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सामाजिक और परिवार की उम्मीदों के बोझ से दम तोड़ती युवा जिंदगी, बिहार में भी बढ़ रहे आत्महत्या के मामले - WORLD SUICIDE PREVENTION DAY

SUICIDE CASES ARE INCREASING: सामाजिक और पारिवारिक दायित्व का बोध युवाओं को जिम्मेदार बनाती है लेकिन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाने की असफलता उन्हें निराशा की गहरी खाई में धकेल रही है, लिहाजा परेशान युवा मन टूट जाता है और वो फिर उसे जिंदगी से छुटकारा ही एकमात्र विकल्प दिखता है. आखिर इसकी वजह क्या है और इससे कैसे बचा जाए, हमारे एक्सपर्ट से जानिए

निराशा के भंवर में दम तोड़ती जिंदगी
निराशा के भंवर में दम तोड़ती जिंदगी (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 10, 2024, 10:13 PM IST

बिहार में भी बढ़ रहे आत्महत्या के मामले (ETV BHARAT)

पटनाः हमारी संस्कृति में आत्महत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध, दिन ब दिन बढ़ती प्रतियोगिता, समाज और परिवार की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने का मलाल युवाओं में गहरी निराशा की वजह बनता जा रहा है. कई बार तो उस निराशा के भंवर ने निकलने की राह मिल जाती है लेकिन कभी-कभी मुश्किल हालात के आगे वो पस्त हो जाता है और आत्मघाती कदम उठा लेता है.

शहरों में ज्यादा केसः साल दर साल बढ़ते आत्महत्या के मामले हमारी जीवन शैली और सोच पर बड़े प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए है. जो आंकड़े सामने आए हैं वो बता रहे हैं कि गांव की अपेक्षा बड़े शहरों में युवा अधिक सुसाइड कर रहे हैं. बिहार जैसे राज्य में पारिवारिक और सामाजिक दायित्व के बोझ के तले युवा गलत निर्णय ले रहे हैं.

असफलता के बाद आत्महत्या:बिहार की राजधानी पटना में सुसाइड के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. भागलपुर के रहने वाले एक छात्र ने पिछले दिनों कदमकुआं थाना क्षेत्र के काजीपुर मोहल्ले में सुसाइड कर लिया. सुसाइड नोट से यह स्पष्ट संदेश था कि छात्र नीट की असफलता स्वीकार नहीं कर पाया और माता-पिता से माफी मांगते हुए अपनी जीवनलीला समाप्त कर डाली.

नालंदा के रहनेवाले छात्र ने भी दी जानः राजधानी पटना के शास्त्री नगर थाना क्षेत्र में भी आत्महत्या का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया था. जब एक छात्र ने आईआईटी की परीक्षा में असफल होने के बाद फांसी लगा ली थीय मृतक 17 वर्षीय सोनू कुमार नालंदा का रहने वाला था और लॉज में रहकर आईआईटी की तैयारी कर रहा था.

आत्महत्या के मामले में बिहार निचले स्थान परःराष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रिकॉर्ड के मुताबिक बिहार में आत्महत्या की दर निचले स्थान पर है. यहां प्रति एक लाख आबादी पर 0.6 आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं. इस मामले में बिहार पूरे देश में 36 वें स्थान पर है.

लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़ेः एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2022 को छोड़ दिया जाए तो बिहार में भी साल दर साल आतमहत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं. 2018 में बिहार में जहां 443 लोगों ने आत्महत्या की थी तो 2019 में कुल 641 लोगों ने आत्महत्या की. 2020 में ये आंकड़ा बढ़कर 809 तक पहुंच गया और 2021 में ये आंकड़ा 827 हो गया.

2022 में दर्ज की गयी गिरावटः हालांकि 2022 में आंकड़े में 15 फीसदी की गिरावट आई और आंकड़ों के मुताबिक 702 लोगों ने आत्महत्या की. वहीं 2022 में सिर्फ पटना में 53 लोगों ने सुसाइड किया. 2022 को छोड़ दें तो हर साल बिहार में खुदकुशी के आंकड़ों में इजाफा ही हुआ है.

डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक
डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक (ETV BHARAT)

क्या कहते हैं डॉक्टर ?: मनोचिकित्सक डॉक्टर बिंदा सिंह का मानना है कि बड़े शहरों में युवा डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ले रहे हैं.ज्यादातर आत्महत्या प्रेम-संबंधों को लेकर हो रही है तो करियर में असफल होने के बाद भी युवा आत्महत्या कर रहे हैं. युवाओं की एक्टिविटी पर माता-पिता को ध्यान रखने की जरूरत है.

"अगर बच्चा परिवार से कटा-कटा रह रहा है और ये यह कह रहा है कि उसे जीने की इच्छा नहीं है तो परिवार या माता-पिता को सावधान हो जाने की जरूरत है . ऐसे में बच्चों की काउंसलिंग करने की दरकार है. उसे जीवन की सकारात्मक पहलुओं के बारे में बताने की जरूरत है ताकि उसके दिल में जीने का जज्बा जिंदा हो सके."- डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक

डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री
डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री (ETV BHARAT)

सामाजिक बंधन कमजोर होने पर सुसाइड की आशंकाः समाजशास्त्री और एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद का कहना है कि वर्तमान में सामाजिक शक्ति कमजोर हुई है. सामाजिक बंधन या शक्ति कमजोर होंगे तो सुसाइड की घटना बढ़ेगी.व्यक्तिवादी शक्ति मजबूत होने से सुसाइड रेट बढ़ता है.

"गांवों में सुसाइड की घटनाएं कम होती हैं जबकि शहरों में सुसाइड की घटनाएं ज्यादा होती हैं. इसके पीछे वजह ये है कि गांव की सामाजिक शक्ति मजबूत होती है, जबकि शहर की सामाजिक शक्ति कमजोर होती है और व्यक्तिगत शक्ति मजबूत होती है."- डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

दबाव और जिम्मेदारियों के बोझ तले जिंदगीः वर्तमान परिस्थितियों में भारत के अंदर नौकरी की कमी है और पारिवारिक बोझ ज्यादा है. इसके अलावा युवाओं पर सफलता का बड़ा दबाव है.ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाएं उनके व्यक्तित्व का विकास होने दें और जिस क्षेत्र में वह करियर बनाना चाहते हैं उन्हें उसी क्षेत्र में करियर बनाने दें.

ये भी पढ़ेंःसाइकोलॉजिस्ट ने बताए सुसाइड से बचने के तरीके, इन कारणों से लोग करते हैं सुसाइड - Suicide Prevention Day

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पटनाः हमारी संस्कृति में आत्महत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध, दिन ब दिन बढ़ती प्रतियोगिता, समाज और परिवार की अपेक्षाओं पर खरा न उतरने का मलाल युवाओं में गहरी निराशा की वजह बनता जा रहा है. कई बार तो उस निराशा के भंवर ने निकलने की राह मिल जाती है लेकिन कभी-कभी मुश्किल हालात के आगे वो पस्त हो जाता है और आत्मघाती कदम उठा लेता है.

शहरों में ज्यादा केसः साल दर साल बढ़ते आत्महत्या के मामले हमारी जीवन शैली और सोच पर बड़े प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए है. जो आंकड़े सामने आए हैं वो बता रहे हैं कि गांव की अपेक्षा बड़े शहरों में युवा अधिक सुसाइड कर रहे हैं. बिहार जैसे राज्य में पारिवारिक और सामाजिक दायित्व के बोझ के तले युवा गलत निर्णय ले रहे हैं.

असफलता के बाद आत्महत्या:बिहार की राजधानी पटना में सुसाइड के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. भागलपुर के रहने वाले एक छात्र ने पिछले दिनों कदमकुआं थाना क्षेत्र के काजीपुर मोहल्ले में सुसाइड कर लिया. सुसाइड नोट से यह स्पष्ट संदेश था कि छात्र नीट की असफलता स्वीकार नहीं कर पाया और माता-पिता से माफी मांगते हुए अपनी जीवनलीला समाप्त कर डाली.

