रांची: झारखंड की राजनीति अब संथाल में शिफ्ट हो गई है. यहां की तीन सीटों मसलन, राजमहल, दुमका और गोड्डा के लिए 1 जून को वोट डाले जाएंगे. लिहाजा, एनडीए और इंडिया गठबंधन की ओर से धुआंधार चुनावी सभाएं की जा रही हैं. वर्तमान में इन तीन सीटों में से राजमहल सीट पर झामुमो का कब्जा है जबकि दुमका और गोड्डा सीट भाजपा के पास है. लेकिन मौजूदा समीकरण में तीनों जगहों पर कांटे की टक्कर होने की संभावना जताई जा रही है. खासकर, दुमका सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है क्योंकि यहां से पहली बार शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन कमल खिलाने के लिए उतरीं हैं.
दुमका में फिलहाल किसका पलड़ा दिख रहा है भारी
इस सीट से संथाल की भावना जुड़ी होती है. यहां से झामुमो सुप्रीमो लंबे समय तक चुनाव जीतते रहे हैं. वहीं बाबूलाल मरांडी ने शिबू सोरेन और उनकी पत्नी रुपी सोरेन को उनके गढ़ में हराकर अपनी पहचान स्थापित की थी. लेकिन 2019 में दो हार के बाद भाजपा के सुनील सोरेन कमल खिलाने में सफल रहे थे. लेकिन इस बार यहां का समीकरण बदल गया है. दुमका लोकसभा क्षेत्र में दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, सारठ, जामताड़ा और नाला विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव में भाजपा को दुमका, सारठ और नाला विधानसभा क्षेत्र में बढ़ मिली थी. लेकिन तब राज्य में रघुवर दास सीएम थे. वहीं दुमका की विधायक रहीं लुईस मरांडी और सारठ के विधायक रणधीर सिंह मंत्री थे. इस बार दुमका के विधायक बसंत सोरेन मंत्री हैं. नाला के विधायक रवींद्र नाथ महतो विधानसभा के अध्यक्ष हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं कि बसंत सोरेन के दुमका से विधायक और मंत्री होने के कारण झामुमो की स्थिति मजबूत दिख रही है. 2019 में मंत्री रहते लुईस मरांडी की हार और हेमंत सोरेन के सीट खाली करने के बाद हुए उपचुनाव में भी लुईस की हार से भाजपा बैकफुट पर है. लेकिन भाजपा के पक्ष में एक बात है कि यहां सबसे ज्यादा शहरी वोटर हैं. यहां मोदी फैक्टर भी काम करता रहा है. यहां के ग्रामीण इलाकों में भी मोदी के नाम पर वोट मिलते हैं. यहां इस बात की चर्चा है कि मंत्री बनने के बाद बसंत सोरेन को दुमका पहुंचने में एक माह लग गये थे. हालांकि उनकी पहल से ही मसलिया सिंचाई परियोजना का काम शुरू हुआ है. इसके बावजूद अनुमान लगाया जा रहा है कि दुमका में भाजपा को बढ़त मिल सकती है.
जामा विधानसभा का समीकरण
जामा से खुद सीता सोरेन तीन बार से विधायक हैं. लेकिन उनकी कम सक्रियता उनके परफॉर्मेंस पर असर डाल सकती है. पिछली बार दुमका से भाजपा प्रत्याशी रहे सुनील सोरेन ने जामा से लीड हासिल किया था. सीता सोरेन की जहां तक बात है तो वो सहानुभूति बटोरने में सफल नजर नहीं आ रही हैं. यहां झामुमो का पलड़ा भारी दिख रहा है.
शिकारीपाड़ा में कौन दिख रहा मजबूत
शिकारीपाड़ा में सात बार से झामुमो के नलिन सोरेन विधायक हैं. उनका मुकाबला सीता सोरेन से हो रहा है. इस क्षेत्र में संथाली और मुस्लिम वोटर निर्णायक होते हैं. पिछले चुनाव में भी यहां से झामुमो को लीड मिली थी. नलिन सोरेन ने 30 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी. वोटर समीकरण के लिहाज से यहां झामुमो मजबूत स्थिति में दिख रही है.
