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ऐसा क्यों, चतरा संसदीय क्षेत्र में स्थानीयता मुद्दा है पर चुनाव में स्थानीय उम्मीदवारों की जमानत हो जाती है जब्त! - Lok Sabha Election 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024

Chatra Lok Sabha seat. लोकसभा चुनाव 2024 की बिसात बिछ गयी है. सियासी दल धीरे-धीरे अपने पत्ते खोल रही है. वहीं मुद्दों की शक्ल में पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी चालें भी चल रहे हैं. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में एक ऐसी भी सीट है, जहां लोकल नहीं हमेशा से बाहरी प्रत्याशी का दबदबा रहा है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से जानिए, इस सीट की सियासी कहानी.

Only outside candidates have always won Chatra Lok Sabha seat
चतरा लोकसभा सीट पर बाहरी प्रत्याशियों ने ही हमेशा जीत दर्ज की है
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 13, 2024, 1:13 PM IST

लातेहारः झारखंड की चतरा संसदीय क्षेत्र से आज तक कोई भी स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बन पाया है. प्रत्येक लोकसभा चुनाव आने पर बाहरी और भीतरा का मुद्दा छाया रहता है. वोटर से लेकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता तक स्थानीय-स्थानीय का रट लगाते फिरते हैं. लेकिन जब वोट देने की बारी आती है तो स्थानीयता का मुद्दा गौण हो जाता है और स्थिति ऐसी हो जाती है कि स्थानीय उम्मीदवारों की जीत तो दूर उन्हें जमानत बचाना भी मुश्किल हो जाता है.

चतरा संसदीय सीट से आज तक एक भी स्थानीय व्यक्ति सांसद का चुनाव जीतकर इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सका है. अब तक जितने भी चुनाव हुए उनमें बाहरी उम्मीदवार ही यहां से जीत हासिल करने में सफलता पाई है. विजेता उम्मीदवार चाहे किसी दल के हों या फिर निर्दलीय, वह चतरा संसदीय क्षेत्र से बाहर निवास करने वाले व्यक्ति ही रहे हैं.

हालांकि स्थानीय उम्मीदवार और स्थानीयता का मुद्दा प्रत्येक लोकसभा चुनाव में बड़े जोरशोर के साथ उभरता है. चौक-चौराहों से लेकर गांव की गलियों तक चुनाव के आरंभ होते ही स्थानीयता का मुद्दा चर्चा का विषय बन जाता है. जिससे भी पूछिए वह यही कहेगा कि इस बार किसी स्थानीय व्यक्ति को जीत दिलाना है. लेकिन मतदान का समय नजदीक आते-आते तक यह मुद्दा गौण हो जाता है. मतदान के बाद तो स्थिति ऐसी हो जाती है कि स्थानीयता को मुद्दा बनाकर जो चुनाव मैदान में उतरते हैं, उनकी जमानत बचनी भी मुश्किल हो जाती है.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

वर्ष 2019 में सिर्फ बाहरी लोग ही थे टक्कर में

लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो इस चुनाव में चतरा संसदीय क्षेत्र से कुल 26 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन किया था. इनमें तीन उम्मीदवार बाहरी थे जबकि 23 उम्मीदवार स्थानीय थे. वर्ष 2019 में भी स्थानीयता का मुद्दा खूब गरम रहा. इसके बाद भी भाजपा, कांग्रेस, राजद ने किसी भी स्थानीय व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाया. तीनों दल के उम्मीदवार बाहरी थे, शेष 23 उम्मीदवार स्थानीय थे. जब चुनाव का परिणाम आया तो सिर्फ बाहरी लोगों को ही अच्छी खासी वोट मिली थी.

2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह को 5.50 लाख से अधिक वोट मिले थे और उनकी बंपर जीत हुई थी. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज यादव को लगभग डेढ़ लाख और राजद प्रत्याशी सुभाष यादव को लगभग 90 हजार वोट मिले थे. जबकि सभी 23 स्थानीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. किसी भी लोकल उम्मीदवार को 50 हजार भी वोट नहीं मिल पाए थे.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

वर्ष 2014 और 2009 में भी थी यही स्थिति

वर्ष 2014 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी स्थिति स्थानीय उम्मीदवारों के लिए अनुकूल नहीं था. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 20 में से 17 उम्मीदवार स्थानीय थे. लेकिन पहले और दूसरे स्थान पर बाहरी उम्मीदवार ही रहे थे. हालांकि इस दौरान पहली बार स्थानीय उम्मीदवार नीलम देवी ने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी और एक लाख से अधिक वोट लेने में सफल हुई थी. लेकिन भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह को यहां लगभग 3 लाख वोट मिले और उन्होंने आसानी से जीत हासिल की.

