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मुरादाबाद के बाबूराम यादव को मिला पद्मश्री पुरस्कार, ब्रास बाबू के नाम से हैं प्रसिद्ध, जानिए खासियत - बाबूराम यादव पद्मश्री

केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरस्कारों की घोषणा कर दी. इनमें मुरादाबाद के बाबूराम यादव (Padmashree Award 2024) भी शामिल हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 26, 2024, 9:15 AM IST

Updated : Jan 26, 2024, 1:50 PM IST

परिवार ने जताई खुशी.

लखनऊ/मुरादाबाद : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इस साल दिए जाने वाले पद्मश्री पुरस्कारों का ऐलान भारत सरकार की तरफ से कर दिया गया. इस बार देश में 34 विभूतियों को यह अवार्ड देने का निर्णय लिया गया है. यूपी के मुरादाबाद के पीतल कारीगर बाबूराम यादव भी इनमें शामिल हैं. पद्मश्री भारत रत्न के बाद सबसे महत्वपूर्ण सम्मान है. इसे पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री के तौर पर तीन श्रेणियों में दिया जाता है. इस सम्मान की शुरुआत साल 1954 में भारत सरकार द्वारा की गई थी. 1955 में इसे पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण नाम दिया गया.

मुरादाबाद के बंगला गांव चार खंबा रोड के रहने वाले बाबूराम यादव को पूरा मुरादाबाद शहर ब्रास बाबू (शिल्पगुरु) के नाम से जानता है. उन्होंने बड़े प्लेन फूलदान पर बारीक नक्काशी करके अपने इस हस्तशिल्प कला का लोहा देश व विदेश में मनवाया है. मुरादाबाद शहर के साथ ही उनकी कारीगरी प्रदेश की राजधानी लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, मेरठ, दिल्ली सहित बिहार, मध्यप्रदेश व पूरे देश में प्रसिद्ध है. जानकारों का कहना है कि उन्होंने नक्काशी के लिए कोई पढ़ाई नहीं की है. वह 13 साल की उम्र से इस काम को कर रहे हैं. धीरे-धीरे इस काम में उन्होंने महारत हासिल कर लिया. वह बस अपने उस्ताद के पास रहकर इस हुनर को सीखा है. वह कहते हैं कि अब मजदूरी भले ही कुछ कम हुई है लेकिन उनके कामों व इस नक्काशी की डिमांड बहुत है.

सदियों पुरानी है कला, नक्काशी कला के नाम से जाना जाता है : आर्ट एंड क्राफ्ट की क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि बरेली मुरादाबाद क्षेत्र को पौराणिक पांचाल राज्य के नाम से जाना जाता है. मुरादाबाद और बरेली दोनों ही जिलों में खोदाई में पुराने जमाने की मिट्टी के पात्रों पर भी नक्काशी मिलती रही है. इस कारण माना जाता है कि इस क्षेत्र में नक्काशी का काम सदियों पुराना है. यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में इस कला का ट्रांसफर होता आया है.

परिवार के लोग खुशी से झूमे : शिल्पगुरु बाबूराम यादव के परिवार में सभी लोग खुश हैं. हस्तशिल्पी कारीगरों को जब इस बात की जानकारी हुई तो उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया. 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बाबूराम को शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया था. मुरादाबाद के हस्तशिल्पी कारीगरों के शिल्पगुरु बाबूराम के लिए सन 2023 और 2024 बहुत ही सम्मानपूर्ण रहा है. बाबूराम को सबसे पहले 1962 से नक्काशी करने का काम शुरू किया था. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा, अपने इस हुनर के जरिए पीतल के बर्तन और प्लेटों को सुंदर नक्काशियों को बनाकर सजाया, जिसके लिए 1985 में स्टेट अवार्ड, 1992 में नेशनल अवार्ड और 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा शिल्पगुरु अवार्ड से सम्मानित किया गया था. बाबूराम यादव ने हरपाल नगर के शिल्पकार अमर सिंह के यहां जाकर पीतल की प्लेट पर नक्काशी करना सीखा. बाबूराम के बेटे अशोक यादव, हरिओम यादव और चंद्र प्रकाश यादव अपने पिता से इस हुनर की बारीकियों को सीख रहे हैं. तीनों बेटे भी अपने पिता के इस विरासत को संभाल रहे हैं.

