जयपुर. राजस्थान में भाजपा की सरकार आने के पहले से दरकिनार कर दी गईं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का दर्द पहली बार छलका है. मुख्यमंत्री पद का फैसला होने के 6 महीने बाद वसुंधरा राजे का यह पहला बयान है, जिसने सियासी पारे को अचानक गरमा दिया है. उदयपुर में एक कार्यक्रम में राजे ने कहा, "आज लोग उसी उंगली को पहले काट देते हैं, जिसे पकड़ कर वो चलना सीखते हैं." अब सियासी गलियारों में चर्चा की आखिर वसुंधरा राजे का इशारा किनकी तरफ है ? कौन हैं वो नेता जिन्हें वसुधरा राजे ने आगे बढ़ाया, लेकिन वे आज उनके ही खिलाफ खड़े हो गए हैं ? वसुंधरा राजे का क्या होगा अगला कदम ?
6 महीने बाद सार्वजनिक मंच पर राजे : दरअसल, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे विधानसभा चुनाव के बाद से ज्यादा सक्रीय नहीं दिखाई दे रही हैं. लोकसभा चुनाव में भी वो सिर्फ बेटे दुष्यंत के लोकसभा क्षेत्र झालावाड़ तक ही सिमित रहीं. स्टार प्रचारकों की सूची में नाम शामिल होने के बाद भी राजे ने झालावाड़ नहीं छोड़ा. पिछले 6 महीने से राजे का कोई भी राजनीतिक ब्यान सामने नहीं आया था, लेकिन रविवार को 6 महीने के लंबे अंतराल के बाद राजे ने न केवल चुप्पी तोड़ी, बल्कि उनके संरक्षण में राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाने वालों को जम कर निशाने पर लिया.
उदयपुर में सुंदर सिंह भंडारी चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से व्याख्यान माला एवं विशिष्ट जन सम्मान कार्यक्रम में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुईं. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया और विशिष्ट अतिथि मंत्री बाबू लाल खराड़ी थे. विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत और पूर्व विधायक ज्ञानचंद आहूजा सहित कई नेता कार्यक्रम में मौजूद थे.
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने पहले तो सुंदर सिंह भंडारी और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का व्यक्तित्व के बारे में बताया. इसके बाद मंच से संबोधन के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि भंडारी ने राजस्थान में भैरोंसिंह जी सहित कितने ही नेताओं को आगे बढ़ाया, पर वफा का वह दौर अलग था, तब लोग किसी के किए हुए को मानते थे, लेकिन आज तो लोग उसी उंगली को पहले काटने का प्रयास करते हैं, जिसको पकड़ कर वह चलना सीखते हैं. राजे के इसी बयान ने भाजपा कार्यकर्ताओं और सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया. राजे के इस बयान को वर्तमान में प्रदेश भाजपा में उनकी स्थिति को देखकर पीड़ा के तौर पर बताया जा रहा है.
क्या है वसुंधरा राजे का दर्द ? : राजस्थान में वसुंधरा राजे दो दशकों तक एकछत्र नेता रही हैं. दो बार मुख्यमंत्री रहीं और जब सत्ता से बाहर रहीं, तब भी भाजपा में केंद्र बिन्दु वही रहीं, लेकिन पिछले 6 महीनों में उन्हें अहसास हो गया कि सत्ता से बाहर होने के क्या मायने हैं. 2014 के आम चुनाव तक राजस्थान से लोकसभा चुनाव के अधिकांश प्रत्याशी वसुंधरा राजे की इच्छा या रजामंदी से ही तय हुआ करते थे, तब केंद्र का दखल नहीं था, लेकिन उसके बाद 2019 में वसुंधरा राजे की इच्छाओं को दरकिनार किया जाने लगा. ऐसा नहीं है वसुंधरा राजे को साइड लाइन करने का सिलसिला लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ हो. सतीश पूनिया के अध्यक्ष बनने के साथ राजे को साइड लाइन करने के चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था.
विधानसभा चुनाव 2023 से ठीक एक साल पहले से केंद्रीय नेतृत्व ने मन बना लिया था कि प्रदेश में राजनीति का केंद्र बिंदु बदला जाए. राजे को विधानसभा चुनाव में ज्यादा प्राथमिकता नहीं मिली. राजे चाह कर भी अपने अपने नेताओं को टिकट नहीं दिला पाईं. इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद जैसे ही प्रदेश में भाजपा बहुमत के साथ सरकार बनाने की स्थति में आई, उस समय भी राजे से कोई सलाह नहीं ली गई, केंद्रीय नेतृत्व की ओर से दूत की भूमिका में आए राजनाथ सिंह ने वसुंधरा राजे के हाथों प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम का प्रस्ताव रखवाया, जिसमें पहली बार विधायक बन कर आए भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाया गया. बताया जाता है कि इस घटना क्रम के बाद से राजे काफी आहत थीं, उन्हें लगता था कि प्रदेश में किसी तरह के फैसले में केन्दीय नेतृत्व उनसे राजयसुमारी करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
राजे ने किसको बढ़ाया आगे ? : पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने राजस्थान भाजपा की विरासत वसुंधरा राजे को 2003 में सौंपी थी. उसके बाद से प्रदेश में भाजपा का मतलब सिर्फ और सिर्फ वसुंधरा राजे. कई बार ऐसे मौके आए, जब राजे की जिद के आगे दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व को झुकना पड़ा. इस दौरान राजे ने कई नेताओं को तैयार किया. उन्हीं की अनदेखी का जिक्र वसुंधरा राजे ने किया. हालांकि, वसुंधरा राजे ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन जिन नेताओं की राजनीति में एंट्री वसुंधरा राजे के दौर में या उनके आशीर्वाद से हुई और जिनको वसुंधरा राजे ने आगे बढ़ाया, उन नेताओं की लिस्ट लंबी है.