सारठ में क्या रणधीर दिला पाएंगे बढ़त
देवघर जिला के सारठ विधानसभा सीट भाजपा के खाते में हैं. रणधीर सिंह ने पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे सुनील सोरेन को 20 हजार से ज्यादा की बढ़त दिलाई थी. तब वे मंत्री थे. उनका प्रभाव था. लेकिन जानकारी के मुताबिक इस इलाके में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद झामुमो के प्रति सहानुभूति दिख रही है. आदिवासी के साथ-साथ दलित वोटर भी झामुमो के प्रति नरमी दिखा रहे हैं. वहीं झामुमो के नेता शशांक शेखर भोक्ता, परिमल सिंह और चुन्ना सिंह पार्टी के लिए सक्रिय हैं. लिहाजा, यहां झामुमो को लीड मिलने की संभावना जताई जा रही है.खास बात है कि पिछली बार सीएम रहते रघुवर दास ने इस क्षेत्र में कैंप कर दिया था. इसका प्रभाव भाजपा के पक्ष में गया था.
जामताड़ा में कास्ट और धर्म बना फैक्टर
जामताड़ा में धर्म और कास्ट फैक्टर ज्यादा प्रभावी रहा है. कांग्रेस के इरफान अंसारी इसी बूते दो बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं. पिछली बार भी जामताड़ा से झामुमो को लीड मिला था. यहां के मुस्लिम और आदिवासी वोटरों का रुझान झामुमो की तरफ दिख रहा है. इसका फायदा नलिन सोरेन को होगा.
नाला में स्पीकर बहा रहे हैं पसीना
नाला विधानसभा क्षेत्र को बंगाली बहुल माना जाता है. पिछली बार सीएम रहते रघुवर दास ने इस इलाके में पूरी मेहनत की थी. बदले में भाजपा को अच्छी लीड मिली थी. लेकिन इस बार झामुमो विधायक सह विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो डेरा जमाए हुए हैं. अनुमान के मुताबिक यहां भाजपा का लीड प्रभावित हो सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं कि कुल मिलाकर देखें तो दुमका में पिछली बार कुछ फैक्टर काम कर रहे थे, जिसकी वजह से भाजपा के सुनील सोरेन की जीत हुई थी. पहला फैक्टर यह था कि शिबू सोरेन सक्रिय नहीं थे. वहीं सुनील सोरेन दो बार से चुनाव हार रहे थे. उनके साथ सहानुभूति थी. जबकि रघुवर दास खुद डेरा जमाए हुए थे. इसके अलावा पिछली बार मोदी का जादू भी काम कर रहा था. इस लिहाज से दुमका में झामुमो की स्थिति मजबूत दिख रही है. अब देखना है कि पीएम मोदी के आगमन के बाद यहां के माहौल में कोई परिवर्तन आता है या नहीं.
गोड्डा में प्रदीप और निशिकांत की टक्कर
गोड्डा में सीधा मुकाबला भाजपा के निशिकांत दुबे और कांग्रेस के प्रदीप यादव के बीच है. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें जरमुंडी, मधुपुर, देवघर, पोड़ैयाहाट, गोड्डा और महगामा विधानसभा क्षेत्रों में पिछली बार सभी जगहों पर भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे को लीड मिला था. देवघर में सबसे ज्यादा करीब 75 हजार से ज्यादा की बढ़त मिली थी. पिछली बार प्रदीप यादव जेवीएम के प्रत्याशी थे. इस बार कांग्रेस के टिकट पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी.
