रतलाम: रतलाम में बेसहारा और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए बनाए गए अपना घर में 40 बेसहारा लोगों को आसरा मिला हुआ है. लेकिन इस अपना घर आश्रम की खासियत है कि यहां किसी से न मदद ली जाती है और न किसी से चंदा एकत्रित किया जाता है. बल्कि यहां की सभी व्यवस्था भगवान कृष्ण यानी ठाकुर जी करते हैं. जी हां ठाकुर जी के नाम की एक चिट्ठी कार्यालय में दीवार पर लगाई जाती है. जिसमें अपना घर में आवश्यकता अनुसार वस्तुओं एवं समग्री का विवरण लिख दिया जाता है. इसके बाद स्थानीय दानदाता ठाकुर जी की तरफ से इस मांग पत्र को पूरा कर देते हैं. इस प्रक्रिया के माध्यम से ही 1-1 ईट और अन्य भवन निर्माण सामग्री जोड़ जोड़ कर अपना घर तैयार हो चुका है. जहां अब 40 बेसहारा लोग खुशी और आनंद के साथ रह रहे हैं.
मां माधुरी ब्रिज संस्था ने उठाया बीड़ा
दरअसल, सड़क और फुटपाथ पर मानसिक रूप से बीमार लोगों को हम कई बार देखते हैं. लेकिन चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पाते हैं. इस तरह के लोगों की सेवा का बीड़ा मां माधुरी ब्रिज वारिस सेवा सदन नाम की संस्था द्वारा उठाया गया है. देश में इस संस्था के माध्यम से 59 अपना घर संचालित हो रहे हैं. जहां बेसहारा लोगों को उपचार और आश्रय मिल रहा है. यहीं नहीं इन लोगों को स्वस्थ होने पर उनके अपनों से भी मिलवाने का कार्य किया जा रहा है.
ठाकुर जी को लिखते हैं चिट्ठी, हो जाती है व्यवस्था
खास बात यह है कि इन अपना घर को संचालित करने के लिए कोई संस्था या समिति नहीं होती है. स्थानीय अज्ञात दानदाताओं के द्वारा ही इसका संचालन किया जाता है. अपना घर स्थापित होने के बाद वहां पर इन बीमार लोगों की सेवा करने के लिए स्टाफ की व्यवस्था आश्रम द्वारा की जाती है. अपना घर की जरूरत की हर वस्तु और सामग्री की मांग कार्यालय में दीवार पर लगी ठाकुर जी की चिट्ठी पर लिख कर की जाती है. जो हमेशा अज्ञात दानदाताओं की मदद से पूर्ण हो जाती है.
दो समय खाना, मनोरंजन के साधन मौजूद
यहां रहकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे मरीजों को प्रभु जी नाम से संबोधित किया जाता है. इन्हें रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और सड़क चौराहों से रेस्क्यू कर यहां लाया जाता है. जहां इनका उपचार कर इन्हें बेहतर खानपान और दवाई इत्यादि उपलब्ध करवाई जाती है. यहां रहकर ठीक हो चुके अमित शर्मा बताते हैं कि, ''उन्हें यहां दो समय खाना, दो समय नाश्ता और चाय दूध मिलता है. सोने व रहने के लिए पलंग और बिस्तर के साथ ही मनोरंजन के लिए टीवी एवं खेल संसाधनों की व्यवस्था भी सभी के लिए रहती है.''
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मरीजों का आशियाना बना आश्रम
यहां पर सेवा कार्य कर रहे आकाश राजपूत बताते हैं कि, ''ठाकुर जी की कृपा से कई प्रभु जी (मरीज) अब तक यहां से ठीक होकर अपने घर को जा चुके हैं. वहीं, कई प्रभु जी के लिए अपना घर ही उनका आशियाना बन चुका है.'' बहरहाल परमार्थ के इस कार्य में कई अनगिनत दानदाता सामने आ रहे हैं जो ठाकुर जी की इस अनोखी व्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं. वहीं, अपना घर उदाहरण है. उन संस्थाओं और ट्रस्ट के लिए जो परमार्थ का कार्य करने के लिए सरकारी मदद या चंदे का इंतजार करते है.