देहरादून: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों के कार्यकाल को बढ़ाए जाने से शुरू हुई बात अब सरकार के विरोध तक पहुंच गई है. राज्य सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक के तौर पर नियुक्त करने का निर्णय लिया है. इसके बाद अब ग्राम पंचायत और ब्लॉक के प्रतिनिधियों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.
उत्तराखंड सरकार त्रिस्तरीय पंचायतों में समय पर चुनाव नहीं करवा पाई है. हालांकि, चुनाव प्रक्रिया जल्द ही शुरू किए जाने की बात कही जाती रही है, लेकिन इस बीच राज्य सरकार के एक आदेश ने मामले में नया विवाद खड़ा कर दिया है. हालांकि, आरक्षण प्रक्रिया पूरी न होने के कारण पंचायत प्रतिनिधि कार्यकाल बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे, लेकिन पंचायत एक्ट में इसका कोई प्रावधान न होने के कारण सरकार ने इस पर विचार नहीं किया.
इन्हीं परिस्थितियों के बीच शासन का एक आदेश विवाद की वजह बन गया. इसके तहत प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासन के तौर पर नियुक्त किए जाने का निर्णय लिया गया. आदेश होते ही जहां एक तरफ जिला पंचायत अध्यक्ष तो खुश हो गए, लेकिन ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर के प्रतिनिधियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
पंचायत प्रतिनिधि रहे अमरेंद्र बिष्ट ने बताया कि सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक बनाए जाने का जो निर्णय लिया है, वो स्वागत योग्य है, लेकिन ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर पर काम कर रहे जनप्रतिनिधियों के साथ सरकार ने दोहरा रवैया अपनाया है. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से तमाम ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर के प्रतिनिधि नाराज हैं. जब जिला पंचायत अध्यक्ष प्रशासक के तौर पर नियुक्त किए जा सकते हैं तो फिर ब्लॉक और ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों के साथ सरकार ने भेदभाव क्यों किया?
जिला पंचायत का कार्यकाल आज हो चुका खत्म: बता दें कि उत्तराखंड में जिला पंचायत का कार्यकाल आज (1 दिसंबर) ही समाप्त हो रहा है. सरकार समय पर चुनाव नहीं करवा पाई है और कार्यकाल खत्म होने से पहले जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक के तौर पर नियुक्ति से जुड़ा आदेश भी कर दिया गया है. हरिद्वार को छोड़कर 12 जिलों में ग्राम पंचायतों का 27 नवंबर को कार्यकाल खत्म हो गया है. जबकि, क्षेत्र पंचायत का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो चुका है. खास बात ये है कि ग्राम पंचायत स्तर पर सहायक विकास अधिकारी और क्षेत्र पंचायत में एसडीएम (SDM) को प्रशासक के तौर पर जिम्मेदारी दी गई है.
बीजेपी ने कही ये बात: क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों की नाराजगी सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी सही नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार तमाम प्रतिनिधियों को किसी तरह मनाने की कोशिश में भी जुटी हुई है. बीजेपी इस स्थिति में सरकार की ओर से जल्द ही कोई सकारात्मक फैसला लिए जाने की बात कह रही है. पार्टी नेताओं की मानें तो बीजेपी सरकार बीच का रास्ता निकालेगी. ताकि, नियमों के अंतर्गत प्रतिनिधियों को भी न्याय मिल सके.
जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक नियुक्त करने पर कांग्रेस ने जताई आपत्ति: क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रशासक नियुक्त कर दिए गए हैं. खास बात ये है कि प्रदेश सरकार ने इस बार नई प्रथा लागू करते हुए जिला पंचायत अध्यक्षों को ही प्रशासक नियुक्त किया है. जिसे लेकर सियासत गरमा गई है. इसी कड़ी कांग्रेस ने जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक नियुक्त किए जाने की विधिक रूप से गलत कर दिया है.
विकासनगर में पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता नवप्रभात ने भी इसे असंवैधानिक करार दिया है. नवप्रभात ने कहा कि प्रदेश सरकार ने मनमाना रवैया अपनाया है. संवैधानिक रूप से किसी भी चुने गए प्रतिनिधि को प्रशासक नियुक्त किया जाना गलत है. क्योंकि, न तो निकाय और न ही पंचायत में कोई ऐसी व्यवस्था है. उन्होंने आरोप लगाया कि जिला पंचायत में आने वाले करोड़ों रुपए के बजट को ठिकाने लगाने के लिए इस परंपरा को शुरू किया जा रहा है. जिस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए.
वहीं, उन्होंने इस मामले को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के साथ ही अन्य लोगों को भी इस परंपरा का विरोध करने की मांग की है. उनका कहना है कि जिला पंचायत अध्यक्षों को प्रशासक के रूप में जो एक्सटेंशन प्रदान किया है, वो न ही संविधान की व्यवस्थाओं के अनुकूल है, न ही वो राज्य के पंचायती राज अधिनियम के अनुकूल है. ना ही हमारी परंपराओं के अनुकूल है. ऐसी स्थिति में जब पंचायती राज के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती हो तो इस प्रकार से राजनीतिक व्यक्तियों को प्रशासक नियुक्त किया जाना पूरी तरह से लोकतांत्रिक संविधान की व्यवस्थाओं को खंडित करता है.
ये भी पढ़ें-