जयपुर : राधा अष्टमी का पर्व जितना उल्लास के साथ ब्रज भूमि और बरसाने में मनाया जाता है, उतनी ही श्रद्धा के साथ जयपुर में राधा रानी के इस त्योहार को मनाया जाता है. इतिहासकार जितेन्द्र सिंह शेखावत के मुताबिक ऐतिहासिक प्रसंगों में राधा जी का पीहर और ससुराल जयपुर ही बन गया है. जयपुर की गलियों में बने कृष्ण मंदिर राधा रानी के बिना अधूरे हैं. फिर चाहे बात ऐतिहासिक गोविंद देव जी मंदिर की हो या फिर गोपीनाथ जी के. रामगंज में लाडली जी का मंदिर हो या सिटी पैलेस में ब्रजनिधि जी. इसी तरह राधा दामोदर और अनेकों मंदिरों में राधा के बिना कृष्ण अधूरे नजर आते हैं. जितेन्द्र सिंह कहते हैं कि जयपुर राजपरिवार से जुड़े राजाओं की कृष्ण भक्ति गुलाबी नगरी को ब्रज और बरसाने से जोड़े रखती है.
राधा के विवाह की अनोखी कहानी : जितेन्द्र सिंह शेखावत के अनुसार जयपुर के राजा सवाई प्रताप सिंह कृष्ण के परम भक्त थे. वे ही ऐसे शासक थे, जिन्होंने कृष्ण के मोर मुकुट से प्रेरणा लेकर हवामहल जैसी ऐतिहासिक इमारत का निर्माण करवाया था. उन्होंने भगवान कृष्ण पर आधारित कई छंद और कविताओं की भी रचना की थी. कहा जाता है कि एक बार राजा को स्वप्न में स्वयं जयपुर के आराध्य गोविंद देव जी ने राधा जी के विवाह रचाने के लिए कहा. इस स्वप्न को पूरा करने के लिए सवाई प्रताप सिंह ने सिटी पैलेस में ब्रजनिधि जी के मंदिर का निर्माण करवाया और राधा जी के विवाह के कार्यक्रम शुरू किए.
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राजा खुद वर पक्ष की ओर रहे और राधा रानी के पीहर के रूप में रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री दौलतराम हल्दिया को जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद बाकायदा सभी विवाह संस्कारों को पूरा करते हुए सिटी पैलेस से निकली राधा जी की बारात जौहरी बाजार में हल्दिया हवेली पर पहुंची, जहां सभी संस्कारों को रीतिपूर्ण पूरा किया गया. कहा जाता है कि भगवान ब्रजनिधि को हाथी पर बैठा के सामंती बारातियों के साथ खुद सवाई प्रताप सिंह पहुंचे थे. इस तरह से जयपुर में जौहरी बाजार राधा जी का मायका है तो सिटी पैलेस राधा जी का ससुराल है.
राधा जी को दहेज में मिले उपहार : दौलतराम हल्दिया ने राधा जी को अपनी पुत्री मानते हुए विवाह संपन्न करवाया था. इस लिहाज से उन्होंने विवाह के बाद दहेज में कई गांव सौंपे. जोरावर सिंह गेट के बाहर एक बाग, बेशकीमती जवाहरात, हीरे-पन्ने और कीमती सामान भी दिया गया. इस विवाह के बाद राधा जी ब्रजनिधि के मंदिर में विराजमान है. सालों बाद हल्दिया परिवार की पीढ़ियां हर गणगौर और तीज पर सिंजारा लेकर सिटी पैलेस स्थित मंदिर में जाते हैं और पूजा करते हैं.
जयपुर राधा जी का ससुराल और पीहर भी है. राधा जी बालस्वरूप में लाडली जी के मंदिर में अपनी आठ सखियों के साथ विराजमान है. उनमें एक सखी राधा जी से बड़ी है और बाकी हम उम्र. इस मंदिर में राधा जी के बालपन की क्रीड़ाओं को दिखाया गया है. शेखावत के अनुसार एक संत वृंदावन से राधा जी की प्रतिमा को जब जयपुर लेकर आए तो रामगंज बाजार के लाडली जी के मंदिर में राधा जी की प्रतिमा को स्थापित किया गया. आज भी मंदिर में बाल स्वरूप में विराजमान राधा जी के भोजन से लेकर सभी संस्कार उसी बाल स्वरूप के अनुसार पूरे किए जाते हैं. हर जनमाष्टमी और राधा अष्टमी को इस मंदिर में भव्य कार्यक्रम होते हैं.
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ऐसे हुआ गोविंद से राधा का मेल : इतिहासकार जितेन्द्र सिंह शेखावत के अनुसार आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में लाल पत्थर से राधा-गोविंद मंदिर का निर्माण करवाया था. दसवी शताब्दी में आक्रांताओं के भय से राधा जी को उड़ीसा के राजा वृहद भानु लेकर गए और वहां एक मंदिर बनवाया. बाद में राजा वृद्हभानु के वंशज पुरुषोत्तम को स्वप्न में गोविंद देव जी ने राधा जी को लाने के लिए कहा तो उन्होंने वृंदावन में गोविंद देव जी के साथ राधा जी को विराजमान करवाया.
हालांकि, बाद में औरंगजेब के हमले हुए तो मंदिर के महंत शिवराम गोस्वामी बैलगाड़ी में बैठाकर राधा जी और गोविंद देवजी को जयपुर लेकर आए और कनक वृंदावन में स्थित मंदिर में विराजमान किया. फिर 1727 में जब सवाई जयसिंह ने जयपुर बसाया तो उन्होंने अपने लिए बनाए गए सूरज महल में राधा-गोविंद देव जी विराजमान करवाया गया. इस मंदिर में राधा जी के साथ उनकी दो सखियां भी हैं.
जितेन्द्र सिंह शेखावत कहते हैं कि पूरा जयपुर राधा-कृष्णमय है. यहां कृष्ण के पड़ पौत्र वज्रनाभ की ओर से बनाई गई कृष्ण की तीन प्रतिमाएं, गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी और मदन मोहन जी को लाया गया था. इनमें से मदनमोहन जी बाद में करौली स्थित मंदिर में विराजमान हो गए.