लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट जज ने बार लाइब्रेरी हॉल में रविवार को विश्व हिंदू परिषद विधि प्रकोष्ठ काशी प्रांत एवं उच्च न्यायालय इकाई के प्रांतीय अधिवेशन में विशेष समुदाय को लेकर कथित टिप्पणी पर बवाल मच गया है. जज की कथित टिप्पणी का दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक जमकर विरोध हो रहा है. विपक्ष के नेता बयान का विरोध जताते हुए उन्हें बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं.
इस सिलसिले में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों के विश्व हिंदू परिषद की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने को न्यायपालिका के निचले स्तर पर गिरते जाने का नया कीर्तिमान बताया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की तरफ से इन दोनों जजों के खिलाफ़ अब तक कार्रवाई न करने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया. आलम ने कहा कि हाईकोर्ट के जज किसी गैर सरकारी और विभागीय मंच पर कैसे जा सकते हैं? यह जजों के कोड ऑफ़ कंडक्ट के खिलाफ़ है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट को ख़ुद संज्ञान लेकर इन दोनों जजों को पद से हटा देना मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि अगर जज संविधान को नहीं मानते तो वे संविधान की अभिरक्षा के लिए बने न्यायपालिका के सदस्य कैसे रह सकते हैं?
जस्टिस का बयान असंवेदनशीलः आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी विरोध जताते हुए X पोस्ट पर लिखा है कि 'प्रयागराज, यूपी में विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में हाईकोर्ट के जस्टिस का बयान न्यायिक गरिमा, संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और समाज में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी का गंभीर उल्लंघन है. अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न केवल असंवेदनशील है, बल्कि यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है. ऐसे बयान समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं, जो न्यायपालिका जैसे पवित्र संस्थान के लिए अक्षम्य है. एक न्यायाधीश का कर्तव्य है कि वह अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से समाज को एकजुट करे, न कि वैमनस्य को बढ़ावा दे. ऐसे बयान न्यायपालिका की साख को कमजोर करते हैं और जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं. न्यायाधीश का धर्म केवल न्याय होना चाहिए, न कि किसी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह'.
जज का भाषण न्यायिक निष्पक्षता पर सवालः एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने जज के बयान का विरोध जताते हुए X पोस्ट पर लिखा है कि' विभिन्न अवसरों पर विहिप पर प्रतिबंध लगाया गया है. यह आरएसएस से जुड़ा संगठन है, जिसे वल्लभाई पटेल ने 'नफरत और हिंसा की ताकत' होने के कारण प्रतिबंधित कर दिया था. लेकिन हाईकोर्ट ने जज द्वारा इस संगठन के सम्मेलन में भाग लिया और विवादित बयान दिया. मैं उनके सम्मान को याद दिलाना चाहता हूं कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है. क्या मैं उनका ध्यान एओआर एसोसिएशन बनाम भारत संघ की ओर आकर्षित कर सकता हूं. निर्णय लेने में निष्पक्षता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और तर्कसंगतता न्यायपालिका की पहचान हैं. भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक है. लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित हैं, जैसा कि अंबेडकर ने कहा था. जैसे एक राजा को शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है, वैसे ही बहुमत को भी शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है. जज का यह भाषण कॉलेजियम प्रणाली पर न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है. एक अल्पसंख्यक दल विहिप के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है?
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