भोपाल: मोदी सरकार ने मध्य प्रदेश के सांसदों को नई जिम्मेदारी सौंप दी है. मध्य प्रदेश के लोकसभा और राज्यसभा के 40 सांसदों में से 20 सांसदों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से नवाजा गया है. मोदी सरकार ने डिपार्टमेंट पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटियों का गठन किया है, इसमें प्रदेश के सांसदों को अलग-अलग कमेटियों में शामिल किया गया है. मोदी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य सभा सांसद दिग्विजय सिंह को भी एक कमेटी का अध्यक्ष बनाया है.
इन सांसदों को मिली जिम्मेदारी
मोदी सरकार द्वारा विभागों से जुड़ी अलग-अलग समितियों का गठन किया गया है. इन समितियों में मध्यप्रदेश के राज्यसभा और लोकसभा सांसदों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है. कांग्रेस से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को महिला, शिक्षा, युवा और खेल मामलों की संसदीय समिति की कमान सौंपी गई है. इस समिति में 31 सांसदों को सदस्य बनाया गया है. उधर राज्यसभा सांसद सुमित्रा बाल्मीकि को 2 कमेटियों में सदस्य बनाया गया है. मध्य प्रदेश से कुल 29 लोकसभा और 11 राज्यसभा सहित कुल 40 सांसद हैं. इनमें से 5 लोकसभा और 2 राज्य सभा सांसद मोदी सरकार में मंत्री हैं. इन्हें समितियों में नहीं रखा गया है.
- कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधित समिति में मध्यप्रदेश के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा, बीजेपी सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, ज्ञानेश्वर पाटिल और महेन्द्र सिंह सोलंकी को रखा गया है. इसमें कमेटी में सदस्यों की संख्या 31 है.
- राज्य सभा सांसद सुमित्रा बाल्मीकि को उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण से जुड़ी समिति के अलावा सामाजिक न्याय समिति में भी रखा गया है. वे अकेली सांसद हैं, जो 2 समितियों में शामिल हैं.
- मध्य प्रदेश से सांसद और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को संचार एवं आईटी कमेटी में सदस्य बनाया गया है.
- राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार को विदेश मामलों की समिति में सदस्य बनाया गया है.
- सांसद अशोक सिंह को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समिति में सदस्य बनाया गया है.
- मुरैना सांसद शिवमंगल सिंह को रासायनिक एवं उर्वरक समिति में सदस्य बनाया गया है.
- माया नरोलिया को शहरी विकास एवं आवास समिति में सदस्य बनाया गया है.
- होशंगाबाद सांसद दर्शन सिंह चौधरी को शिक्षा, महिला, युवा और खेल मामलों की समिति में सदस्य बनाया गया है.
कैसे काम करती हैं यह समितियां
संसद में अलग-अलग विभागों से जुड़े ढेरों मुद्दे आते हैं. इन पर गंभीरता से विचार करने के लिए अलग-अलग विभागों की संसदीय समितियों का गठन किया जाता है. इन संसदीय समितियों का गठन संसद द्वारा किया जाता है. यह समितियां संबंधित मुद्दों पर विचार करती हैं और इसके बाद अपनी रिपोर्ट संसद या स्पीकर को सौंपती हैं. इन समितियों का कार्यकाल एक साल का होता है.
दो तरह की होती हैं समितियां
आमतौर पर यह समितियां दो तरह की होती हैं. पहला तदर्थ समितियां और दूसरा स्थाई समिति. तदर्थ समितियों का गठन खास मुद्दों पर विचार करने के लिए किया जाता है. जब इसका काम खत्म हो जाता है तो समिति का कार्यकाल भी खत्म हो जाता है, जबकि स्थायी समिति पूरे एक साल काम करती हैं. विभागों से संबंधित 24 समितियां होती हैं और इन समितियों में 31 सदस्य होते हैं. इनमें 10 राज्यसभा और 21 लोकसभा के सदस्य होते हैं. समिति का अध्यक्ष सदस्यों में से ही किसी एक को बनाया जाता है.