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525 वर्षों से अजमेर में शान से निकल रही है राठौड़ बाबा की सवारी, दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु - Rathore Baba sawari in ajmer - RATHORE BABA SAWARI IN AJMER

अजमेर में राठौड़ बाबा की सवारी निकालने की परंपरा पिछले 525 वर्ष से जारी है. यहां चैत्र सुदी दशमी को राठौड़ बाबा की सवारी पूरी शान-ओ-शोकत के साथ निकाली जाती है. इस बार ये सवारी गुरुवार को निकाली जाएगी. आइए जानते है इस परंपरा के बारे में.

Rathore Baba sawari has been carried out in Ajmer for 525 years.
वा पांच सौ वर्षों से अजमेर में शानो शौकत से निकालती है राठौड़ बाबा की सवारी
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 17, 2024, 7:58 PM IST

सवा पांच सौ वर्षों से अजमेर में शानो शौकत से निकल रही है बाबा की सवारी, दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु

अजमेर. पिछले 525 वर्षों से निकल रही राठौड़ बाबा की सवारी अजमेर की विरासत और परम्परा का अनूठा हिस्सा है. यह सवारी अजमेर में प्रति वर्ष चैत्र सुदी दशमी को धूमधाम से निकाली जाती है. इस बार यह सवारी 18 अप्रेल को निकाली जाएगी. इससे पहले चैत्र सुदी सप्तमी को राठौड़ बाबा और गणगौर का जोड़ा उतारा जाता है.इस सवारी की तैयारियां इन दिनों जोर-शोर से चल रही है. इस सवारी को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं.

राठौड़ बाबा की सवारी का आयोजन फरीकेन सोलखम्बा गणगौर महोत्सव समिति की ओर से किया जाता है. समिति के पदाधिकारी एमएल अग्रवाल ने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता ईसर गणगौर का स्वरूप हैं. हर साल चेत्र सुदी दशमी के दिन राठौड़ बाबा और गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है. इससे कुछ घंटे पहले बाबा का श्रृंगार होता है.

पढें: जयपुर में राजसी ठाठ बाट के साथ निकाली गणगौर की शाही सवारी, माता के दर्शन को उमड़ी भक्तों की भीड़

उन्होंने बताया कि सवारी निकालने से पहले शहर के मोदियाना गली स्थित मोहल्लेदार लक्ष्मण स्वरूप के घर में विशेष स्थान पर राठौड़ बाबा और गणगौर माता के जोड़े को श्रद्धा के साथ रखा जाता है. धार्मिक परंपरा के अनुरूप चैत्र सुदी पंचमी या सप्तमी पर राठौड़ बाबा के जोड़े को उतारा जाता है. जोड़े को देहली गेट स्थित तत्कालीन समय में कुम्हार रहे ब्रह्मदेव के घर ले जाया जाता है. वहां परंपरा के अनुसार पानी पिलाने के साथ जोड़े का रंग रोगन होता है. अब कुम्हार ब्रह्मदेव के वंशज मनोज परंपरा का निर्वहन करते हैं. इसके बाद राठौड़ बाबा और गणगौर के जोड़े को वापस मोदियाना गली में अमर चंद्र अग्रवाल के घर लाया जाता है, जहां राठौड़ बाबा और गणगौर माता का परंपरा के अनुसार श्रृंगार होता है. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता का जोड़ा सवा फीट का मिट्टी से बना हुआ है.

जाने कौन हैं राठौड़ बाबा: समिति के पदाधिकारी एमएल अग्रवाल ने बताया कि राठौड़ बाबा भगवान शिव और गणगौर माता पार्वती का रूप है. यह ईसर गणगौर की परंपरागत सवारी होती है. इसमें ईसर का रूप रुबीला होता है. यही वजह ईसर को राठौड़ बाबा के नाम से पुकारा गया है. सदियों से ईसर भगवान को पीढ़ी दर पीढ़ी राठौड़ बाबा के नाम से ही जाना जाता रहा है.

यह भी पढ़ें: 525 वर्षों से चैत्र शुक्ल दशमी को अजमेर में निकती है राठौड़ बाबा की सवारी, जानें परंपरा

राठौड़ बाबा और गणगौर का श्रंगार: समिति के पदाधिकारी अग्रवाल बताते हैं कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार के लिए दुल्हन का बेस और ज्वैलरी देने के लिए लोगों में होड़ मची रहती है. इस बार आधा दर्जन से अधिक दुल्हन के बेस गणगौर माता के लिए आए हैं. इन पर जरी का काम हो रखा है. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार में 5 घंटे से भी अधिक का समय लगता है. राठौड़ बाबा को पन्ने, मोती और सोने की मालाएं धारण करवाई जाती है. वहीं, गणगौर माता को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है. उन्हें नौलखा हार और सोने के जेवर पहनाए जाते हैं. अग्रवाल बताते हैं कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार में कई किलो सोने के जेवर का उपयोग होता है. सोने के कुछ जेवर समिति की ओर से और शेष मोदियाना गली निवासी और श्रद्धालुओं की ओर से दिए जाते हैं.

कई मण चढ़ता है भोग: समिति के पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद मित्तल बताते हैं कि दशमी सुदी दशमी 18 अप्रैल को श्रृंगार के बाद मोदियाना गली से राठौड़ बाबा की सवारी धूमधाम से निकलेगी. राठौड़ बाबा और गणगौर माता को सिर पर रख कर महिलाएं चलती हैं. डेढ़ किलोमीटर का रास्ता 9 घंटे में पूरा करती है. इस दौरान कई मण मिष्ठान का भोग श्रद्धालुओं की ओर से लगाया जाता है. प्रसाद के रूप में समिति की ओर से श्रद्धालुओं को लच्छा और मेहंदी वितरित की जाती है.

