं आ रही हैं, ऐसे में घना में कई साल बाद हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर नजर आए हैं. करीब तीन की संख्या में पक्षी देखे गए हैं, ये यहां ज्यादा संख्या में भी मौजूद हो सकते हैं. ये वल्चर भी दुर्लभ प्रजाति के हैं.

पक्षियों का आना अच्छा संकेत : डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि उद्यान में इस बार दो प्रजाति के पक्षियों का आना अच्छा संकेत हैं, यहां के बेहतर ईको सिस्टम की वजह से ही ये पक्षी हिमालयन क्षेत्र से यहां प्रवास पर आए हैं, इससे साबित होता है कि यहां की प्राकृतिक परिस्थितियां इनके अनुकूल हैं और इनको रास आ रही हैं. गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाता है. सर्दियों के मौसम में यहां 350 से अधिक प्रजाति के हजारों पक्षी प्रवास पर आते हैं. करीब 4 से 5 माह के प्रवास के दौरान ये यहां पर प्रजनन करते हैं और बच्चे बड़े होने पर यहां से पलायन कर जाते हैं.

घना में पहली बार दिखे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी

भरतपुर. दुनियाभर में अपनी जैव विविधता और पक्षियों की प्रवास स्थली के रूप में पहचाने जाने वाले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पहली बार रेड ब्रेस्टेड पैराकीट नजर आया है. पैराकीट की यह प्रजाति पहली बार हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों से सैकड़ों किलोमीटर की उड़ान भरकर यहां पहुंचा है. वहीं, कई साल बाद यहां हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर भी नजर आया है. पर्यटन सीजन में दो नए और दुर्लभ प्रजाति के पक्षी नजर आने से पक्षी प्रेमियों में भी उत्साह है.

डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि अब तक घना में कभी भी रेड ब्रेस्टेड पैराकीट प्रजाति का पक्षी नहीं देखा गया. यह पहली बार है, जब उद्यान में इस प्रजाति के करीब 4-5 पक्षी नजर आए हैं. ये पक्षी देखने में अन्य पैराकीट (तोता) जैसे ही नजर आते हैं, इसलिए इनको आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है. ये उद्यान के मुख्य सड़क मार्ग के पास वाले पेड़ों पर नजर आए. इनके शरीर के आगे का भाग लाल रंग का होता है, इसीलिए इनको रेड ब्रेस्टेड पैराकीट बोला जाता है.

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हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर : डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि जब हर जगह से वल्चर के कम या विलुप्त होने की सूचनाएं आ रही हैं, ऐसे में घना में कई साल बाद हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर नजर आए हैं. करीब तीन की संख्या में पक्षी देखे गए हैं, ये यहां ज्यादा संख्या में भी मौजूद हो सकते हैं. ये वल्चर भी दुर्लभ प्रजाति के हैं.

पक्षियों का आना अच्छा संकेत : डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि उद्यान में इस बार दो प्रजाति के पक्षियों का आना अच्छा संकेत हैं, यहां के बेहतर ईको सिस्टम की वजह से ही ये पक्षी हिमालयन क्षेत्र से यहां प्रवास पर आए हैं, इससे साबित होता है कि यहां की प्राकृतिक परिस्थितियां इनके अनुकूल हैं और इनको रास आ रही हैं. गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान दुनिया भर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाता है. सर्दियों के मौसम में यहां 350 से अधिक प्रजाति के हजारों पक्षी प्रवास पर आते हैं. करीब 4 से 5 माह के प्रवास के दौरान ये यहां पर प्रजनन करते हैं और बच्चे बड़े होने पर यहां से पलायन कर जाते हैं.

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