निशिकांत दुबे विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं. उनका कहना है कि उनकी पहल से देवघर में एम्स, एयरपोर्ट का निर्माण हुआ साथ ही रेलवे लाइन का विस्तार हुआ . हालांकि प्रदीप यादव का कहना है कि रेल योजना को मनमोहन सरकार में हरी झंडी मिली थी.
गोड्डा को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं कि कास्ट की बात करें तो मुस्लिम वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है. इसके बाद ब्राह्मण और यादव वोटर की संख्या थोड़ी बहुत आगे पीछे है. इसके बाद बनिया वर्ग, आदिवासी, अन्य अगड़ी जातियों का वोट समीकरण हार-जीत को तय करने में अहम भूमिका निभाता है. पंडा समाज में पैठ रखने वाले बिहार के पूर्व सीएम बिनोदानंद झा के प्रपौत्र अभिषेक के निर्दलीय ताल ठोकने से ब्राह्मण वोट में विभाजन की संभावना है. जो भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है. लेकिन ओवर ऑल समीकरण को देखें तो यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है लेकिन यहां मोदी की गारंटी निशिकांत दुबे को मजबूती दे रही है.
उन्होंने कहा कि अभी तक के अनुमान के मुताबिक इस बार यहां बेहद कम अंतर में हार और जीत देखने को मिल सकता है. इसकी एक बड़ी वजह है कि छह विधानसभा सीटों में से सिर्फ देवघर और गोड्डा में भाजपा के विधायक हैं. शेष चार सीटें इंडिया गठबंधन के पाले में हैं.
राजमहल में इस बार क्या है समीकरण
एसटी के लिए रिजर्व राजमहल सीट पर झामुमो का कब्जा है. इस बार भी झामुमो ने विजय हांसदा के मैदान में उतारा है. उनका सामना भाजपा के ताला मरांडी से हो रहा है. वहीं बोरियो से झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगे हैं. उनके चुनाव में उतरने से झामुमो के वोट बैंक में सेंध लगने की संभावना है. ऊपर से सीपीआईएम ने प्रत्याशी देकर इंडिया गठबंधन के लिए परेशानी खड़ी कर दी है.
वहीं ओवैसी की पार्टी से खड़े पाल सोरेन मुस्लिम वोट में सेंध लगाते हैं तो झामुमो को मुश्किल होगी. इस बार के समीकरण में पाकुड़ से झामुमो के पूर्व विधायक और पिछली बार आजसू के प्रत्याशी रहे अकिल अख्तर को मुस्लिम वोट को एनडीए की तरफ कन्वर्ट करने में बड़ा फैक्टर माना जा रहा है. क्योंकि पाकुड़ से कांग्रेस विधायक आलमगीर आलम कैश कांड में जेल में हैं.
पिछले चुनाव में भाजपा ने झामुमो से आए हेमलाल मुर्मू को मैदान में उतारा था. उन्होंने राजमहल विधानसभा क्षेत्र में 20 हजार से बढ़त हासिल की थी. लेकिन बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, पाकुड़ और महेशपुर में झामुमो को बढ़त हासिल हुई थी. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ राजमहल सीट पर भाजपा की जीत हुई थी. शेष सीटें महागठबंधन के खाते में गई थी.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं कि इस बार यहां बेहद रोचक मुकाबला होने के आसार हैं. अभी तक के समीकरण के मुताबिक अनुमान निकालना मुश्किल हो रहा है कि राजमहल में किसको एज मिलेगा. हेमंत सोरेन के भी नहीं होने के कारण झामुमो के वोट बैंक को समेटने में विजय हांसदा को कठिनाई से जूझना पड़ रहा है. बेशक, कल्पना सोरेन इस क्षेत्र में सक्रिय हैं लेकिन वह कितना प्रभाव डाल पाएंगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा है. लिहाजा, भाजपा 2009 में हुई देवीधन बेसरा वाली जीत को दोहराने की उम्मीद लगाए बैठी है.
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