बीकानेर: राजस्थान के राज्य वृक्ष का दर्जा प्राप्त खेजड़ी वृक्ष को लेकर उदासीनता और लापरवाही के मामले कई बार सामने आ रहे हैं. हाल के वर्षों में पश्चिमी राजस्थान खासतौर से बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर और बाड़मेर जिलों में सोलर प्लांट की स्थापना के दौरान खेजड़ी वृक्ष की कटाई के कई बार मामले सामने आए हैं. इसको लेकर ग्रामीणों ने भी विरोध जताया है. बीकानेर के नोखा दैया जयमलसर गांव में खेजड़ला की रोही में लगातार 34वें दिन ग्रामीणों का धरना जारी रहा और मंगलवार को धरने में नोखा के पूर्व विधायक बिहारीलाल बिश्नोई सहित बड़ी संख्या में पर्यावरण प्रेमी भी शामिल हुए. इस दौरान एक स्वर में पर्यावरण प्रेमियों ने इस बात को लेकर आक्रोश बताया कि खेजड़ी के वृक्ष को लेकर उदासीनता बढ़ती जा रही है और सोलर कंपनियां मनमानी कर रही हैं.
पीएम-सीएम तक पहुंचाएंगे बात: उधर सोलर कंपनियों की ओर से लगातार खेजड़ी के वृक्षों को काटे जाने के मामले में धरने में शामिल हुए पूर्व विधायक बिहारी लाल बिश्नोई ने कहा कि एक और हमारे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री लगातार पर्यावरण संरक्षण को लेकर पौधारोपण करने की बात कहते हैं और वहीं दूसरी और सिस्टम की लापरवाही के चलते खेजड़ी के वृक्षों को काटा जा रहा है. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में इन वृक्षों ने ही हमारी जान बचाई और सबसे ज्यादा जरूरत ऑक्सीजन की पड़ी और जो कि इन पेड़ों से मिलती है. उन्होंने कहा कि हम सोलर का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन अगर कहीं जरूरत पड़ती है, तो एक के बदले 10 पेड़ लगने चाहिए. उन्होंने का इस मामले को लेकर वह मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी बात पहुंचाएंगे.
राज्य वृक्ष है खेजड़ी: 31 अक्टूबर, 1983 में खेजड़ी को सरकार ने राज्य वृक्ष के रूप में घोषित किया था. लेकिन इस वृक्ष को काटने पर लेकर सरकार की ओर से कोई कठोर कानून नहीं बना. जबकि करीब 400 साल पहले मां अमृता देवी ने सैकड़ों लोगों के साथ मिलकर खेजड़ी की कटाई को रोकने के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया.
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मिलती है सांगरी: राजस्थान का ड्राई फ्रूट कहा जाने वाली सब्जी सांगरी खेजड़ी के वृक्ष की ही देन है. खेजड़ी की पत्तियों से पशुओं का चारा हो जाता है. वहीं सांगरी को बेचकर किसान अपना पेट पाल सकता है. राजस्थान के मौसम के अनुकूल होने के साथ ही पर्यावरण संतुलन के लिए खेजड़ी का अपना एक महत्व है.