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UP में बिजली दर बढ़ाने के प्रस्ताव पर नियामक आयोग में विरोध प्रस्ताव दाखिल, निजीकरण पर उठाए गंभीर सवाल

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने दाखिल किया विरोध प्रस्ताव,

यूपी विद्युत नियामक आयोग.
यूपी विद्युत नियामक आयोग. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 16 hours ago

लखनऊ: दक्षिणांचल, पूर्वांचल, मध्यांचल, पश्चिमांचल और केस्को की तरफ से लगभग 12,800 करोड़ का गैप दिखाकर वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए उपभोक्ताओं की बिजली दरों में 15 से 20 प्रतिशत इजाफा करने का नियामक आयोग में प्रस्ताव दाखिल किया गया था. इसके बाद मंगलवार को उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने विद्युत नियामक आयोग में लोक महत्व विरोध प्रस्ताव दाखिल कर दिया. उन्होंने कहा, बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता कानून के तहत सही नहीं है. जब प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव दाखिल होना चाहिए था, इसलिए इसे संशोधित कराया जाए. दूसरा बिजली कंपनी दक्षिणांचल व पूर्वांचल के निजीकरण पर बड़ा पेंच फंसता नजर आ रहा है.


पावर कारपोरेशन को कानून का ज्ञान नहींः अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जब दक्षिणांचल व पूर्वांचल की तरफ से भी वर्ष 2025 -26 का बिजली दर प्रस्ताव दाखिल हो गया है तो अब इस वित्तीय वर्ष में इस बिजली कंपनी को निजी हाथों में नहीं दिया जा सकता. क्योंकि निजी हाथों में 51 प्रतिशत शेयर निजी कंपनियों का होगा, लेकिन जो बिजली दर प्रस्ताव दाखिल किया गया है, वह दक्षिणांचल और पूर्वांचल का है. ऐसे में इस वित्तीय वर्ष में अब उसके शेयर में कोई भी बदलाव नहीं हो सकता. एक बड़ा लीगल सवाल उठाते हुए कहा कि पावर कॉरपोरेशन जिसकी कोई लीगल आइडेंटिटी नहीं है, उसने दक्षिणांचल व पूर्वांचल को निजी हाथों में पीपीपी मॉडल के तहत सौंपने का एलान कर दिया. पावर कारपोरेशन को कानून का ज्ञान नहीं है. सबसे पहले विद्युत अधिनियम 2003 पढना चाहिए. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 19(3) में स्पष्ट रूप से प्रावधानित है सबसे पहले पूर्वांचल और दक्षिणांचल को अगर पीपीपी मॉडल में दिया जाना था तो दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत कंपनी को कारण बताते हुए रीवोक्ड लाइसेंस का आवेदन देना था. विद्युत अधिनियम 2003 यह कहता है कि कम से कम तीन माह की नोटिस के बाद ही लाइसेंस रिवोक्ड होगा. ऐसे में अब बिजली कंपनियां लाइसेंस के लिए आवेदन भी कानूनन आयोग को नहीं दे सकतीं, क्योंकि उनकी तरफ से वर्ष 2025- 26 के लिए बिजली दर का प्रस्ताव दाखिल कर दिया गया है. इसका मतलब इस वित्तीय वर्ष में दक्षिणांचल और पूर्वांचल ही उपभोक्ताओं की सेवा करेगी.


लीगल आइडेंटी पर भी उठाए सवालः पावर कॉरपोरेशन की लीगल आइडेंटी पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि किसके दबाव में असंवैधानिक परिपाटी का निर्वहन करते हुए दोनों बिजली कंपनियों को निजी क्षेत्र में देने की बात की जा रही है. यह बहुत गंभीर मामला है. सबसे पहले आयोग इस प्रक्रिया को तत्काल रोके और पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का जो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर है, उसको बर्खास्त करने की दिशा में आगे बढ़े. क्योंकि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का एग्रीमेंट इन दोनों बिजली कंपनियों के साथ है. बिना उपभोक्ताओं को कॉन्फिडेंस में लिए इन दोनों बिजली कंपनियों को किसी के हाथ में बेचना ठीक नहीं है. प्रदेश के उपभोक्ताओं का सभी बिजली कंपनियों पर लगभग 5000 करोड़ से ज्यादा की सिक्योरिटी राशि जमा है. इन दोनों बिजली कंपनियों पर भी लगभग 2500 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं की सिक्योरिटी है. ऐसे में किसी भी कीमत पर निजीकरण ठीक नहीं है.

