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सावन में सोमवार ही नहीं शनिवार का भी है विशेष महत्व, खास पूजन से मिलेगी शनि की महादशा से मुक्ति, जानिए क्या है उपाय? - Sawan 2024 - SAWAN 2024

मान्यता है कि सावन में शनिवार के दिन भगवान शनि की आराधना करना सभी प्रकार के (Sawan 2024) शनि ग्रह से होने वाली बाधाओं को दूर करता है. इससे शनि देव की विशेष कृपा भी होती है.

काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर
काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 2, 2024, 7:01 AM IST

काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर (Video credit: ETV Bharat)

वाराणसी : सावन भगवान शिव का महीना होता है. इस महीने में सोमवार का विशेष महत्व माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन के सोमवार के साथ शनिवार का भी विशेष महत्व होता है. जी हां, सावन में शनिवार के दिन भगवान शनि की आराधना करना सभी प्रकार के शनि ग्रह से होने वाली बाधाओं को दूर करता है. यही नहीं इस आराधना से शनि देव की विशेष कृपा भी होती है.

बता दें कि वर्तमान जीवन में हर कोई शनि की अलग-अलग दशाओं से ग्रसित है और इसे दूर करने के लिए अलग-अलग समय पर विशेष पूजन अर्चन करता है. ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि ऐसे लोगों को यदि शनि ग्रह से मुक्ति चाहिए और शनि भगवान की विशेष कृपा चाहिए तो उनके लिए सावन का महीना एक सुनहरे अवसर का महीना है. जब वह कुछ विशेष पूजन से शनि ग्रह की दृष्टि को दूर कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है. इसका वर्णन अलग-अलग धर्मशास्त्र के पुस्तकों में भी मिलता है.

सावन में सोमवार संग शनिवार का विशेष महत्व : इस बारे में काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि, सावन भगवान शिव का महीना होता है और भगवान शिव शनिदेव के इष्ट माने जाते हैं. इस महीने में जो भी शिव को आधार बनाकर शनिदेव की पूजा करता है, बताए गए नियमों के अनुसार दान करता है. उसे शनि की दशा कभी परेशान नहीं करती है. शनि की दृष्टि से सुरक्षित रखने के लिए धर्म शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं, जिनमें सावन माह में शनि का विशेष महत्व भी बताया गया है. धर्म शास्त्रों में 'व्रत राज' नाम की पुस्तक है. इसके अलावा स्कंद पुराण पुस्तकों में सावन के शनिवार के विशेष महत्व को बताया गया है.

काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर
काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर (Photo credit: ETV Bharat)

काशी में शनिश्चर महादेव की पूजन की मान्यता : पंडित पवन त्रिपाठी कहते हैं कि, हम धर्म नगरी काशी की बात करें तो यहां पर शनि द्वारा स्थापित शिवलिंग का विशेष महत्व है. काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर है, जहां पर जाकर विशेष पूजन अर्चन करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है. सावन में अगर कोई व्यक्ति काशी में मौजूद शनिश्चर महादेव का पूजन करता है, परिसर की परिक्रमा करता है तो उसे खास लाभ मिलता है.

काशी में मौजूद शिवलिंग में पूजा दर्शन करने की अलग प्रक्रिया
• इसके लिए सबसे पहले व्यक्ति को स्नान ध्यान करके मंदिर जाना होगा.
• मंदिर में सात अक्षत कुंज यानी सात जगह थोड़ा-थोड़ा चावल रख कर उस पर तिल के तेल का दीपक जलाकर रखना है.
• इसके बाद मंदिर की 7 बार परिक्रमा करनी है. परिक्रमा के उपरांत 7 जगह पर सात सामग्रियों को रखकर ब्राह्मण को दान देना है.
• दान देने वाले सामग्रियों में काला कपड़ा, काला तिल, काला उड़द, गुड़, लोहे का चाकू, तिल का तेल, नीला फूल और पैरों में पहनने वाले खड़ाऊ या चप्पल शामिल होगा.
• पूजा के दौरान मंदिर में व्यक्ति को दशरथ कृत शनि स्रोत का पाठ करना है. उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति काशी में मौजूद है, वह सावन के महीने में यदि इस तरीके से विशेष शनिदेव की पूजा करता है तो उसके शनि ग्रह की शांति होती है और शनि देव प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.