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी स्थानीय उम्मीदवारों की हालत खराब हो गई थी. इस वर्ष भी कुल 11 में से 7 प्रत्याशी स्थानीय थे. लेकिन पहले और दूसरे और तीसरे स्थान पर सिर्फ बाहरी प्रत्याशी ही रहे. इस वर्ष तो बाहरी प्रत्याशी इंदर सिंह नामधारी निर्दलीय चुनाव लड़कर चतरा संसदीय सीट जीत हासिल की थी.

भावनात्मक बात तो होती है पर मुद्दा नहीं बन पाता!

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर बी. पाल की मानें तो स्थानीयता का मुद्दा भावनात्मक रूप से तो चर्चा में लाया जाता है पर यह बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता है. इसका कारण यह है कि स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा चेहरा राजनीतिक क्षेत्र में सामने नहीं आया. जो लोग स्थानीयता के मुद्दे पर चुनाव लड़ते हैं, वे अपनी कार्यशैली से लोगों को आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाते. लोगों के मन में यह विश्वास नहीं बन पाता कि कोई स्थानीय उम्मीदवार बड़े दल को टक्कर भी दे पाए. इसी कारण स्थानीय उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं का रुझान प्रबल नहीं हो पाता है.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

क्या टूट पाएगा बाहरियों का तिलिस्म?

लोकसभा चुनाव 2024 में बाहरियों का तिलिस्म टूटेगा या यहां इतिहास फिर से खुद को दोहराई जाएगी, यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है. हालांकि पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने चतरा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से स्थानीय निवासी कालीचरण सिंह को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. इससे पूर्व तक भाजपा के अलावा क्षेत्र में मजबूत समझे जाने वाले किसी भी दल ने अब तक स्थानीय व्यक्ति को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया था.

दूसरी ओर अभी तक इंडिया गठबंधन के द्वारा प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है. इंडिया गठबंधन किसे अपना प्रत्याशी बनाती है? इसके अलावा और कौन-कौन से प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरते हैं? जनता किस मुद्दे पर चुनाव करती है?? चुनाव के बाद जो परिणाम आएंगे, उसके आधार पर ही आगे कुछ कहा जा सकता है. चतरा संसदीय सीट से आज तक किसी भी स्थानीय व्यक्ति को चुनाव जीतने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है. अब देखना है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा.

इसे भी पढ़ें- चतरा लोकसभा सीट को लेकर राजद की स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली! जानिए क्या है कारण - Lok Sabha Election 2024

इसे भी पढ़ें- चतरा में कौन देगा भाजपा प्रत्याशी को टक्कर? राजनीतिक दल के संभावित प्रत्याशियों की अपेक्षा निर्दलीय उम्मीदवारों की फील्डिंग तेज - Lok Sabha Election 2024

इसे भी पढ़ें- झारखंड में सीपीआई ने इंडिया गठबंधन से तोड़ा नाता, चार सीटों पर उतारे प्रत्याशी - Lok Sabha Election 2024

लातेहारः झारखंड की चतरा संसदीय क्षेत्र से आज तक कोई भी स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बन पाया है. प्रत्येक लोकसभा चुनाव आने पर बाहरी और भीतरा का मुद्दा छाया रहता है. वोटर से लेकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता तक स्थानीय-स्थानीय का रट लगाते फिरते हैं. लेकिन जब वोट देने की बारी आती है तो स्थानीयता का मुद्दा गौण हो जाता है और स्थिति ऐसी हो जाती है कि स्थानीय उम्मीदवारों की जीत तो दूर उन्हें जमानत बचाना भी मुश्किल हो जाता है.

चतरा संसदीय सीट से आज तक एक भी स्थानीय व्यक्ति सांसद का चुनाव जीतकर इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सका है. अब तक जितने भी चुनाव हुए उनमें बाहरी उम्मीदवार ही यहां से जीत हासिल करने में सफलता पाई है. विजेता उम्मीदवार चाहे किसी दल के हों या फिर निर्दलीय, वह चतरा संसदीय क्षेत्र से बाहर निवास करने वाले व्यक्ति ही रहे हैं.

