शहडोल। लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है और पहले चरण में मध्य प्रदेश के जिन लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, वहां पर सभी पार्टियों ने अपनी चुनावी तैयारी भी तेज कर दी है और आए दिन यहां राष्ट्रीय स्तर के नेता जनसभा को संबोधित कर रहे हैं. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शहडोल लोकसभा सीट से जनसभा को संबोधित किया था. वहीं, इसी शहडोल लोकसभा सीट और मंडला लोकसभा सीट को साधने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी 8 अप्रैल को पहुंचेंगे.
आदिवासी सीटों पर राहुल गांधी का दौरा
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी 8 अप्रैल को मंडला लोकसभा सीट के सिवनी जिले की केवलारी विधानसभा के घंसौर में और शहडोल जिला मुख्यालय के बाणगंगा मेला मैदान में एक विशाल जनसभा को संबोधित करेंगे. इन दोनों ही जगह पर जनसभाओं के माध्यम से राहुल गांधी आदिवासी सीटों पर अपना दावा मजबूत करने की कोशिश करेंगे. जिसकी तैयारियां जोरों से चल रही हैं. बाण गंगा मेला मैदान में राहुल गांधी की जनसभा की तैयारी तेजी से की जा रही है. राहुल गांधी की जनसभा से इन आदिवासी लोकसभा सीटों पर कांग्रेसियों को बड़ी उम्मीद है.
आदिवासी सीट पर कांग्रेस का फोकस ?
देखा जाए तो इस बार कांग्रेस आदिवासी सीटों पर ज्यादा फोकस कर रही है और एक बार फिर से अपने पुराने परंपरागत वोटर्स को लुभाने के लिए कड़ी मेहनत भी कर रही है. शायद यही वजह भी है कि राहुल गांधी इन आदिवासी सीटों पर खुद भी जनसभाओं को संबोधित करने पहुंच रहे हैं. आखिर कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर इस बार इतना फोकस क्यों है इसे ऐसे समझा जा सकता है वर्तमान में देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को महज एक सीट पर ही जीत मिली थी जबकि 28 सीटों में हार का सामना करना पड़ा था.
मध्यप्रदेश में कुछ खास नहीं है कांग्रेस का प्रदर्शन
आंकड़ों पर नजर डालें तो 1990 के दशक के बाद से जितने लोकसभा चुनाव हुए, उसमें मध्य प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है. 2009 में हालांकि कांग्रेस ने कुछ हद तक अपने प्रदर्शन में सुधार किया था, लेकिन बाकी सभी चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति खराब ही रही है. 2009 में कांग्रेस ने 29 लोकसभा सीटों में से मध्य प्रदेश में 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि भाजपा को 16 सीटों में जीत मिली थी. जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस चार सीट जीतने में ही कामयाब रही थी. 2009 में कांग्रेस ने 12 में से 4 आदिवासी सीटें जीती थीं और प्रदेश के जिन अन्य सीटों में कांग्रेस को जीत मिली थी उसमें कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव जैसे दिग्गज नेताओं ने अपनी लोकसभा सीटों पर जीत का परचम फहराया था. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि आदिवासी सीटों पर ही कांग्रेस ने इस बार इतना फोकस क्यों किया है.
विधानसभा चुनाव ने जगाई उम्मीद
आदिवासी सीटों पर फोकस करने की एक वजह अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भी हैं, 2023 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी और कांग्रेस महज 66 सीट ही जीत सकी थी. लेकिन इन 66 सीटों में से 22 सीट कांग्रेस ने आदिवासी आरक्षित सीटों में जीत हासिल की थी. वहीं भाजपा ने 24 सीटों में आदिवासी आरक्षित सीटों में जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में 30 आदिवासी सीटों में जीत मिली थी. 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की टोटल 47 अनुसूचित जनजाति वाली सीटों में से 24 सीट भाजपा ने जीती और 22 सीटों में कांग्रेस को जीत मिली और भारत आदिवासी पार्टी को भी एक सीट में जीत मिली है. ऐसे में कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव के रिजल्ट से भी एक आस जगी है कि आदिवासी सीटों के माध्यम से एक बार फिर से कांग्रेस लोकसभा के इस रण में एमपी में सेंध लगा सकती है और इसीलिए उसका विशेष फोकस भी इन सीटों पर है.
