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1980 में राजकीय शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में एकल पीठ का फैसला पलटा, अब दिया ये निर्देश - Patna High Court

पटना हाईकोर्ट ने 44 साल पुराने मामले में एकलपीठ द्वारा पारित फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को सेवा से रिटायर मानते हुए तत्काल प्रभाव से पेंशन बहाल करने का आदेश जारी किया है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 27, 2024, 8:04 PM IST

पटना : बिहार की पटना हाई कोर्ट ने 1980 के बाद राज्य के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में बरती गई अनियमितताओं के संबंध में दायर अपील याचिकाओं को स्वीकृति देते हुए एकलपीठ द्वारा पारित उस फ़ैसले को पलट दिया. जिसके तहत हाई कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच करने का आदेश दिया था. चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन एवं जस्टिस हरीश कुमार की खंडपीठ ने कामिनी कुमारी एवं अन्य द्वारा दायर अपील याचिका पर सुनवाई की.

पटना हाईकोर्ट का फैसला : कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पाया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग जांच की कार्यवाही शुरू की गई. कोर्ट ने अपने आदेश यह भी जिक्र किया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई है जो विभिन्न स्कूलों में शिक्षक थे. ऐसा एक भी उदाहरण नहीं बताया गया है, जब उनकी सेवाएं असंतोषजनक पाई गई हों. कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को सेवा से सेवानिवृत्त मानते हुए तत्काल प्रभाव से उनकी पेंशन बहाल करने का आदेश दिया.

सेवा निवृत्त मानकर हो भुगतान : कोर्ट ने राज्य सरकार को चार महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं को मार्च-2024 से पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया. कोर्ट उस अवधि के लिए भी बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया. सिंगल बेंच ने रिट याचिका में लगाए गए आदेशों के कारण उन्हें पेंशन से वंचित कर दिया था. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि चार महीने के भीतर बकाया का भुगतान नहीं किया गया, तो राज्य को पेंशन बंद होने की तारीख से 5 प्रतिशत की दर से ब्याज की अतिरिक्त देनदारी का सामना करना पड़ेगा.

हर्जाना देने के भी निर्देश : हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रत्येक अपीलकर्ता को उनके बकाया भुगतान के साथ पांच हज़ार का हर्जाना देने का भी निर्देश दिया है. अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता पुरूषोत्तम कुमार झा ने तर्क देते हुए कहा कि सीबीआई रिपोर्ट कई वर्षों तक ठंडे बस्ते में रखा गया था. इसके कारण कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी. जांच प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया.

44 साल पुराना केस : ये मामला 1980 के बाद राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है. हाईकोर्ट के आदेश से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने सीबीआई जांच को चुनौती दी थी, जिसके आधार पर कई शिक्षकों को पद से हटा दिया गया था और कई शिक्षकों के पेंशन को रोक दिया गया था.

सीबीआई जांच को दी गई थी चुनौती : उन्होंने सीबीआई की जांच को चुनौती देते हुए कहा था कि सीबीआई ने मनमाने तरीके से एक जैसे पदस्थापित शिक्षकों में से कुछ को नियमित एवं कुछ को अनियमित करार दे दिया था.

पटना : बिहार की पटना हाई कोर्ट ने 1980 के बाद राज्य के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में बरती गई अनियमितताओं के संबंध में दायर अपील याचिकाओं को स्वीकृति देते हुए एकलपीठ द्वारा पारित उस फ़ैसले को पलट दिया. जिसके तहत हाई कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच करने का आदेश दिया था. चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन एवं जस्टिस हरीश कुमार की खंडपीठ ने कामिनी कुमारी एवं अन्य द्वारा दायर अपील याचिका पर सुनवाई की.

पटना हाईकोर्ट का फैसला : कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पाया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग जांच की कार्यवाही शुरू की गई. कोर्ट ने अपने आदेश यह भी जिक्र किया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई है जो विभिन्न स्कूलों में शिक्षक थे. ऐसा एक भी उदाहरण नहीं बताया गया है, जब उनकी सेवाएं असंतोषजनक पाई गई हों. कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को सेवा से सेवानिवृत्त मानते हुए तत्काल प्रभाव से उनकी पेंशन बहाल करने का आदेश दिया.

सेवा निवृत्त मानकर हो भुगतान : कोर्ट ने राज्य सरकार को चार महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं को मार्च-2024 से पेंशन का भुगतान करने का आदेश दिया. कोर्ट उस अवधि के लिए भी बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया. सिंगल बेंच ने रिट याचिका में लगाए गए आदेशों के कारण उन्हें पेंशन से वंचित कर दिया था. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि चार महीने के भीतर बकाया का भुगतान नहीं किया गया, तो राज्य को पेंशन बंद होने की तारीख से 5 प्रतिशत की दर से ब्याज की अतिरिक्त देनदारी का सामना करना पड़ेगा.

हर्जाना देने के भी निर्देश : हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रत्येक अपीलकर्ता को उनके बकाया भुगतान के साथ पांच हज़ार का हर्जाना देने का भी निर्देश दिया है. अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता पुरूषोत्तम कुमार झा ने तर्क देते हुए कहा कि सीबीआई रिपोर्ट कई वर्षों तक ठंडे बस्ते में रखा गया था. इसके कारण कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी. जांच प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया.

44 साल पुराना केस : ये मामला 1980 के बाद राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है. हाईकोर्ट के आदेश से इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने सीबीआई जांच को चुनौती दी थी, जिसके आधार पर कई शिक्षकों को पद से हटा दिया गया था और कई शिक्षकों के पेंशन को रोक दिया गया था.

सीबीआई जांच को दी गई थी चुनौती : उन्होंने सीबीआई की जांच को चुनौती देते हुए कहा था कि सीबीआई ने मनमाने तरीके से एक जैसे पदस्थापित शिक्षकों में से कुछ को नियमित एवं कुछ को अनियमित करार दे दिया था.

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