रायपुर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है. ऐसे में एक बार फिर प्रदेश में आरक्षण का मुद्दा गरमाने की चर्चा है. क्या इस मुद्दे को कांग्रेस विधानसभा सत्र के दौरान उठाएगी? ऐसे में भाजपा सरकार की इससे निपटने क्या तैयारी है? आदिवासी समाज की आरक्षण के मुद्दे को लेकर क्या रणनीति क्या है? इसे लेकर ईटीवी भारत ने बीजेपी, कांग्रेस, आप और सर्वआदिवासी समाज के कार्यकर्ताओं से बातचीत की. इसके बाद पॉलिटिकल एक्सपर्ट से भी ईटीवी भारत ने बातचीत की.
सर्व आदिवासी समाज की अपील: इस बारे में सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा, "आदिवासी आरक्षण के मामले को लेकर सदन में सवाल उठाने के लिए विधायकों से अपील की है. पूर्व में जब भाजपा विपक्ष में थी तो आदिवासियों के साथ उनके आरक्षण के मामले को लेकर आंदोलनरत थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद अब उनकी रुचि इस आरक्षण को लेकर कम ही दिख रही है. यही वजह है कि अब उन्हें वर्तमान में विपक्ष में बैठी कांग्रेस से ज्यादा उम्मीदें हैं. यही करने की कांग्रेस के विधायकों से उन्होंने विधानसभा सत्र के दौरान आदिवासी आरक्षण मुद्दे पर सवाल लगाने की अपील की है.
आगामी 9 अगस्त को आदिवासी दिवस के दिन रायपुर में प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी है, जिसमें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को बुलाने को लेकर भी विचार किया जा रहा है. यदि संभव हुआ तो इस कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित करेंगे. एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली भी रवाना होगा. आदिवासी समाज अपने हक लिए लगातार लड़ाई लड़ता रहेगा. जब तक आदिवासियों को उनका हक नहीं मिलेगा, तब तक उनकी कोशिश जारी रहेगी. -बीएस रावटे, प्रदेश अध्यक्ष, सर्वआदिवासी समाज, छत्तीसगढ़
कांग्रेस का बीजेपी पर प्रहार: वहीं, कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है, "कांग्रेस आदिवासियों की मांग के साथ खड़ी है. आदिवासी आरक्षण को लेकर हमने प्रस्ताव तैयार किया था वो विधानसभा में पास हो गया, लेकिन राज्यपाल ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया. राजभवन में आज भी यह विधेयक लंबित है. तब से लेकर अब तक दो राज्यपाल बदल गए, लेकिन हस्ताक्षर नहीं हुए हैं. भाजपा नहीं चाहती कि प्रदेश के आदिवासियों का आरक्षण मिले. वो इसके विरोध में है. यही कारण है कि उन्होंने आदिवासियों के आरक्षण को लेकर अब तक राजभवन से हस्ताक्षर नहीं होने दिए हैं. कांग्रेस का यह भी आरोप है कि भाजपा आरक्षण के नाम पर आदिवासियों के साथ राजनीति कर रही है."
बीजेपी ने किया पलटवार: वहीं, कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार करते हुए भाजपा मीडिया विभाग के प्रमुख अमित चिमनानी ने कहा, "कांग्रेस आरक्षण के नाम पर राजनीति कर रही है. जब आरक्षण के मुद्दे को लेकर कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से पक्ष रखना था, तो उन्होंने कोर्ट में अपना पक्ष ठीक से नहीं रखा. अच्छे वकील नहीं लगाये. जरूरी जानकारी अच्छे से उपलब्ध नहीं कराई और जब उस पर रोक लगा दी गई तो अब बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं. आदिवासी समाज को उनका हक मिले, इसके लिए हम लोग लगातार प्रयासरत है."
आप ने कांग्रेस और बीजेपी को घेरा: वहीं, आदिवासियों के आरक्षण के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को आड़े हाथों लिया. आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल साहू ने कहा, "कांग्रेस को पता है कि जो आरक्षण बिल लाया गया, उस पर हस्ताक्षर नहीं होगा. वहीं दूसरी और बीजेपी भी इस मामले को लेकर दूसरे पाली में गेंद डालने की कोशिश कर रही है. कुल मिलाकर दोनों ही दल एक दूसरे के पाली में गेंद डालकर आदिवासियों का अहित कर रहे हैं. आदिवासियों की मांग के साथ आम आदमी पार्टी खड़ी हुई है."
जानिए क्या कहते हैं राजनीति के जानकार: इस बारे में राजनीति के जानकार उचित शर्मा का कहना है, "भाजपा सरकार का लगभग 6 महीने से अधिक का समय बीत चुका है. ऐसे में राज्यपाल के पास जो आरक्षण बिल लटका हुआ है, उसे पास हो जाना था. इस पर अब राजनीति होना लाजमी है. केन्द्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है. ऐसे में इस बिल को लेकर जल्द पास होने की संभावना जताई जा रही है. हो सकता है कि आगामी एक दो महीने में या फिर आदिवासी दिवस के पहले यह बिल पास हो जाए. प्रदेश में पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने 58 फीसद के आरक्षण पर लगी रोक को हटा दिया, जिसके बाद भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गई है. ऐसे में आगामी दिनों पर जो नया आरक्षण बिल लाया गया था, उसे भी पास किया जा सकता है. हालांकि जब तक यह बिल पास नहीं होता, तब तक इस मामले में राजनीति होती रहेगी.
आबादी के हिसाब से सरकार ने जारी किया था रोस्टर: दरअसल, छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2012 में 58 फीसदी आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की थी. इसमें प्रदेश की आबादी के हिसाब से सरकार ने आरक्षण का रोस्टर जारी किया था. इसके तहत अनुसूचित जनजाति को 20 की जगह 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 16 की जगह 12 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया. इससे आरक्षण का दायरा संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा हो गया. पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की ओर से लाए नए आरक्षण बिल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है, जो कि आज भी राजभवन में राज्यपाल का हस्ताक्षर के लंबित है.