गौरेला पेंड्रा मरवाही: जिले में शिक्षा की हालत बद से बदतर है. यहां आदिवासी क्षेत्रों में पांचवी के बच्चों को पढ़ने नहीं आता. स्कूल के शिक्षक स्कूल जाने और पढ़ाने के नाम पर खानापूर्ती करते हैं. यही कारण है कि आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों का भविष्य अंधकार में है. जिम्मेदार अधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. वहीं, जिला शिक्षा अधिकारी ने व्यवस्था सुधारने की बात कही है.
हिन्दी की किताब नहीं पढ़ पा रहे बच्चे: दरअसल हम बात कर रहे हैं जिले में पेंड्रा और गौरेला विकासखंड के दूरस्थ ग्रामों बस्ती बगरा इलाकों के स्कूल की. इन क्षेत्रों में ईटीवी भारत की टीम पहुंची. ये सरकारों के लिए चिंता का विषय है. यहां पढ़ने वाले पहले से पांचवी तक के छात्रों को हिंदी पढ़ना नहीं आता. कक्षा दूसरी और तीसरी के बच्चे हिंदी की पुस्तक भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. कोटमीखुर्द मजखल्ला स्कूल के छात्रों ने हिंदी नहीं पढ़ पाने की वजह भी बताई. बच्चों ने बताया कि स्कूल में शिक्षक मोबाइल में व्यस्त रहते हैं, इसलिए कोई पढ़ता नहीं.
हस्ताक्षर कर स्कूल से चले जाते हैं शिक्षक: इसके बाद जब ईटीवी भारत की टीम रामगढ़, बस्ती, बगरा, कोटमीखुर्द और उसके पास के कुछ स्कूलों का हाल-चाल जानने पहुंची तो इन स्कूलों ने पूरे प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी. वैसे तो शासन स्तर ज्यादातर स्कूलों में तीन से पांच अध्यापकों की नियुक्ति की गई है. हालांकि किसी भी स्कूल में एक से अधिक शिक्षक नहीं मिले. ज्यादातर शिक्षक स्कूल पहुंचने के बाद रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर करते हैं. कई हस्ताक्षक के बाद वापस घर चले जाते हैं. इनमें सभी के हस्ताक्षर पाए गए. मतलब दिन भर की तनख्वाह सभी को मिलेगी.
स्कूल से गायब लेकिन रजिस्टर में मौजूद हैं शिक्षक: इसके बाद जब ईटीवी भारत की टीम हाई स्कूल गई. स्कूल में कक्षा नवमी और दसवीं को पढ़ने के लिए शासन ने काफी बड़ी बिल्डिंग बना रखी थी. इस स्कूल में पांच शिक्षकों की नियुक्ति भी है, पर स्कूल में सिर्फ दो ही शिक्षक उपस्थित मिले. नवमी और दसवीं के विद्यार्थियों को सुबह 10 बजे स्कूल आने के बाद 6 घंटे में सिर्फ एक ही विषय पढ़ाया गया था. इसका कारण स्कूल में शिक्षक का न होना था. हालांकि यहां भी रजिस्टर में शिक्षक मौजूद थे, लेकिन स्कूल से शिक्षक गायब थे.
आलम यह है कि गौरेला पेंड्रा मरवाही के दूरस्थ इलाकों में पढ़ने वाले बच्चों को हिन्दी पढ़ना भी नहीं आता. स्कूल के अधिकतर शिक्षक या तो मोबाइल में व्यस्त रहते हैं या फिर स्कूल के रजिस्टर पर साइन करके स्कूल से गायब रहे. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इन बच्चों का भविष्य अंधकार में डालने वाले इनके शिक्षक ही हैं.