राठौड़ बाबा के दर्शन से मनोकामनाएं होती है पूर्ण: समिति के पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद मित्तल बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के दर्शनों से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. कुंवारी युवक-युवतियों को सुयोग्य जोड़ा मिलता है. सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. निसंतान दंपती को संतान का आशीर्वाद मिलता है. व्यापारी और आमजन खुशहाली और व्यापार में तरक्की की कामना करते हैं.

सवा पांच सौ वर्षों से अजमेर में शानो शौकत से निकल रही है बाबा की सवारी, दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं श्रद्धालु

अजमेर. पिछले 525 वर्षों से निकल रही राठौड़ बाबा की सवारी अजमेर की विरासत और परम्परा का अनूठा हिस्सा है. यह सवारी अजमेर में प्रति वर्ष चैत्र सुदी दशमी को धूमधाम से निकाली जाती है. इस बार यह सवारी 18 अप्रेल को निकाली जाएगी. इससे पहले चैत्र सुदी सप्तमी को राठौड़ बाबा और गणगौर का जोड़ा उतारा जाता है.इस सवारी की तैयारियां इन दिनों जोर-शोर से चल रही है. इस सवारी को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं.

राठौड़ बाबा की सवारी का आयोजन फरीकेन सोलखम्बा गणगौर महोत्सव समिति की ओर से किया जाता है. समिति के पदाधिकारी एमएल अग्रवाल ने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता ईसर गणगौर का स्वरूप हैं. हर साल चेत्र सुदी दशमी के दिन राठौड़ बाबा और गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है. इससे कुछ घंटे पहले बाबा का श्रृंगार होता है.

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उन्होंने बताया कि सवारी निकालने से पहले शहर के मोदियाना गली स्थित मोहल्लेदार लक्ष्मण स्वरूप के घर में विशेष स्थान पर राठौड़ बाबा और गणगौर माता के जोड़े को श्रद्धा के साथ रखा जाता है. धार्मिक परंपरा के अनुरूप चैत्र सुदी पंचमी या सप्तमी पर राठौड़ बाबा के जोड़े को उतारा जाता है. जोड़े को देहली गेट स्थित तत्कालीन समय में कुम्हार रहे ब्रह्मदेव के घर ले जाया जाता है. वहां परंपरा के अनुसार पानी पिलाने के साथ जोड़े का रंग रोगन होता है. अब कुम्हार ब्रह्मदेव के वंशज मनोज परंपरा का निर्वहन करते हैं. इसके बाद राठौड़ बाबा और गणगौर के जोड़े को वापस मोदियाना गली में अमर चंद्र अग्रवाल के घर लाया जाता है, जहां राठौड़ बाबा और गणगौर माता का परंपरा के अनुसार श्रृंगार होता है. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता का जोड़ा सवा फीट का मिट्टी से बना हुआ है.

जाने कौन हैं राठौड़ बाबा: समिति के पदाधिकारी एमएल अग्रवाल ने बताया कि राठौड़ बाबा भगवान शिव और गणगौर माता पार्वती का रूप है. यह ईसर गणगौर की परंपरागत सवारी होती है. इसमें ईसर का रूप रुबीला होता है. यही वजह ईसर को राठौड़ बाबा के नाम से पुकारा गया है. सदियों से ईसर भगवान को पीढ़ी दर पीढ़ी राठौड़ बाबा के नाम से ही जाना जाता रहा है.

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राठौड़ बाबा और गणगौर का श्रंगार: समिति के पदाधिकारी अग्रवाल बताते हैं कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार के लिए दुल्हन का बेस और ज्वैलरी देने के लिए लोगों में होड़ मची रहती है. इस बार आधा दर्जन से अधिक दुल्हन के बेस गणगौर माता के लिए आए हैं. इन पर जरी का काम हो रखा है. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार में 5 घंटे से भी अधिक का समय लगता है. राठौड़ बाबा को पन्ने, मोती और सोने की मालाएं धारण करवाई जाती है. वहीं, गणगौर माता को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है. उन्हें नौलखा हार और सोने के जेवर पहनाए जाते हैं. अग्रवाल बताते हैं कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के श्रृंगार में कई किलो सोने के जेवर का उपयोग होता है. सोने के कुछ जेवर समिति की ओर से और शेष मोदियाना गली निवासी और श्रद्धालुओं की ओर से दिए जाते हैं.

कई मण चढ़ता है भोग: समिति के पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद मित्तल बताते हैं कि दशमी सुदी दशमी 18 अप्रैल को श्रृंगार के बाद मोदियाना गली से राठौड़ बाबा की सवारी धूमधाम से निकलेगी. राठौड़ बाबा और गणगौर माता को सिर पर रख कर महिलाएं चलती हैं. डेढ़ किलोमीटर का रास्ता 9 घंटे में पूरा करती है. इस दौरान कई मण मिष्ठान का भोग श्रद्धालुओं की ओर से लगाया जाता है. प्रसाद के रूप में समिति की ओर से श्रद्धालुओं को लच्छा और मेहंदी वितरित की जाती है.

राठौड़ बाबा के दर्शन से मनोकामनाएं होती है पूर्ण: समिति के पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद मित्तल बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता के दर्शनों से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. कुंवारी युवक-युवतियों को सुयोग्य जोड़ा मिलता है. सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. निसंतान दंपती को संतान का आशीर्वाद मिलता है. व्यापारी और आमजन खुशहाली और व्यापार में तरक्की की कामना करते हैं.

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