प्रदेश की भजनलाल सरकार में आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री अब भी ऐसे हैं, जिनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत वसुंधरा राजे के दौर में हुई है. इनमें दोनों डिप्टी सीएम दीया कुमारी और डा. प्रेमचंद बैरवा भी शामिल हैं. जयपुर राजपरिवार की दीया कुमारी को भाजपा वसुंधरा राजे ने ही ज्वाइन कराई थी. हालांकि, बाद में दीया कुमारी राजे के खिलाफ खड़ी हो गईं और उन्हे वसुंधरा राजे के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा. दोनों उप मुख्यमंत्रियों के अलावा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर, जोगाराम पटेल, ओटाराम देवासी, कन्हैया लाल चौधरी भी उन्ही के दौर में तैयार हुए हैं.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी कभी वसुंधरा राजे के नजदीकियों में हुआ करते थे. इन्हीं नजदीकियों के चलते पहली बार विधायक बनने पर ही बिरला वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव बनने में सफल रहे. जल्द ही बिरला ने दिल्ली में बेहतर संबंधों के आधार पर अपना अलग वजूद बना लिया और 2023 में वसुंधरा के मुकाबले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गिने जाने लगे. राजेंद्र राठौड़ का राजनीतक जीवन भाजपा में आने से पहले ही शुरू हो चुका था, लेकिन वसुंधरा राजे के कभी वे बेहद विश्वासपात्र रहे हैं. वसुंधरा के सीएम रहते उन्हें नंबर 2 माना जाता था. फिलहाल, राठौड़ उनके कट्टर विरोधियों में हैं. विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान कई बार राजे से आमने-सामने हुए. तारानगर से खुद के चुनाव हारने में भी वसुंधऱा समर्थकों को जिम्मेदार मानते हैं.
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी भी वसुंधरा राजे के नजदीकी रहे हैं. उन्हे भी लोकसभा का टिकट पहली बार राजे के सहयोग से ही मिला. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने में भी राजे की रजामंदी रही. इसी वसुंधरा सरकार में अफसर रहे अर्जुनराम मेघवाल 2009 में पहली बार सांसद बने थे, तब वे वसुंधऱा राजे के साथ थे, लेकिन बीकानेर की लोकल पॉलिटिक्स ने उन्हे राजे से दूर कर दिया. इसी तरह केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी भी वसुंधरा के नजदीकी रहे हैं. इन नामों के आलावा भी कई ऐसे नेता हैं, जो आज भजनलाल सरकार में मंत्री है, जिनके राजनीतिक सफर में राजे की भूमिका रही है.
कौन काट रहा है चलना सिखाने वाली उंगली को ? : वसुंधरा राजे ने उदयपुर में अपनी संघ परवरिश और राजनीतिक इंटर्नशिप का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे वो संघ की ट्रेनिंग में यहां तक पहुंची हैं. विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव खत्म होने तक ये पहला मौका है, जब राजे ने चुप्पी तोड़ी है. राजे के बयान के बाद अब सियासी गलियारों में चर्चा इस बात हो रही है कि आखिर राजे का इशारा किन-किन नेताओं की तरफ था.
वसुंधरा राजे के बयान के बाद भले ही भाजपा के सियासी गलियारों में अंदरखाने चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया हो, लेकिन मामला वसुंधरा राजे से जुड़ा है. ऐसे में कोई भी प्रदेश भाजपा नेता या पदाधिकारी ज्यादा कुछ कहने से बच रहे हैं. प्रदेश महामंत्री श्रवण सिंह बगड़ी भी राजे के बयान पर बचते नजर आए. उन्होंने कहा कि चुनाव में सभी ने मिल कर चुनाव लड़ा, किसी की कोई कमी नहीं रही, वसुंधरा राजे ने किस संदर्भ में क्या कहा, उस पर उन्हें ज्यादा पता नहीं है, लेकिन भाजपा एकजुट है और सभी मिल कर चुनाव में जुटे थे.