रतलाम: मध्य प्रदेश के रतलाम और आसपास के क्षेत्र में इन दिनों सोयाबीन की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है. सोयाबीन की कटाई के लिए बड़ी संख्या में मजदूर आदिवासी अंचल से प्रतिदिन रतलाम और आसपास के गांवों में पहुंच रहे हैं. सोयाबीन के सीजन में अधिक मजदूरी मिलने की उम्मीद में यह श्रमिक जान के जोखिम से भरा सफर तय करते हैं. एक चार सीटर ऑटो में 20 से 25 श्रमिक लटक कर 30 से 40 किलोमीटर का सफर तय करते हैं.
बीते दिनों 3 श्रमिकों की हुई थी मौत
मैजिक और पिकअप वाहन में यह संख्या 40 और 50 तक होती है. हर बार फसल कटाई के समय जोखिम और मौत का यह सफर जारी रहता है. पिछले हफ्ते ही रावटी थाना क्षेत्र के धोलावाड़ के समीप एक ओवरलोडे 4 पहिया वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. जिसमें तीन श्रमिकों की मौत हो गई थी. जबकि एक दर्जन से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
कई किलोमीटर खतरों भरा सफर कर रहे मजदूर
दरअसल, सैलाना और बाजना क्षेत्र से आदिवासी श्रमिक मजदूरी करने रतलाम और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हैं. इन मजदूरों को 400 से 500 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिल जाती है. अच्छी मजदूरी की चाह में ये लोग ओवरलोडेड मैजिक, ऑटो रिक्शा और लोडिंग वाहनों में सवार होकर खतरे से भरा सफर हर दिन तय करते हैं. कई बार हादसे भी हो चुके हैं, लेकिन घर परिवार का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी ऐसी है कि ये मजदूर यह खतरा हर रोज उठाते हैं. राजस्थान की सीमा से लगे गांव, सरवन और सैलानी के आसपास से ये मजदूर नामली, जावरा, पिपलोदा, धराड़ और रतलाम तक का सफर करीब 40 किमी का सफर हर रोज करते हैं.
यहां पढ़ें... जान से खिलवाड़! चंद रुपयों की मछली के लिए बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक लगा रहे जान की बाजी |
आदिवासी अंचलों से नहीं चलती हैं बसें
आदिवासी अचलों में बस की सुविधा नहीं के बराबर है. इसकी वजह से लगभग हर गांव में स्थानीय लोग लोडिंग वाहन, मैजिक और रिक्शा किराए पर चलाते हैं. ज्यादा किराए मिलने की लालच में ये ऑटो और वाहन चालक ओवरलोडेड सवारी बैठाते हैं. फसल कटाई के समय मजदूर के अप डाउन के लिए यही ऑटो रिक्शा, मैजिक और लोडिंग वाहन आवागमन के साधन होते हैं. जिसमें इन्हे ठूंस ठूंस कर भरा जाता है.