पंचकूला: हरियाणा में घर से भाग कर शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों को वर्षों ऑनर किलिंग का खतरा रहता है. नतीजतन समय-समय पर प्रेमी जोड़े शादी के बाद सुरक्षा लेने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हैं. लेकिन हाईकोर्ट ने अब इस प्रकार के मामलों में हरियाणा समेत पंजाब और चंडीगढ़ को मजबूत मेकैनिज्म बनाने के निर्देश दिए हैं, ताकि वैवाहिक बंधन में बंधने वाले प्रेमी जोड़ों को पुलिस के स्तर पर ही सुरक्षा मिल सके.
30 दिन में बनाएं मजबूत मेकैनिज्म
हाईकोर्ट ने बीते बुधवार को इस मामले में कहा कि हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ को 30 दिन में मजबूत मेकैनिज्म बनाना होगा. जस्टिस संदीप मोदगिल द्वारा दिए आदेश के अनुसार अब प्रेम विवाह के जोड़ों को पुलिस के स्तर पर सुरक्षा मिल सकेगी. नतीजतन अब उन्हें हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार नहीं लगानी पड़ेगी.
पुलिस कार्रवाई से असंतुष्ट होने पर ही पहुंचे हाईकोर्ट
कोर्ट के आदेशों के अनुसार प्रेमी विवाहित जोड़ों को पहले स्थानीय पुलिस अधिकारियों से संपर्क करना होगा. यदि इसके बाद भी वो पुलिस कार्रवाई से असंतुष्ट हों तो हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकेंगे. कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि इस प्रकार के विवाहित जोड़ों को पहले स्थानीय पुलिस के नोडल पुलिस अधिकारियों से संपर्क करना होगा. स्पष्ट किया गया कि नोडल अधिकारी एएसआई रैंक से कम नहीं होगा. नोडल अधिकारी को तीन दिन में सुरक्षा लेने पहुंचे विवाहित जोड़े की अर्जी पर फैसला लेना लेगा. हालांकि प्राथमिक स्तर पर कार्रवाई से असंतुष्ट होने की सूरत में विवाहित जोड़ा अगले तीन दिनों की समय सीमा में डीएसपी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता वाली अपीलीय प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है.
डीएसपी को 7 दिन में लेना होगा फैसला
कोर्ट ने अपने निर्देशों में स्पष्ट किया है कि विवाहित जोड़े की अर्जी पर डीएसपी को एक सप्ताह में फैसला लेना होगा. लेकिन विवाहित जोड़ा यदि डीएसपी की कार्रवाई से असंतुष्ट हो तो उसके बाद ही वो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. हाईकोर्ट के अनुसार इन उपायों के लागू होने पर संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होने समेत प्रशासनिक तंत्र में दक्षता और करुणा की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलेगा.
प्रक्रिया की पालना पर अत्यंत गंभीर मामले ही पहुंचेंगे कोर्ट
जस्टिस संदीप मोदगिल ने अपने आदेश में कहा कि यह प्रक्रिया संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और प्रशासनिक तंत्र में दक्षता व संवेदनशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देगी. इस प्रक्रिया की पालन पर गंभीर और अति गंभीर मामलों संबंधी याचिकाएं ही हाईकोर्ट या अन्य अदालतों में पहुंचेंगी.
हाईकोर्ट में दायर हो रही ढेरों याचिकाएं
हाईकोर्ट ने कहा कि रोजाना इस प्रकार की करीब 90 याचिकाएं दाखिल होती हैं, जिनसे कोर्ट का चार घंटे से अधिक समय व्यर्थ होता है. जबकि यह समय पिछले कई सालों से लंबित अन्य महत्वपूर्ण मामलों को सुनने में उपयोग किया जा सकता है.
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