एमपी में लोकसभा सीटों का हाल
भारतीय जनता पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की सिर्फ एक सीट छिंदवाड़ा लोकसभा सीट में हार मिली थी, और इस बार भाजपा छिंदवाड़ा सीट को भी जीतने में पूरी ताकत लगा रही है और दावा कर रही है इस बार प्रदेश में कांग्रेस का सफाया कर देगी. 2019 के चुनाव में कांग्रेस को एक सीट में जीत मिली थी. उस दौरान स्थिति यह थी कि अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति जिसको कांग्रेस अपना परंपरागत वोट बताती रही है वह कांग्रेस प्रदेश की 10 आरक्षित सीटों को भी नहीं जीत पाई थी.
आदिवासी सीटों पर है कांग्रेस का फोकस
मध्य प्रदेश में शहडोल, मंडला, बैतूल, खरगोन, रतलाम, धार ये छह लोकसभा सीट ऐसी हैं, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. जबकि चार सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. गौर करने वाली बात ये भी है कि कांग्रेस ने जब भी बेहतर प्रदर्शन किया है तो आदिवासी सीटों ने ही उन्हें बढ़त दिलाई है और इसीलिए आदिवासी सीटों पर कांग्रेस का विशेष फोकस भी है.
जानिए शहडोल और मंडला लोकसभा सीट का हाल
शहडोल लोकसभा सीट की बात करें तो 1996, 1998, 1999, 2004 तक यहां पर भाजपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. हालांकि 2009 में जब कांग्रेस ने 12 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी, उस दौरान शहडोल लोकसभा सीट में भी कांग्रेस को जीत मिली थी, लेकिन 2014 से एक बार फिर से यहां भाजपा का कब्जा है. मंडला लोकसभा सीट में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं 1996 से 2009 तक बीजेपी जीतती रही, 2009 में कांग्रेस को जीत मिली, भाजपा को हार मिली, और 2014 से यहां एक बार फिर से भाजपा का ही कब्जा है.
कैसा है बैतूल, रतलाम, खरगोन और धार लोकसभा सीट का हाल
बैतूल के आदिवासी आरक्षित लोकसभा सीट में कांग्रेस की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है. यहां साल 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस तो कभी जीत ही नहीं पाई. रतलाम लोकसभा सीट में आखिरी बार 2009 में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को जीत मिली थी और सांसद बने थे. जबकि 2014 से एक बार फिर से भाजपा का यहां कब्जा है. खरगोन लोकसभा सीट में भी कांग्रेस की कुछ ऐसे ही हालत है. साल 2004 से लगातार यहां भाजपा चुनाव जीत रही है. तब से कांग्रेस जीत नहीं पा रही है. धार लोकसभा की बात करें 2009 में कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन 2014 से एक बार फिर से यहां भाजपा का कब्जा है.
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कांग्रेसियों को राहुल की सभा से हैं बड़ी उम्मीदें
गौरतलब है की अभी हाल ही में एमपी में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की. कांग्रेस को महज कुछ सीट पर ही समेट दिया. लेकिन फिर भी कांग्रेस का आदिवासी आरक्षित सीटों पर प्रदर्शन उतना खराब नहीं था और यही वजह भी है कि लोकसभा चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर कांग्रेस का विशेष फोकस भी है. एक ओर जहां बीजेपी मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया करने का दावा कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस इस मुश्किल समय में आदिवासी वोटर्स के सहारे ही एमपी में सेंध लगाने की तैयारी में है और उस सीटों पर विशेष फोकस भी कर रही है, इसीलिए कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं की सभाएं आदिवासी सीटों पर विशेष तौर पर हो रही हैं. कुछ यही वजह है कि राहुल गांधी भी मंडला और शहडोल जैसे आदिवासी सीटों पर एक ही दिन पर बड़ी जनसभा करने जा रहे हैं और राहुल के इस जनसभा से कांग्रेसियों को भी बड़ी उम्मीद है.