भरतपुर : सावन के महीने में शिवालयों में श्रद्धालु विविध प्रकार से महादेव की पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना में एक विधि सर्वजन में पुरातन काल से प्रचलित है. महादेव पर भक्तजन बेलपत्र और आक धतूरे अर्पित कर अभिषेक करते हैं. महादेव को बेलपत्र, आक-धतूरा बहुत प्रिय है. इतना ही नहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार महादेव पर बेलपत्र और आक-धतूरा चढ़ाने से न केवल राहु ग्रह का दोष शांत होता है, बल्कि कई अन्य दोष भी दूर हो जाते हैं.
इसलिए अर्पित करते हैं बेलपत्र : पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि हमारे पुराणों में महादेव की पूजा में बेलपत्र और आक-धतूरा अर्पित करने के विधान के बारे में बताया गया है. जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से हलाहल विष निकला, जिसकी वजह से पूरी सृष्टि में भय व्याप्त हो गया. तब भगवान शिव ने उस हलाहल को गटका और उसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया. इसी वजह से महादेव को नीलकंठ भी कहा जाता है. शिव जी ने कंठ में हलाहल रोक लिया, लेकिन उस विष के प्रभाव से महादेव का मस्तिष्क तपने लगा.
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तब सभी देवी-देवताओं ने महादेव के सिर पर शीतलता का प्रतीक बेलपत्र, आक-धतूरा अर्पित कर जलाभिषेक किया. इससे भगवान शिव के मस्तिष्क से विष का प्रभाव दूर हो गया. तभी से भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र और आक-धतूरा अर्पित किया जाता है.
कई दोष होते हैं दूर : पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि महादेव पर बेलपत्र और आक-धतूरा अर्पित करने से कई प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में धतूरे को राहु का कारक माना गया है. जब भगवान शिव पर धतूरा अर्पित किया जाता है तो राहु दोष और पितृ दोष दूर हो जाते हैं. साथ ही श्रद्धालु को मानसिक शांति मिलती है. वहीं, मान्यता है कि बेलपत्र अर्पित करने से श्रृद्धालु की दरिद्रता दूर होती है. सभी मुराद पूरी होती हैं.