लखनऊ: दक्षिणांचल, पूर्वांचल, मध्यांचल, पश्चिमांचल और केस्को की तरफ से लगभग 12,800 करोड़ का गैप दिखाकर वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए उपभोक्ताओं की बिजली दरों में 15 से 20 प्रतिशत इजाफा करने का नियामक आयोग में प्रस्ताव दाखिल किया गया था. इसके बाद मंगलवार को उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने विद्युत नियामक आयोग में लोक महत्व विरोध प्रस्ताव दाखिल कर दिया. उन्होंने कहा, बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता कानून के तहत सही नहीं है. जब प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव दाखिल होना चाहिए था, इसलिए इसे संशोधित कराया जाए. दूसरा बिजली कंपनी दक्षिणांचल व पूर्वांचल के निजीकरण पर बड़ा पेंच फंसता नजर आ रहा है.


पावर कारपोरेशन को कानून का ज्ञान नहींः अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि जब दक्षिणांचल व पूर्वांचल की तरफ से भी वर्ष 2025 -26 का बिजली दर प्रस्ताव दाखिल हो गया है तो अब इस वित्तीय वर्ष में इस बिजली कंपनी को निजी हाथों में नहीं दिया जा सकता. क्योंकि निजी हाथों में 51 प्रतिशत शेयर निजी कंपनियों का होगा, लेकिन जो बिजली दर प्रस्ताव दाखिल किया गया है, वह दक्षिणांचल और पूर्वांचल का है. ऐसे में इस वित्तीय वर्ष में अब उसके शेयर में कोई भी बदलाव नहीं हो सकता. एक बड़ा लीगल सवाल उठाते हुए कहा कि पावर कॉरपोरेशन जिसकी कोई लीगल आइडेंटिटी नहीं है, उसने दक्षिणांचल व पूर्वांचल को निजी हाथों में पीपीपी मॉडल के तहत सौंपने का एलान कर दिया. पावर कारपोरेशन को कानून का ज्ञान नहीं है. सबसे पहले विद्युत अधिनियम 2003 पढना चाहिए. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 19(3) में स्पष्ट रूप से प्रावधानित है सबसे पहले पूर्वांचल और दक्षिणांचल को अगर पीपीपी मॉडल में दिया जाना था तो दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत कंपनी को कारण बताते हुए रीवोक्ड लाइसेंस का आवेदन देना था. विद्युत अधिनियम 2003 यह कहता है कि कम से कम तीन माह की नोटिस के बाद ही लाइसेंस रिवोक्ड होगा. ऐसे में अब बिजली कंपनियां लाइसेंस के लिए आवेदन भी कानूनन आयोग को नहीं दे सकतीं, क्योंकि उनकी तरफ से वर्ष 2025- 26 के लिए बिजली दर का प्रस्ताव दाखिल कर दिया गया है. इसका मतलब इस वित्तीय वर्ष में दक्षिणांचल और पूर्वांचल ही उपभोक्ताओं की सेवा करेगी.


लीगल आइडेंटी पर भी उठाए सवालः पावर कॉरपोरेशन की लीगल आइडेंटी पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि किसके दबाव में असंवैधानिक परिपाटी का निर्वहन करते हुए दोनों बिजली कंपनियों को निजी क्षेत्र में देने की बात की जा रही है. यह बहुत गंभीर मामला है. सबसे पहले आयोग इस प्रक्रिया को तत्काल रोके और पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का जो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर है, उसको बर्खास्त करने की दिशा में आगे बढ़े. क्योंकि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का एग्रीमेंट इन दोनों बिजली कंपनियों के साथ है. बिना उपभोक्ताओं को कॉन्फिडेंस में लिए इन दोनों बिजली कंपनियों को किसी के हाथ में बेचना ठीक नहीं है. प्रदेश के उपभोक्ताओं का सभी बिजली कंपनियों पर लगभग 5000 करोड़ से ज्यादा की सिक्योरिटी राशि जमा है. इन दोनों बिजली कंपनियों पर भी लगभग 2500 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं की सिक्योरिटी है. ऐसे में किसी भी कीमत पर निजीकरण ठीक नहीं है.

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