जबलपुर। जलकुंभी एक बेहद खतरनाक खरपतवार है. जो देशभर में पानी के स्रोतों के लिए खतरा बना हुआ है, लेकिन पीलीभीत की शशि कला ने जलकुंभी के रेशों का ऐसा प्रयोग किया है कि उसे न केवल यह खरपतवार एक उपयोगी सामान बन गया है, बल्कि इससे बेहद सुंदर कलाकृतियां बनाई जा सकती हैं. जो जैविक होती है, टिकाऊ होती है और एक अच्छा रोजगार का अवसर पैदा किया जा सकता है. शशिकला ने ऐसा कर दिखाया है और वह आज एक सफल कलाकार और व्यापारी बन रही हैं.
जलकुंभी एक समस्या
जलकुंभी खरपतवार है. इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि कोई अंग्रेज महिला इसे घर की सजावट के लिए इंग्लैंड से लेकर आई थी. इसमें छोटे-छोटे सुंदर नीले फूल भी होते हैं. अंग्रेज महिला के गमले से जलकुंभी सबसे पहले किसी छोटे तालाब तक पहुंची और धीरे-धीरे इसने इतना विस्तार किया कि आज यह भारत की लगभग 80% तालाब में पाई जाती है. यह खरपतवार पानी का बड़े पैमाने पर अवशोषण कर पानी को प्रदूषित करती है. इसलिए यह एक बड़ी समस्या है.जबलपुर के खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान केंद्र में जलकुंभी को खत्म करने के लिए रिसर्च भी की जा रही है, लेकिन इस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है.
जलकुंभी से कलाकृतियां
असम में कुछ लोगों ने जलकुंभी के रेशों से सुंदर कलाकृतियां बनाए. अब इसे दूसरों को बनाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. पीलीभीत की रहने वाली शशि कला जलकुंभी से बने हुए बेहद सुंदर पर्स, डोलची, खाना रखने के डिब्बे, रोटियां रखने के डिब्बे बनाकर जबलपुर लाई हैं और यहां उन्हें मेले में बेच रही हैं.
मेनका गांधी ने बदली शशि कला की जिंदगी
शशि कला की कहानी भी एक सफल महिला की कहानी है. दरअसल शशि कला उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की रहने वाली हैं. गांव में मजदूरी करती थी. यहीं उन्हें मेनका गांधी के एक एनजीओ ने जैविक खाद बनाने के गुण सिखाए, लेकिन जैविक खाद के जरिए जीवन में क्रांति नहीं हो सकती थी. यह केवल रोजी-रोटी का साधन था. इसी दौरान मेनका गांधी के स्वयंसेवी संगठन शशि कला की मेहनत को देखते हुए, उन्हें कुछ नया सिखाना चाहता था, लिहाजा शशि कला को असम भेजा गया.
जहां उन्होंने जलकुंभी से कलाकृतियां बनाने की ट्रेनिंग ली. अब शशि कला का कहना है कि वे जलकुंभी से कई सालों से जलकुंभी से कलाकृतियां बना रही हैं. जलकुंभी ने उन्हें एक रोजगार का अवसर दिया है, बल्कि उनकी बनाई कलाकृतियां उन्होंने देश के कई इलाकों में बेची है. जलकुंभी की वजह से मजदूर शशि कला कलाकार हो गई हैं.
अब करती हैं लाखों का व्यापार
जलकुंभी के रेशों से कलाकृतियां बनाना बहुत सरल है. इसमें जलकुंभी के रेशों को धूप में सुखाया जाता है. जब यह पर्याप्त सूख जाते हैं, तो इनको अलग-अलग आरोन में बन लिया जाता है. शशि कला के बने हुए सामानों में चमक थी. हमने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने इसमें कोई पालिश किया है. शशि कला का कहना था कि नहीं यह पूरी तरह जैविक है. इसमें कोई केमिकल इस्तेमाल में नहीं लाया गया है.
शशिकला ने बताया कि जलकुंभी के रेशों से बने सामान टिकाऊ होते हैं. इनका लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है. वे छोटे-छोटे सामानों को अच्छी कीमत में बेच रही थीं. उनका कहना है कि इस खरपतवार से उन्होंने लाखों रुपए कमाए हैं. शशिकला ने बताया कि बीते दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उन्होंने उनसे 18000 रुपए का सामान खरीदा था.
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असम में भी होती है ट्रेनिंग
यदि आपके आसपास के तालाबों में भी जलकुंभी है, तो यह एक रोजगार का साधन हो सकती है. इसके लिए असम में ट्रेनिंग होती है और कोई भी बेरोजगार उसे सीख सकता है. जो प्रयोग शशिकला ने किए हैं, उनके आगे भी जलकुंभी के रेशों से दूसरे सामान भी बनाया जा सकते हैं.