बाहर रहने वाले इस उपाय से कर सकते हैं पूजन : उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति काशी में मौजूद नहीं है काशी के बाहर अन्य प्रदेश या विदेश में है तो भी वह दूसरे उपाय के जरिए सावन में शनि देव की पूजा दर्शन करके इस फल को प्राप्त कर सकता है. इसमें हमारे धर्मशास्त्र में शनि के वास किए गए पौधों के बारे में बताया गया है, जिसमें पीपल और शमी का वृक्ष शामिल है. वहां भी इस प्रकिया के जरिए पूजा की जा सकती है.

• सबसे पहले व्यक्ति को पीपल के वृक्ष के नीचे जाना होगा. यदि ये भी सम्भव न हो तो घर में ही शमी का वृक्ष गमले में लगाना होगा.
• सावन में शनिवार के दिन शमी के वृक्ष के नीचे सात अक्षत कुंज यानी सात जगह थोड़ा-थोड़ा चावल रखना है.
• इसके बाद एक लोहे की शनि प्रतिमा बनाकर सात में से एक अक्षत कुंज पर शनि के प्रतिमा को रखना है.
• इसमें सात प्रकार के पुष्प, नैवैद्य यानी भोग, धूप, दीप रखना है.
• पूजन के दौरान कच्चा धागा लेकर शमी या पीपल के वृक्ष में सात बार लपेटना है.
• उसके बाद दशरथ कृत शनि स्रोत का पाठ करना है.
• पाठ के उपरांत 7 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देना है. यदि इस विशेष पूजन को कोई भी व्यक्ति करता है तो शनि देव प्रसन्न होते हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है.


यह भी पढ़ें : बनारस में गुजरात के कच्छ जैसी बसेगी दो टेंट सिटी; पर्यटकों को मिलेंगी लग्जरी सुविधाएं, बनारसी खानपान-संस्कृति की झलक - Varanasi Sarnath Babatpur Tent City

यह भी पढ़ें : बनारस में एल्विश यादव के विरोध में लगे पोस्टर, काशी विश्वनाथ मंदिर में वीवीआईपी ट्रीटमेंट से नाराजगी, जांच की मांग - Protest against Elvish Yadav

काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर (Video credit: ETV Bharat)

वाराणसी : सावन भगवान शिव का महीना होता है. इस महीने में सोमवार का विशेष महत्व माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन के सोमवार के साथ शनिवार का भी विशेष महत्व होता है. जी हां, सावन में शनिवार के दिन भगवान शनि की आराधना करना सभी प्रकार के शनि ग्रह से होने वाली बाधाओं को दूर करता है. यही नहीं इस आराधना से शनि देव की विशेष कृपा भी होती है.

बता दें कि वर्तमान जीवन में हर कोई शनि की अलग-अलग दशाओं से ग्रसित है और इसे दूर करने के लिए अलग-अलग समय पर विशेष पूजन अर्चन करता है. ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि ऐसे लोगों को यदि शनि ग्रह से मुक्ति चाहिए और शनि भगवान की विशेष कृपा चाहिए तो उनके लिए सावन का महीना एक सुनहरे अवसर का महीना है. जब वह कुछ विशेष पूजन से शनि ग्रह की दृष्टि को दूर कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है. इसका वर्णन अलग-अलग धर्मशास्त्र के पुस्तकों में भी मिलता है.

