वाराणसी : राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर 17 फरवरी को वाराणसी आ रहे हैं. वाराणसी दौरे को लेकर उनके तमाम कार्यक्रम हैं. वह जनता से संवाद भी करेंगे. इसी बीच उनके बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन को लेकर अखिल भारतीय संत समिति के जरिए कुछ सवाल भी उठाए गए हैं. संत समिति का कहना है कि 'यह राहुल गांधी का चुनावी स्टंट है. अगर उनके मन में आस्था होती तो वे ये न कहते कि मंदिर में लोग लड़कियां छेड़ने जाते हैं. इसमें विशुद्ध राजनीति और हिंदू धर्म के प्रति गाली झलकती है. राहुल सोमनाथ में गैर हिंदू के कॉलम में हस्ताक्षर कर के आते हैं. बनारस में बाबा विश्वनाथ मंदिर में गैर हिंदुओं का भी स्वागत है.
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि, राहुल गांधी के पहले के ही बयान 'मंदिर में लोग लड़कियां छेड़ने जाते हैं', को अगर आप देखें तो इसमें कहीं आस्था नहीं झलकती है. विशुद्ध राजनीति और हिन्दुओं को गाली देने जैसी बातें होती हैं. अगर अब राहुल के विचार बदल गए हों, सनातन हिन्दू धर्म के प्रति उनकी आस्था जग गई हो तो उसका स्वागत होना चाहिए. वे विश्वनाथ जी आ रहे हैं तो किसी का कोई विरोध नहीं है, लेकिन मन में संदेह तो जरूर है. हजारों वर्षों से हमारे मंदिरों पर यह जरूर लिखा रहा है कि गैर हिंदू प्रवेश वर्जित है. गैर हिन्दू अगर आस्था के वशीभूत मंदिरों में आता है तो उसका स्वागत किया जाएगा. मगर, किसी षड़यंत्र, किसी योजना, किसी राजनीति के अंतर्गत आता है तो स्वागत के योग्य नहीं होता है.
राहुल ने गैर हिन्दू के कॉलम में हस्ताक्षर किया : उन्होंने कहा कि, पिछले विधानसभा चुनाव में गुजरात के चुनाव के समय सोमनाथ मंदिर में जब वो गए तो उन्होंने गैर हिन्दू के कॉलम में हस्ताक्षर किया. इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह प्रश्न खड़ा होगा कि यह हिंदू हैं या गैर हिंदू हैं. अगर मन बदला है, आस्था जगी है तो स्वागत होना चाहिए, अन्यथा आस्था की आड़ में हिंदुओं की भावनाओं से खेलने का प्रयास है तो हिंदू समाज ऐसे लोगों को निश्चित पहचानता है. वहीं उन्होंने कहा कि, विश्वनाथ और ज्ञानवापी के प्रसंगों में पहले भी कांग्रेस के इतिहास में, जिन्होंने भगवान राम के अस्तित्व को नकारा, सुप्रीम कोर्ट में शपथ देकर राम अवतरित नहीं हुए, राम पैदा ही नहीं हुए ऐसी बातें कहीं.
प्रस्ताव में अयोध्या, काशी और मथुरा तीनों विषय : स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि, रामजन्मभूमि के प्रश्न पर किनारा करके रखा. प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को ठुकराया. इसलिए धर्म में आस्था है, राम में आस्था है या शिव में आस्था है. सिर्फ अयोध्या का ही विषय नहीं है. संत समिति के एक ही प्रस्ताव में अयोध्या, काशी और मथुरा तीनों विषय हैं. ज्ञानवापी के तल में अभी 1993 में से बंद पूजापाठ को करने के लिए हमें अनुमति मिली है. लोग दर्शन करने वहां जा रहे हैं. कौन जा रहा है, कौन नहीं जा रहा है, ये प्रश्न नहीं है. हिंदू समाज अपने तलगृह की तरफ जा रहा है तो जिसकी आस्था होगी वो जाएगा ही जाएगा. बनारस में राहुल का पूजा-पाठ करना चुनावी स्टंट है. ये हमें धैर्यपूर्वक देखने की जरूरत होगी कि इनके आगे के कदम क्या होंगे.
खून के एक-एक कतरे में ज्ञानवापी मंदिर के प्रति आस्था : वहीं सीएम योगी के ज्ञानवापी के तल में दर्शन करने के बाद राहुल और प्रियंका के भी जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहूंगा कि उन्हें भी दर्शन करना चाहिए. स्वयं किसी व्यक्ति के मन में अगर आस्था जगे उसे दर्शन करना चाहिए. अगर आस्था उसकी नहीं जगती है तो उसके कार्यक्रम बनाने वाले नीति-नियंता लोग जानें. हमारे खून के एक-एक कतरे में ज्ञानवापी मंदिर के प्रति आस्था है. उसी मंदिर के परिसर में बैठकर के शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने उपनिषदों का अध्ययन जगदगुरु कपिंद्राचार्य जी से किया था. इसलिए उस विश्वनाथ मंदिर से आस्था न हो ऐसा हमारे साथ कैसे हो सकता है. जो अपनी आस्था को भी राजनीतिक नजरिए से देखते हैं यह प्रश्न तो उनके लिए खड़ा होता है.