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छत्तीसगढ़ में NOTA बन सकता है बड़ी पार्टियों के लिए सिरदर्द,जानिए कैसा रहा लोकसभा चुनाव में परफॉर्मेंस - Lok Sabha Election 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल ने अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं.लेकिन राजनीतिक दलों के अलावा एक प्रत्याशी ऐसा भी है जिसका परफॉर्मेंस साल दर साल पार्टियों के लिए मुसीबत की घंटी बजा रहा है. इस प्रत्याशी के वजूद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जनाब पिछले दो लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर तीसरे नंबर पर रहे.

NOTA meaning in politics
छत्तीसगढ़ में NOTA बन सकता है बड़ी पार्टियों के लिए सिरदर्द
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 5, 2024, 7:35 PM IST

Updated : Apr 6, 2024, 11:16 AM IST

छत्तीसगढ़ में NOTA

रायपुर : छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में मतदान हो रहे हैं.पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा जिसमें बस्तर लोकसभा सीट के लिए वोटिंग होगी.इसके बाद दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल और तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होने हैं.इस बार सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही होने की उम्मीद है.पिछले लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो 11 लोकसभा सीटों में ऐसी कई सीटें थी जहां पर निर्दलीय प्रत्याशियों के मुकाबले नोटा को ज्यादा वोट मिले थे.आज हम जानेंगे ऐसी कौन सी सीटें थीं,जहां पर नोटा ने निर्दलियों को भी आईना दिखा दिया.साथ ही अपने राजनीति के जानकार से इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे कि क्यों किसी उम्मीदवार के मुकाबले नोटा ने चुनाव में बाजी मारी.

क्या है नोटा ?: इससे पहले कि हम आपको सीटों के आंकड़े दे आईए आपको बताते हैं कि आखिर ये नोटा किस बला का नाम है.जिसके बारे में हर चुनाव में चर्चा होती है. दरअसल नोटा ईवीएम मशीन में प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह के साथ दिया जाने वाला एक ऑप्शन है. जिसका मतलब होता है 'नन ऑफ द अबव'.यानी यदि आपको अपने क्षेत्र का कोई भी प्रत्याशी पसंद ना हो तो बिना किसी भेदभाव और दबाव के आप अपना मत नोटा में डाल सकते हैं.इसके लिए आपको ठीक उसी तरह से बटन दबाना होगा,जिस तरह से किसी पार्टी के उम्मीदवार को चुनने के लिए आप चुनाव चिन्ह दबाते हैं.नोटा में यदि आपने बटन दबाया तो आपका मत किसी भी उम्मीदवार को नहीं जाएगा.

2013 में पहली बार आया था नोटा : साल 2013 में पहली बार चुनाव में नोटा का इस्तेमाल किया गया था. 11 नवंबर से 4 दिसंबर 2013 के बीच हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में पहली बार 'नन ऑफ द अबव' यानी 'नोटा' का विकल्प रखा गया था.2013 में पहली बार मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 'नोटा' का विकल्प देखा था. इसके बाद लगातार हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नोटा विकल्प का उपयोग किया जाने लगा.


लोकसभा चुनाव में दो फीसदी वोटर्स ने नोटा को चुना : लोकसभा चुनाव में पहली बार साल 2014 में नोट का विकल्प दिया गया था. इस साल लोगों ने नोटा का जमकर भी इस्तेमाल भी किया. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां 2 लाख 24 हजार 889 नोटा वोट पड़े थे. जो कुल वोट का 1.83 फीसदी वोट था. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में ये आंकड़ा घटकर 1 लाख 96 हजार 265 पर पहुंचा . इस साल नोटा का वोट प्रतिशत घटा. 2019 में 1.44 फीसदी वोट नोटा को पड़े. 2019 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा बस्तर में पड़ा.इसके बाद दूसरे नंबर पर सरगुजा रहा.

वर्ष कुल नोटा वोट प्रतिशत
2014 2,24,889 1.83
2019 1,96,265 1.44


11 में से 5 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहा नोटा : छत्तीसगढ़ में कुल 11 लोकसभा सीट है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने नोटा पर जमकर वोट डाले. कई सीटों पर नोटा बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान रहा. यानी राजनीतिक दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में तीसरा स्थान तक हासिल नहीं कर सके. पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो 11 में से 5 ऐसी सीटें ऐसी थी, जहां नोटा तीसरे स्थान पर था. वहीं 3 सीटों पर नोटा चौथे स्थान पर था. इन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिले.