सावन में सोमवार संग शनिवार का विशेष महत्व : इस बारे में काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि, सावन भगवान शिव का महीना होता है और भगवान शिव शनिदेव के इष्ट माने जाते हैं. इस महीने में जो भी शिव को आधार बनाकर शनिदेव की पूजा करता है, बताए गए नियमों के अनुसार दान करता है. उसे शनि की दशा कभी परेशान नहीं करती है. शनि की दृष्टि से सुरक्षित रखने के लिए धर्म शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं, जिनमें सावन माह में शनि का विशेष महत्व भी बताया गया है. धर्म शास्त्रों में 'व्रत राज' नाम की पुस्तक है. इसके अलावा स्कंद पुराण पुस्तकों में सावन के शनिवार के विशेष महत्व को बताया गया है.

काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर
काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर (Photo credit: ETV Bharat)

काशी में शनिश्चर महादेव की पूजन की मान्यता : पंडित पवन त्रिपाठी कहते हैं कि, हम धर्म नगरी काशी की बात करें तो यहां पर शनि द्वारा स्थापित शिवलिंग का विशेष महत्व है. काशी में शनिश्चर महादेव का मंदिर है, जहां पर जाकर विशेष पूजन अर्चन करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है. सावन में अगर कोई व्यक्ति काशी में मौजूद शनिश्चर महादेव का पूजन करता है, परिसर की परिक्रमा करता है तो उसे खास लाभ मिलता है.

काशी में मौजूद शिवलिंग में पूजा दर्शन करने की अलग प्रक्रिया
• इसके लिए सबसे पहले व्यक्ति को स्नान ध्यान करके मंदिर जाना होगा.
• मंदिर में सात अक्षत कुंज यानी सात जगह थोड़ा-थोड़ा चावल रख कर उस पर तिल के तेल का दीपक जलाकर रखना है.
• इसके बाद मंदिर की 7 बार परिक्रमा करनी है. परिक्रमा के उपरांत 7 जगह पर सात सामग्रियों को रखकर ब्राह्मण को दान देना है.
• दान देने वाले सामग्रियों में काला कपड़ा, काला तिल, काला उड़द, गुड़, लोहे का चाकू, तिल का तेल, नीला फूल और पैरों में पहनने वाले खड़ाऊ या चप्पल शामिल होगा.
• पूजा के दौरान मंदिर में व्यक्ति को दशरथ कृत शनि स्रोत का पाठ करना है. उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति काशी में मौजूद है, वह सावन के महीने में यदि इस तरीके से विशेष शनिदेव की पूजा करता है तो उसके शनि ग्रह की शांति होती है और शनि देव प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.


बाहर रहने वाले इस उपाय से कर सकते हैं पूजन : उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति काशी में मौजूद नहीं है काशी के बाहर अन्य प्रदेश या विदेश में है तो भी वह दूसरे उपाय के जरिए सावन में शनि देव की पूजा दर्शन करके इस फल को प्राप्त कर सकता है. इसमें हमारे धर्मशास्त्र में शनि के वास किए गए पौधों के बारे में बताया गया है, जिसमें पीपल और शमी का वृक्ष शामिल है. वहां भी इस प्रकिया के जरिए पूजा की जा सकती है.

• सबसे पहले व्यक्ति को पीपल के वृक्ष के नीचे जाना होगा. यदि ये भी सम्भव न हो तो घर में ही शमी का वृक्ष गमले में लगाना होगा.
• सावन में शनिवार के दिन शमी के वृक्ष के नीचे सात अक्षत कुंज यानी सात जगह थोड़ा-थोड़ा चावल रखना है.
• इसके बाद एक लोहे की शनि प्रतिमा बनाकर सात में से एक अक्षत कुंज पर शनि के प्रतिमा को रखना है.
• इसमें सात प्रकार के पुष्प, नैवैद्य यानी भोग, धूप, दीप रखना है.
• पूजन के दौरान कच्चा धागा लेकर शमी या पीपल के वृक्ष में सात बार लपेटना है.
• उसके बाद दशरथ कृत शनि स्रोत का पाठ करना है.
• पाठ के उपरांत 7 ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देना है. यदि इस विशेष पूजन को कोई भी व्यक्ति करता है तो शनि देव प्रसन्न होते हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है.


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