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वित्तीय हालात बेहतर होना बच्चे की अभिरक्षा का आधार नहीं- हाईकोर्ट - Rajasthan High Court - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को दिलाने को लेकर दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि वित्तीय हालात बेहतर होना बच्चे की अभिरक्षा का आधार नहीं है.

REFUSED TO GIVE CUSTODY,  CUSTODY OF THE CHILD TO THE FATHER
राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश. (ETV Bharat gfx)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 4, 2024, 9:12 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने दुबई में बसे पिता को सात साल के बच्चे की अभिरक्षा मां से लेकर उसे दिलवाने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि ऐसा करना बच्चे के सर्वोत्तम हित में नहीं होगा. अदालत ने कहा कि पिता के वित्तीय हालात इस बात को तय करने में निर्णायक नहीं हो सकते कि बच्चे की अभिरक्षा उसे सौंपी जाए. हालांकि, अदालत ने पिता को बच्चे से मिलने जुलने की छूट दी है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण करते हुए दिए.

पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर कहा था कि उसकी पत्नी ने उसके नाबालिग बच्चे को अवैध तौर पर अपनी अभिरक्षा में रख रखा है. उसका बेटा दुबई में पैदा हुआ था और वहां पर सामान्य तरीके से रह रहा था, लेकिन वह उसे उसकी जानकारी के बिना ही गलत तरीके से भारत में ले आई. बच्चे के प्रति उसका व्यवहार भी सही नहीं है, इसलिए उसे उसके बच्चे की कस्टडी दिलवाई जाए.

पढ़ेंः कोर्ट का आदेश- पत्नी के साथ घरेलू हिंसा नहीं करे पति ,भरण-पोषण के लिए हर महीने 60 हजार रुपए भी दे - Judicial Magistrate ordered

इसके विरोध में पत्नी की ओर से कहा गया कि बच्चे की उम्र 7 साल है और वह उसकी अच्छी तरह से देखभाल कर रही है और सबसे करीबी भी है. याचिकाकर्ता का यह आरोप भी गलत है कि उसका बच्चे से अच्छा बर्ताव नहीं है, बच्चा अपनी मां के साथ अच्छी तरह से रह रहा है. ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि बच्चे की कस्टडी मां से लेकर दुबई में रह रहे पिता को सौंप दी जाए. खंडपीठ ने मां के पक्ष में फैसला देते हुए बच्चे को मां के साथ ही रहने दिया और पिता को मिलने-जुलने की छूट देते हुए याचिका को निस्तारित कर दिया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने दुबई में बसे पिता को सात साल के बच्चे की अभिरक्षा मां से लेकर उसे दिलवाने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि ऐसा करना बच्चे के सर्वोत्तम हित में नहीं होगा. अदालत ने कहा कि पिता के वित्तीय हालात इस बात को तय करने में निर्णायक नहीं हो सकते कि बच्चे की अभिरक्षा उसे सौंपी जाए. हालांकि, अदालत ने पिता को बच्चे से मिलने जुलने की छूट दी है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण करते हुए दिए.

पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर कहा था कि उसकी पत्नी ने उसके नाबालिग बच्चे को अवैध तौर पर अपनी अभिरक्षा में रख रखा है. उसका बेटा दुबई में पैदा हुआ था और वहां पर सामान्य तरीके से रह रहा था, लेकिन वह उसे उसकी जानकारी के बिना ही गलत तरीके से भारत में ले आई. बच्चे के प्रति उसका व्यवहार भी सही नहीं है, इसलिए उसे उसके बच्चे की कस्टडी दिलवाई जाए.

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इसके विरोध में पत्नी की ओर से कहा गया कि बच्चे की उम्र 7 साल है और वह उसकी अच्छी तरह से देखभाल कर रही है और सबसे करीबी भी है. याचिकाकर्ता का यह आरोप भी गलत है कि उसका बच्चे से अच्छा बर्ताव नहीं है, बच्चा अपनी मां के साथ अच्छी तरह से रह रहा है. ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि बच्चे की कस्टडी मां से लेकर दुबई में रह रहे पिता को सौंप दी जाए. खंडपीठ ने मां के पक्ष में फैसला देते हुए बच्चे को मां के साथ ही रहने दिया और पिता को मिलने-जुलने की छूट देते हुए याचिका को निस्तारित कर दिया है.

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