आदिवासियों ने नोटा पर जताया भरोसा : आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले दोनों ही लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल आदिवासी क्षेत्रों में किया गया. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जिन सीटों में नोट तीसरे स्थान पर रहा, उसमें से चार सीटें आदिवासी बाहुल्य की थी. वहीं एससी बाहुल्य आबादी वाले जांजगीर-चांपा में नोटा चौथे स्थान पर रहा.यदि साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो इस बार आदिवासी क्षेत्र बस्तर, कांकेर, सरगुजा में नोट तीसरे स्थान पर रहा.जबकि एससी बहुल क्षेत्र जांजगीर-चांपा में नोटा चौथे स्थान पर था. इसके अलावा कोरबा और रायगढ़ में नोटा ने पिछले 11-12 उम्मीदवारों को पीछे छोड़ते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया था.

लोकसभा चुनाव 2019
लोकसभा सीटनोटा को मिले वोटरैंक
बस्तर41667 3
कांकेर 26713 3
महासमुंद 21241 3
राजनांदगांव 194363
सरगुजा 29265 3
कोरबा 193054
रायगढ़ 15729 4
जांजगीर-चांपा 9981 4
बिलासपुर 4365 8
रायपुर 4292 8
दुर्ग4271 8
लोकसभा चुनाव 2014
लोकसभा सीटनोटा को मिले वोटरैंक
बस्तर38772 3
कांकेर 319173
राजनांदगांव 323843
सरगुजा31104 3
रायगढ़ 28480 3
जांजगीर चांपा 18438 4
दुर्ग 11907 6
महासमुंद99557
कोरबा 85708
बिलासपुर 7566 8
रायपुर 57968


इस बारे में राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि जो लोग किसी भी दल को पसंद नहीं करते वो ही नोटा में वोट डालते हैं.

''बस्तर में नक्सली लगातार चुनाव के बहिष्कार का ऐलान करते हैं, ऐसी स्थिति में यह लोग बताने की कोशिश करते हैं कि यदि हम वोट नहीं डालेंगे, तो हमें शासन की सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. इसलिए कम से कम नोटा पर ही वोट डाल दें .यही वजह के उन क्षेत्र में ज्यादातर वोट नोटा पर पड़े हैं.इसके अलावा भी कई ऐसे कारण जिस वजह से कई क्षेत्रों में नोटा पर ज्यादा वोट पड़े हैं.'' उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

बीजेपी और कांग्रेस से नाराज लोगों की पसंद नोटा : वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि पिछले दोनों लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखेंगे तो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा नोटा में वोट पड़े हैं. इसका प्रमुख कारण ये है कि यदि मतदाता दोनों ही दलों से रूठ जाते हैं, और उन्हें लगता है कि वोट देना भी जरूरी है , तो वह तीसरा विकल्प चुनने की कोशिश करते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक कोई तीसरे विकल्प के रूप में सामने नहीं आया है. इसलिए लोग नोटा का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ये भी देखने को मिलता है कि राजनीतिक दल भी लोगों पर वोट डालने जब दबाव बनाते हैं तो लोग वोट डालने तो जाते हैं,लेकिन उनमें से अधिकतर नोटा का बटन दबा आते हैं.

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छत्तीसगढ़ में NOTA

रायपुर : छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में मतदान हो रहे हैं.पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा जिसमें बस्तर लोकसभा सीट के लिए वोटिंग होगी.इसके बाद दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल और तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होने हैं.इस बार सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही होने की उम्मीद है.पिछले लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो 11 लोकसभा सीटों में ऐसी कई सीटें थी जहां पर निर्दलीय प्रत्याशियों के मुकाबले नोटा को ज्यादा वोट मिले थे.आज हम जानेंगे ऐसी कौन सी सीटें थीं,जहां पर नोटा ने निर्दलियों को भी आईना दिखा दिया.साथ ही अपने राजनीति के जानकार से इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे कि क्यों किसी उम्मीदवार के मुकाबले नोटा ने चुनाव में बाजी मारी.

क्या है नोटा ?: इससे पहले कि हम आपको सीटों के आंकड़े दे आईए आपको बताते हैं कि आखिर ये नोटा किस बला का नाम है.जिसके बारे में हर चुनाव में चर्चा होती है. दरअसल नोटा ईवीएम मशीन में प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह के साथ दिया जाने वाला एक ऑप्शन है. जिसका मतलब होता है 'नन ऑफ द अबव'.यानी यदि आपको अपने क्षेत्र का कोई भी प्रत्याशी पसंद ना हो तो बिना किसी भेदभाव और दबाव के आप अपना मत नोटा में डाल सकते हैं.इसके लिए आपको ठीक उसी तरह से बटन दबाना होगा,जिस तरह से किसी पार्टी के उम्मीदवार को चुनने के लिए आप चुनाव चिन्ह दबाते हैं.नोटा में यदि आपने बटन दबाया तो आपका मत किसी भी उम्मीदवार को नहीं जाएगा.

2013 में पहली बार आया था नोटा : साल 2013 में पहली बार चुनाव में नोटा का इस्तेमाल किया गया था. 11 नवंबर से 4 दिसंबर 2013 के बीच हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में पहली बार 'नन ऑफ द अबव' यानी 'नोटा' का विकल्प रखा गया था.2013 में पहली बार मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 'नोटा' का विकल्प देखा था. इसके बाद लगातार हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नोटा विकल्प का उपयोग किया जाने लगा.


