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राजस्थान के वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को NAAC रेटिंग पर फोकस करने के निर्देश, NIRF रैंकिंग में भी मिलेगा लाभ - Governor Gave Instructions - GOVERNOR GAVE INSTRUCTIONS

Governor Haribhau Bagade Gave Instructions, एनआईआरएफ रैंकिंग में राजस्थान के एक भी वित्तपोषित संस्थान का नाम टॉप 20 में शामिल नहीं है. ऐसे में राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने इन संस्थाओं को नैक रेटिंग पर फोकस करने के निर्देश दिए हैं, ताकि छात्रों को क्वालिटी बेस एजुकेशन, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी सुविधाएं व जानकारी मिल सके.

Governor Haribhau Bagade Gave Instructions
NAAC रेटिंग पर फोकस करने के निर्देश (ETV BHARAT JAIPUR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 25, 2024, 11:07 AM IST

जयपुर : नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क में राजस्थान के एक भी वित्तपोषित संस्थान का नाम टॉप 20 में शामिल नहीं है. ऐसे में अब प्रदेश के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने इन संस्थाओं को नैक रेटिंग पर फोकस करने के निर्देश दिए हैं. ताकि छात्रों को क्वालिटी बेस एजुकेशन, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी सुविधाएं व जानकारी मिल सके. साथ ही राज्यपाल ने यूनिवर्सिटीज में ऑफलाइन और ऑनलाइन डॉक्यूमेंटेशन शुरू करने, रिसर्च और पेटेंट पर काम करने के भी निर्देश दिए है. इसका सीधा फायदा छात्रों के साथ-साथ एनआईआरएफ रैंकिंग में भी मिलेगा.

नैक (NAAC) यूजीसी का हिस्सा है. इसका काम देशभर के विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों में गुणवत्ता को परखना और उनको रेटिंग देना है. यूजीसी की नई गाइडलाइन के तहत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिएशन काउंसिल से मान्यता प्राप्त करना जरूरी है. अगर किसी संस्थान ने इसकी मान्यता नहीं ली है तो उसे किसी सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिलता. ऐसे में प्रदेश के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने प्रदेश के वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को समय बंद नैक रेटिंग करवाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की गाइडलाइन के अनुसार तैयारी करने विश्वविद्यालय में इनोवेशन सेंटर, इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने और राष्ट्र प्रेम पर आधारित पाठ्यक्रम चलाए जाने पर भी जोर दिया है.

इसे भी पढ़ें - MSJ कॉलेज की NAAC Grade गिरने से 4 साल में 8 करोड़ का नुकसान, अब ग्रेड सुधारने में जुटा प्रशासन... फिर से कराएंगे निरीक्षण

क्या है नैक ग्रेडिंग प्रक्रिया : सबसे पहले शिक्षण संस्थान नैक की गुणवत्ता पर खरा उतरने के लिए तैयारी करते हैं. इसके बाद संस्थान नैक ग्रेडिंग के लिए आवेदन करते हैं. आवेदन करने के बाद नैक की टीम संस्थान का निरीक्षण करती है. जिसमें शिक्षण सुविधाएं, रिजल्ट, इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉलेज का माहौल को देखा जाता है. इसी आधार पर नैक की टीम अपनी रिपोर्ट तैयार करती है. और संस्थान को सीजीपीए दिया जाता है. इसी के आधार पर ग्रेड जारी होती है.

क्या होता है CGPA जिसके आधार पर मिलती है ग्रेडिंग : यूजीसी ने ग्रेडिंग पैटर्न बदल दिया है. पहले चार श्रेणियों में कॉलेजों को रखा जाता था. लेकिन अब 8 श्रेणियों में रखा जाने लगा है. अगर सीजीपीए 3.76 से 4 के बीच है तो संस्थान को ए प्लस प्लस ग्रेड मिलता है. इसका मतलब है कि संस्थान सबसे बेहतर है. इसी तरह से सीजीपीए के आधार पर ए प्लस, ए, बी प्लस प्लस, बी प्लस, बी, सी और डी ग्रेड दिए जाते हैं.

इसे भी पढ़ें - 'आजादी से ठीक पहले कांग्रेस ने अखंड भारत के नारे पर लड़ा था चुनाव, क्या हमें अखंड भारत मिला?': राज्यपाल बागड़े - Indian Youth Parliament

4 साल के लिए मान्य होती है ग्रेड : नैक के तहत कॉलेजों को 4 साल के लिए ग्रेड दी जाती है. चार साल बाद फिर से निरीक्षण होता है. नैक अस्थाई ग्रेड भी देता है. इसके तहत 2 साल के लिए ग्रेड दी जाती है. यदि कोई कॉलेज प्रबंधन ग्रेड से संतुष्ट नहीं है तो 6 महीने में कमियों को दूर करके दोबारा निरीक्षण करवा सकता है. लेकिन इसके लिए 10 हजार का शुल्क जमा कराना होता है.