यह भी पढ़ें : आजादी के मतवालों की याद दिलाता है BHU परिसर में मौजूद जनतंत्र वृक्ष, 1950 में लगाया गया था, पढ़िए डिटेल

परिवार ने जताई खुशी.

लखनऊ/मुरादाबाद : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इस साल दिए जाने वाले पद्मश्री पुरस्कारों का ऐलान भारत सरकार की तरफ से कर दिया गया. इस बार देश में 34 विभूतियों को यह अवार्ड देने का निर्णय लिया गया है. यूपी के मुरादाबाद के पीतल कारीगर बाबूराम यादव भी इनमें शामिल हैं. पद्मश्री भारत रत्न के बाद सबसे महत्वपूर्ण सम्मान है. इसे पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री के तौर पर तीन श्रेणियों में दिया जाता है. इस सम्मान की शुरुआत साल 1954 में भारत सरकार द्वारा की गई थी. 1955 में इसे पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण नाम दिया गया.

मुरादाबाद के बंगला गांव चार खंबा रोड के रहने वाले बाबूराम यादव को पूरा मुरादाबाद शहर ब्रास बाबू (शिल्पगुरु) के नाम से जानता है. उन्होंने बड़े प्लेन फूलदान पर बारीक नक्काशी करके अपने इस हस्तशिल्प कला का लोहा देश व विदेश में मनवाया है. मुरादाबाद शहर के साथ ही उनकी कारीगरी प्रदेश की राजधानी लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, गोरखपुर, मेरठ, दिल्ली सहित बिहार, मध्यप्रदेश व पूरे देश में प्रसिद्ध है. जानकारों का कहना है कि उन्होंने नक्काशी के लिए कोई पढ़ाई नहीं की है. वह 13 साल की उम्र से इस काम को कर रहे हैं. धीरे-धीरे इस काम में उन्होंने महारत हासिल कर लिया. वह बस अपने उस्ताद के पास रहकर इस हुनर को सीखा है. वह कहते हैं कि अब मजदूरी भले ही कुछ कम हुई है लेकिन उनके कामों व इस नक्काशी की डिमांड बहुत है.

सदियों पुरानी है कला, नक्काशी कला के नाम से जाना जाता है : आर्ट एंड क्राफ्ट की क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि बरेली मुरादाबाद क्षेत्र को पौराणिक पांचाल राज्य के नाम से जाना जाता है. मुरादाबाद और बरेली दोनों ही जिलों में खोदाई में पुराने जमाने की मिट्टी के पात्रों पर भी नक्काशी मिलती रही है. इस कारण माना जाता है कि इस क्षेत्र में नक्काशी का काम सदियों पुराना है. यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में इस कला का ट्रांसफर होता आया है.

परिवार के लोग खुशी से झूमे : शिल्पगुरु बाबूराम यादव के परिवार में सभी लोग खुश हैं. हस्तशिल्पी कारीगरों को जब इस बात की जानकारी हुई तो उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया. 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बाबूराम को शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया था. मुरादाबाद के हस्तशिल्पी कारीगरों के शिल्पगुरु बाबूराम के लिए सन 2023 और 2024 बहुत ही सम्मानपूर्ण रहा है. बाबूराम को सबसे पहले 1962 से नक्काशी करने का काम शुरू किया था. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा, अपने इस हुनर के जरिए पीतल के बर्तन और प्लेटों को सुंदर नक्काशियों को बनाकर सजाया, जिसके लिए 1985 में स्टेट अवार्ड, 1992 में नेशनल अवार्ड और 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा शिल्पगुरु अवार्ड से सम्मानित किया गया था. बाबूराम यादव ने हरपाल नगर के शिल्पकार अमर सिंह के यहां जाकर पीतल की प्लेट पर नक्काशी करना सीखा. बाबूराम के बेटे अशोक यादव, हरिओम यादव और चंद्र प्रकाश यादव अपने पिता से इस हुनर की बारीकियों को सीख रहे हैं. तीनों बेटे भी अपने पिता के इस विरासत को संभाल रहे हैं.

यह भी पढ़ें : आजादी के मतवालों की याद दिलाता है BHU परिसर में मौजूद जनतंत्र वृक्ष, 1950 में लगाया गया था, पढ़िए डिटेल

Last Updated : Jan 26, 2024, 1:50 PM IST
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