हालांकि स्थानीय उम्मीदवार और स्थानीयता का मुद्दा प्रत्येक लोकसभा चुनाव में बड़े जोरशोर के साथ उभरता है. चौक-चौराहों से लेकर गांव की गलियों तक चुनाव के आरंभ होते ही स्थानीयता का मुद्दा चर्चा का विषय बन जाता है. जिससे भी पूछिए वह यही कहेगा कि इस बार किसी स्थानीय व्यक्ति को जीत दिलाना है. लेकिन मतदान का समय नजदीक आते-आते तक यह मुद्दा गौण हो जाता है. मतदान के बाद तो स्थिति ऐसी हो जाती है कि स्थानीयता को मुद्दा बनाकर जो चुनाव मैदान में उतरते हैं, उनकी जमानत बचनी भी मुश्किल हो जाती है.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

वर्ष 2019 में सिर्फ बाहरी लोग ही थे टक्कर में

लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो इस चुनाव में चतरा संसदीय क्षेत्र से कुल 26 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन किया था. इनमें तीन उम्मीदवार बाहरी थे जबकि 23 उम्मीदवार स्थानीय थे. वर्ष 2019 में भी स्थानीयता का मुद्दा खूब गरम रहा. इसके बाद भी भाजपा, कांग्रेस, राजद ने किसी भी स्थानीय व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाया. तीनों दल के उम्मीदवार बाहरी थे, शेष 23 उम्मीदवार स्थानीय थे. जब चुनाव का परिणाम आया तो सिर्फ बाहरी लोगों को ही अच्छी खासी वोट मिली थी.

2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह को 5.50 लाख से अधिक वोट मिले थे और उनकी बंपर जीत हुई थी. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज यादव को लगभग डेढ़ लाख और राजद प्रत्याशी सुभाष यादव को लगभग 90 हजार वोट मिले थे. जबकि सभी 23 स्थानीय उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. किसी भी लोकल उम्मीदवार को 50 हजार भी वोट नहीं मिल पाए थे.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

वर्ष 2014 और 2009 में भी थी यही स्थिति

वर्ष 2014 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी स्थिति स्थानीय उम्मीदवारों के लिए अनुकूल नहीं था. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 20 में से 17 उम्मीदवार स्थानीय थे. लेकिन पहले और दूसरे स्थान पर बाहरी उम्मीदवार ही रहे थे. हालांकि इस दौरान पहली बार स्थानीय उम्मीदवार नीलम देवी ने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी और एक लाख से अधिक वोट लेने में सफल हुई थी. लेकिन भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार सिंह को यहां लगभग 3 लाख वोट मिले और उन्होंने आसानी से जीत हासिल की.

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी स्थानीय उम्मीदवारों की हालत खराब हो गई थी. इस वर्ष भी कुल 11 में से 7 प्रत्याशी स्थानीय थे. लेकिन पहले और दूसरे और तीसरे स्थान पर सिर्फ बाहरी प्रत्याशी ही रहे. इस वर्ष तो बाहरी प्रत्याशी इंदर सिंह नामधारी निर्दलीय चुनाव लड़कर चतरा संसदीय सीट जीत हासिल की थी.

भावनात्मक बात तो होती है पर मुद्दा नहीं बन पाता!

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर बी. पाल की मानें तो स्थानीयता का मुद्दा भावनात्मक रूप से तो चर्चा में लाया जाता है पर यह बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता है. इसका कारण यह है कि स्थानीय स्तर पर कोई बड़ा चेहरा राजनीतिक क्षेत्र में सामने नहीं आया. जो लोग स्थानीयता के मुद्दे पर चुनाव लड़ते हैं, वे अपनी कार्यशैली से लोगों को आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाते. लोगों के मन में यह विश्वास नहीं बन पाता कि कोई स्थानीय उम्मीदवार बड़े दल को टक्कर भी दे पाए. इसी कारण स्थानीय उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं का रुझान प्रबल नहीं हो पाता है.

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चतरा संसदीय सीट का हाल

क्या टूट पाएगा बाहरियों का तिलिस्म?

लोकसभा चुनाव 2024 में बाहरियों का तिलिस्म टूटेगा या यहां इतिहास फिर से खुद को दोहराई जाएगी, यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है. हालांकि पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने चतरा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से स्थानीय निवासी कालीचरण सिंह को अपना प्रत्याशी घोषित किया है. इससे पूर्व तक भाजपा के अलावा क्षेत्र में मजबूत समझे जाने वाले किसी भी दल ने अब तक स्थानीय व्यक्ति को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया था.

दूसरी ओर अभी तक इंडिया गठबंधन के द्वारा प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है. इंडिया गठबंधन किसे अपना प्रत्याशी बनाती है? इसके अलावा और कौन-कौन से प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरते हैं? जनता किस मुद्दे पर चुनाव करती है?? चुनाव के बाद जो परिणाम आएंगे, उसके आधार पर ही आगे कुछ कहा जा सकता है. चतरा संसदीय सीट से आज तक किसी भी स्थानीय व्यक्ति को चुनाव जीतने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है. अब देखना है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा.

इसे भी पढ़ें- चतरा लोकसभा सीट को लेकर राजद की स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली! जानिए क्या है कारण - Lok Sabha Election 2024

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