आपको बता दें कि नैक रेटिंग का सबसे ज्यादा फायदा छात्रों को ही होता है. इससे स्टूडेंट्स को शिक्षण संस्थान के बारे में सही जानकारी मिलती है. छात्रों को संस्थान के बारे में शिक्षा की क्वालिटी, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी जानकारी हासिल करने में आसानी होती है. नैक ग्रेडिंग के जरिए छात्र अपने लिए बेहतर संस्थान तलाश कर सकते हैं. नैक ग्रेड शिक्षण संस्थानों से मिली डिग्रियों का वैल्यू भी ज्यादा होती है.

जयपुर : नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क में राजस्थान के एक भी वित्तपोषित संस्थान का नाम टॉप 20 में शामिल नहीं है. ऐसे में अब प्रदेश के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने इन संस्थाओं को नैक रेटिंग पर फोकस करने के निर्देश दिए हैं. ताकि छात्रों को क्वालिटी बेस एजुकेशन, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी सुविधाएं व जानकारी मिल सके. साथ ही राज्यपाल ने यूनिवर्सिटीज में ऑफलाइन और ऑनलाइन डॉक्यूमेंटेशन शुरू करने, रिसर्च और पेटेंट पर काम करने के भी निर्देश दिए है. इसका सीधा फायदा छात्रों के साथ-साथ एनआईआरएफ रैंकिंग में भी मिलेगा.

नैक (NAAC) यूजीसी का हिस्सा है. इसका काम देशभर के विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों में गुणवत्ता को परखना और उनको रेटिंग देना है. यूजीसी की नई गाइडलाइन के तहत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिएशन काउंसिल से मान्यता प्राप्त करना जरूरी है. अगर किसी संस्थान ने इसकी मान्यता नहीं ली है तो उसे किसी सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिलता. ऐसे में प्रदेश के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने प्रदेश के वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को समय बंद नैक रेटिंग करवाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की गाइडलाइन के अनुसार तैयारी करने विश्वविद्यालय में इनोवेशन सेंटर, इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने और राष्ट्र प्रेम पर आधारित पाठ्यक्रम चलाए जाने पर भी जोर दिया है.

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क्या है नैक ग्रेडिंग प्रक्रिया : सबसे पहले शिक्षण संस्थान नैक की गुणवत्ता पर खरा उतरने के लिए तैयारी करते हैं. इसके बाद संस्थान नैक ग्रेडिंग के लिए आवेदन करते हैं. आवेदन करने के बाद नैक की टीम संस्थान का निरीक्षण करती है. जिसमें शिक्षण सुविधाएं, रिजल्ट, इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉलेज का माहौल को देखा जाता है. इसी आधार पर नैक की टीम अपनी रिपोर्ट तैयार करती है. और संस्थान को सीजीपीए दिया जाता है. इसी के आधार पर ग्रेड जारी होती है.

क्या होता है CGPA जिसके आधार पर मिलती है ग्रेडिंग : यूजीसी ने ग्रेडिंग पैटर्न बदल दिया है. पहले चार श्रेणियों में कॉलेजों को रखा जाता था. लेकिन अब 8 श्रेणियों में रखा जाने लगा है. अगर सीजीपीए 3.76 से 4 के बीच है तो संस्थान को ए प्लस प्लस ग्रेड मिलता है. इसका मतलब है कि संस्थान सबसे बेहतर है. इसी तरह से सीजीपीए के आधार पर ए प्लस, ए, बी प्लस प्लस, बी प्लस, बी, सी और डी ग्रेड दिए जाते हैं.

इसे भी पढ़ें - 'आजादी से ठीक पहले कांग्रेस ने अखंड भारत के नारे पर लड़ा था चुनाव, क्या हमें अखंड भारत मिला?': राज्यपाल बागड़े - Indian Youth Parliament

4 साल के लिए मान्य होती है ग्रेड : नैक के तहत कॉलेजों को 4 साल के लिए ग्रेड दी जाती है. चार साल बाद फिर से निरीक्षण होता है. नैक अस्थाई ग्रेड भी देता है. इसके तहत 2 साल के लिए ग्रेड दी जाती है. यदि कोई कॉलेज प्रबंधन ग्रेड से संतुष्ट नहीं है तो 6 महीने में कमियों को दूर करके दोबारा निरीक्षण करवा सकता है. लेकिन इसके लिए 10 हजार का शुल्क जमा कराना होता है.

आपको बता दें कि नैक रेटिंग का सबसे ज्यादा फायदा छात्रों को ही होता है. इससे स्टूडेंट्स को शिक्षण संस्थान के बारे में सही जानकारी मिलती है. छात्रों को संस्थान के बारे में शिक्षा की क्वालिटी, रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी जानकारी हासिल करने में आसानी होती है. नैक ग्रेडिंग के जरिए छात्र अपने लिए बेहतर संस्थान तलाश कर सकते हैं. नैक ग्रेड शिक्षण संस्थानों से मिली डिग्रियों का वैल्यू भी ज्यादा होती है.

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