नालंदा के रहनेवाले छात्र ने भी दी जानः राजधानी पटना के शास्त्री नगर थाना क्षेत्र में भी आत्महत्या का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया था. जब एक छात्र ने आईआईटी की परीक्षा में असफल होने के बाद फांसी लगा ली थीय मृतक 17 वर्षीय सोनू कुमार नालंदा का रहने वाला था और लॉज में रहकर आईआईटी की तैयारी कर रहा था.

आत्महत्या के मामले में बिहार निचले स्थान परःराष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रिकॉर्ड के मुताबिक बिहार में आत्महत्या की दर निचले स्थान पर है. यहां प्रति एक लाख आबादी पर 0.6 आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं. इस मामले में बिहार पूरे देश में 36 वें स्थान पर है.

लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़ेः एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2022 को छोड़ दिया जाए तो बिहार में भी साल दर साल आतमहत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं. 2018 में बिहार में जहां 443 लोगों ने आत्महत्या की थी तो 2019 में कुल 641 लोगों ने आत्महत्या की. 2020 में ये आंकड़ा बढ़कर 809 तक पहुंच गया और 2021 में ये आंकड़ा 827 हो गया.

2022 में दर्ज की गयी गिरावटः हालांकि 2022 में आंकड़े में 15 फीसदी की गिरावट आई और आंकड़ों के मुताबिक 702 लोगों ने आत्महत्या की. वहीं 2022 में सिर्फ पटना में 53 लोगों ने सुसाइड किया. 2022 को छोड़ दें तो हर साल बिहार में खुदकुशी के आंकड़ों में इजाफा ही हुआ है.

डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक
डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक (ETV BHARAT)

क्या कहते हैं डॉक्टर ?: मनोचिकित्सक डॉक्टर बिंदा सिंह का मानना है कि बड़े शहरों में युवा डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ले रहे हैं.ज्यादातर आत्महत्या प्रेम-संबंधों को लेकर हो रही है तो करियर में असफल होने के बाद भी युवा आत्महत्या कर रहे हैं. युवाओं की एक्टिविटी पर माता-पिता को ध्यान रखने की जरूरत है.

"अगर बच्चा परिवार से कटा-कटा रह रहा है और ये यह कह रहा है कि उसे जीने की इच्छा नहीं है तो परिवार या माता-पिता को सावधान हो जाने की जरूरत है . ऐसे में बच्चों की काउंसलिंग करने की दरकार है. उसे जीवन की सकारात्मक पहलुओं के बारे में बताने की जरूरत है ताकि उसके दिल में जीने का जज्बा जिंदा हो सके."- डॉक्टर बिंदा सिंह, मनोचिकित्सक

डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री
डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री (ETV BHARAT)

सामाजिक बंधन कमजोर होने पर सुसाइड की आशंकाः समाजशास्त्री और एन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद का कहना है कि वर्तमान में सामाजिक शक्ति कमजोर हुई है. सामाजिक बंधन या शक्ति कमजोर होंगे तो सुसाइड की घटना बढ़ेगी.व्यक्तिवादी शक्ति मजबूत होने से सुसाइड रेट बढ़ता है.

"गांवों में सुसाइड की घटनाएं कम होती हैं जबकि शहरों में सुसाइड की घटनाएं ज्यादा होती हैं. इसके पीछे वजह ये है कि गांव की सामाजिक शक्ति मजबूत होती है, जबकि शहर की सामाजिक शक्ति कमजोर होती है और व्यक्तिगत शक्ति मजबूत होती है."- डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

दबाव और जिम्मेदारियों के बोझ तले जिंदगीः वर्तमान परिस्थितियों में भारत के अंदर नौकरी की कमी है और पारिवारिक बोझ ज्यादा है. इसके अलावा युवाओं पर सफलता का बड़ा दबाव है.ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाएं उनके व्यक्तित्व का विकास होने दें और जिस क्षेत्र में वह करियर बनाना चाहते हैं उन्हें उसी क्षेत्र में करियर बनाने दें.

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