लोकसभा चुनाव में दो फीसदी वोटर्स ने नोटा को चुना : लोकसभा चुनाव में पहली बार साल 2014 में नोट का विकल्प दिया गया था. इस साल लोगों ने नोटा का जमकर भी इस्तेमाल भी किया. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां 2 लाख 24 हजार 889 नोटा वोट पड़े थे. जो कुल वोट का 1.83 फीसदी वोट था. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में ये आंकड़ा घटकर 1 लाख 96 हजार 265 पर पहुंचा . इस साल नोटा का वोट प्रतिशत घटा. 2019 में 1.44 फीसदी वोट नोटा को पड़े. 2019 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा बस्तर में पड़ा.इसके बाद दूसरे नंबर पर सरगुजा रहा.

वर्ष कुल नोटा वोट प्रतिशत
2014 2,24,889 1.83
2019 1,96,265 1.44


11 में से 5 सीटों पर तीसरे स्थान पर रहा नोटा : छत्तीसगढ़ में कुल 11 लोकसभा सीट है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने नोटा पर जमकर वोट डाले. कई सीटों पर नोटा बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान रहा. यानी राजनीतिक दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में तीसरा स्थान तक हासिल नहीं कर सके. पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो 11 में से 5 ऐसी सीटें ऐसी थी, जहां नोटा तीसरे स्थान पर था. वहीं 3 सीटों पर नोटा चौथे स्थान पर था. इन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिले.


आदिवासियों ने नोटा पर जताया भरोसा : आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले दोनों ही लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल आदिवासी क्षेत्रों में किया गया. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जिन सीटों में नोट तीसरे स्थान पर रहा, उसमें से चार सीटें आदिवासी बाहुल्य की थी. वहीं एससी बाहुल्य आबादी वाले जांजगीर-चांपा में नोटा चौथे स्थान पर रहा.यदि साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो इस बार आदिवासी क्षेत्र बस्तर, कांकेर, सरगुजा में नोट तीसरे स्थान पर रहा.जबकि एससी बहुल क्षेत्र जांजगीर-चांपा में नोटा चौथे स्थान पर था. इसके अलावा कोरबा और रायगढ़ में नोटा ने पिछले 11-12 उम्मीदवारों को पीछे छोड़ते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया था.

लोकसभा चुनाव 2019
लोकसभा सीटनोटा को मिले वोटरैंक
बस्तर41667 3
कांकेर 26713 3
महासमुंद 21241 3
राजनांदगांव 194363
सरगुजा 29265 3
कोरबा 193054
रायगढ़ 15729 4
जांजगीर-चांपा 9981 4
बिलासपुर 4365 8
रायपुर 4292 8
दुर्ग4271 8
लोकसभा चुनाव 2014
लोकसभा सीटनोटा को मिले वोटरैंक
बस्तर38772 3
कांकेर 319173
राजनांदगांव 323843
सरगुजा31104 3
रायगढ़ 28480 3
जांजगीर चांपा 18438 4
दुर्ग 11907 6
महासमुंद99557
कोरबा 85708
बिलासपुर 7566 8
रायपुर 57968


इस बारे में राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि जो लोग किसी भी दल को पसंद नहीं करते वो ही नोटा में वोट डालते हैं.

''बस्तर में नक्सली लगातार चुनाव के बहिष्कार का ऐलान करते हैं, ऐसी स्थिति में यह लोग बताने की कोशिश करते हैं कि यदि हम वोट नहीं डालेंगे, तो हमें शासन की सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. इसलिए कम से कम नोटा पर ही वोट डाल दें .यही वजह के उन क्षेत्र में ज्यादातर वोट नोटा पर पड़े हैं.इसके अलावा भी कई ऐसे कारण जिस वजह से कई क्षेत्रों में नोटा पर ज्यादा वोट पड़े हैं.'' उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

बीजेपी और कांग्रेस से नाराज लोगों की पसंद नोटा : वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि पिछले दोनों लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखेंगे तो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा नोटा में वोट पड़े हैं. इसका प्रमुख कारण ये है कि यदि मतदाता दोनों ही दलों से रूठ जाते हैं, और उन्हें लगता है कि वोट देना भी जरूरी है , तो वह तीसरा विकल्प चुनने की कोशिश करते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक कोई तीसरे विकल्प के रूप में सामने नहीं आया है. इसलिए लोग नोटा का इस्तेमाल कर रहे हैं. कई बार ये भी देखने को मिलता है कि राजनीतिक दल भी लोगों पर वोट डालने जब दबाव बनाते हैं तो लोग वोट डालने तो जाते हैं,लेकिन उनमें से अधिकतर नोटा का बटन दबा आते हैं.

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Last Updated : Apr 6, 2024, 11:16 AM IST
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