नई दिल्ली: पिछले कई साल से अपर्याप्त और अनियमित ग्रांट के चलते दिल्ली सरकार के बारह वित्त पोषित कॉलेज शिक्षक और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. जिससे आगामी सत्र में डीयू के इन कॉलेजों में विद्यार्थियों की कक्षाएं प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है. गौरतलब है कि हाल ही में सम्पन्न दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद की बैठक में दिल्ली सरकार वित्त पोषित कॉलेजों में व्याप्त समस्याओं के स्थाई समाधान के लिए परिषद के विशेष सत्र बुलाने पर सहमति बनी है.
दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर एके भागी ने बताया कि आप सरकार की फंड कट, निजीकरण/स्व-वित्तपोषण नीति ने 12 कॉलेजों को वित्तीय रूप से बीमार संस्थान बना दिया है. पिछले पांच वर्षों में 50 प्रतिशत तक फंड कटने के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई है. आज इन कॉलेजों की हालत इतनी खराब है कि डीयू के ये कॉलेज 10 साल या उससे अधिक समय से शिक्षकों या गैर-शिक्षण कर्मचारियों की एक भी स्थायी नियुक्ति नहीं कर सके हैं. वहीं दूसरी तरफ डीयू के अन्य 53 कॉलेजों में पिछले दो वर्षों में नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी होने जा रही है.
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दिल्ली सरकार के लापरवाह रवैये के कारण आगामी शैक्षणिक सत्र में विद्यार्थियों की लगभग 50 प्रतिशत कक्षाएं प्रभावित होने या बिल्कुल भी नहीं होने की संभावना है. ऐसा इसलिए है क्योंकि 1512 शिक्षकों की आवश्यकता के मुकाबले यहां केवल 824 शिक्षक (528 स्थायी और 296 तदर्थ शिक्षक) ही कार्यरत हैं. इन कॉलेजों में गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भी यही स्थिति है. 1366 की आवश्यकता के विपरीत केवल 483 स्थायी और 285 संविदा कर्मचारी (कुल 728) हैं.
शिक्षक और कर्मचारियों के कुल 1098 पदों की भर्ती प्रक्रिया दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली सरकार में आपसी खींचतान में रुकी हुई है. कॉलेज की प्रयोगशालाएं, कार्यालय, पुस्तकालय, सामान्य रख-रखाव आदि सभी बुरी तरह प्रभावित हैं और इन संस्थानों को चलाना असंभव होता जा रहा है. इन कॉलेजों में विद्यार्थी और शिक्षक सबसे अधिक प्रभावित हैं. इन कालेजों में शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जाता है, जबकि कॉलेज लगभग आधी क्षमता पर चल रहे हैं.
कई मामलों में शिक्षकों और कर्मचारियों को फंड की कमी के कारण लंबे समय से लंबित बकाया, मेडिकल बिल, एलटीसी आदि का भुगतान नहीं किया जाता है. समस्या विकराल होती जा रही है, इसीलिए डीयू ने आप सरकार द्वारा अनुचित फंड कटौती के मुद्दे पर अकादमिक परिषद का विशेष सत्र बुलाने करने पर सहमति जताई है.
AAP के शिक्षा मंत्रियों ने कालेजों में लगाए घोटाले के आरोप
AAP सरकार की मंत्री आतिशी और पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया ने पिछले 5 साल में कई मौकों पर इन कॉलेजों के प्रशासन पर गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए, लेकिन एक भी साबित नहीं कर पाए. फंड में कटौती के कई बहाने बनाए गए. फंड में कटौती और निजीकरण की AAP सरकार की नीति ही खुलकर सामने आई है, क्योंकि डीटीयू, डीएसईयू, एनएसयूटी और आईपीयू जैसे राज्य संचालित विश्वविद्यालयों का भी यही हाल है. ये सभी एक जैसे संकट का सामना कर रहे हैं और छात्रों से अधिक फीस वसूलने को मजबूर हैं.
डूटा ने की 12 कॉलेजों को पूरी तरह डीयू के अधीन लाने की मांग
डूटा अध्यक्ष ने कहा कि अब डीयू के आधीन लाना ही इन बारह कॉलेजों की समस्या के समाधान का एकमात्र विकल्प है. डीयू के बाकी कॉलेजों में जहां दिल्ली सरकार द्वारा पांच प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान है, वहां नियमितीकरण की प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली है या अभी चल रही है. इनमें समय पर वेतन का भुगतान किया जा रहा है, बकाया और देय राशि का भुगतान भी हो रहा है. हालांकि इन कॉलेजों में रखरखाव के लिए दिल्ली सरकार द्वारा 5 प्रतिशत हिस्सेदारी का भुगतान न करने के कारण, ये कॉलेज अतिरिक्त बुनियादी ढांचे की कमी और उपलब्ध बुनियादी ढांचे के सामान्य रखरखाव के लिए भी पीड़ित हैं.
डूटा अध्यक्ष ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित और रखरखाव वाले कॉलेजों के शासी निकायों (गवर्निंग बॉडी) में राजनीतिक लोगों को नामित किया जाता रहा है, जो इन संस्थानों के सुचारू और प्रगतिशील संचालन में मदद करने के बजाय परेशानी की वजह बनते रहते हैं. समय आ गया है जब डीयू, एलजी, यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय कड़ा फैसला लें और इन 12 कॉलेजों को बचाएं व इन्हें यूजीसी फंडिंग के तहत लाएं. यूजीसी द्वारा वित्तपोषित अन्य 20 कॉलेजों को भी डीयू द्वारा अपने अधीन लिया जाना चाहिए ताकि कुशासन समाप्त हो सके.
दिल्ली सरकार ने की 12 कॉलेजों के फंड में 32 प्रतिशत कटौती
डूटा अध्यक्ष ने बताया कि दिल्ली सरकार ने कॉलेजों के फंड में 32 प्रतिशत की कटौती कर दी है. वर्ष 2024-25 में कॉलेजों का वेतन सहित कुल बजट 595.43 करोड़ रुपये है. इनमें 505.62 करोड़ रुपये वेतन, वेतन से अलग खर्च 55.66 करोड़ और कैपिटल असेट 34.15 करोड़ रुपये हैं. जबकि दिल्ली सरकार ने इन 12 कॉलेजों के लिए सिर्फ 400 करोड़ रुपये का बजट रखा है. यह बिल्कुल सही नहीं है.
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