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रुस से आए चित्रकार को हो गया था हिमाचल से प्रेम, कुल्लू में ली थी आखिरी सांस...कैनवस पर बनाए हजारों चित्र - NICHOLAS ROERICH

निकोलिस रोरिक की याद में 1967 में रोरिक म्यूजियम की स्थापना की गई थी. इसे रूस और भारत सरकार द्वारा संचालित किया जाता है.

पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ निकोलस रोरिक ( दाएं तरफ)
निकोलस रोरिक (रोरिक आर्ट गैलरी)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 9, 2024, 4:07 PM IST

Updated : Dec 10, 2024, 12:32 PM IST

शिमला: प्रकृति ने हिमाचल की खूबसूरती में हर रंग भरा है. इसकी खूबसूरती के पाश से आजाद होना इतना आसान नहीं है. इसकी खूबसूरत वादियों को घंटों तक एकटक निहारा जा सकता है. कई लोग इस जन्नत की सैर के लिए आए, लेकिन अपने कदम वापस नहीं मोड़े और पहाड़ों की गोद में ही अपनी आखिरी सांस ली. ऐसे ही एक विदेशी को कुल्लू घाटी से प्यार हो गया और वो सदा सदा के लिए यहीं के हो रह गए और कभी अपने वतन नहीं लौटे. उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी यहीं ली थी. ये कोई और नहीं बल्कि रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक थे.

निकोलस रोरिक का जन्म रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 9 अक्टूबर 1874 को हुआ था. निकोलस रोरिक एक रूसी चित्रकार, लेखक, पुरातत्वविद्, थियोसोफिस्ट, दार्शनिक थे. उन्होंने भारत आने से पहले एशिया, यूरोप, अमेरिका महाद्वीप के कई देशों की यात्राएं की. उन्होंने सिक्किम, कश्मीर, लद्दाख, साइबेरिया, मंगोलिया, अल्ताई, चीन, तिब्बत के साथ साथ ट्रांस हिमालय के अज्ञात क्षेत्रों का भी भ्रमण किया.

हिमाचल की लोक संस्कृति से प्रभावित थे निकोलस रोरिक (ETV BHARAT)

1928 में आए थे कुल्लू

निकोलस रोरिक ने संयुक्त राज्य अमेरिका में संपन्न लोगों के बीच काफी ख्याति हासिल की. कई लोगों ने उनके दर्शन की सराहना की. 1923 में रोरिक आध्यात्मिकता की खोज में भारत और उसके पड़ोसी क्षेत्रों की एक विस्तृत खोज पर निकले. 1928 में रोरिक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में पहुंचे. इसके बाद रोरिक ने अपनी यात्राओं को यहीं विराम दिया और कुल्लू की प्राचीन राजधानी नग्गर को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया. नग्गर अपनी धार्मिक मान्यताओं और खूबसूरत वादियों के लिए जाना जाता है.

रोरिक आर्ट गैलरी
रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां और निकोलस रोरिक की पेंटिंग (रोरिक आर्ट गैलरी)

हिमालय के बनाए सात हजार से अधिक चित्र

रोरिक ने नग्गर में हिमालय और कुल्लू की संस्कृति पर कई चित्र बनाए. हिमालय पर करीब 7 हजार से अधिक चित्र भी रोरिक ने यहीं रहकर बनाए. उन्होंने हिमालय के साथ भारत और कुल्लू की संस्कृति को भी अपने कैनवस पर उतारा. 1928 में निकोलस रोरिक ने कुल्लू में उरुस्वती हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की. निकोलस रोरिक भारत की संस्कृति से काफी प्रभावित हुए. इसका उदाहरण रोरिक आर्ट गैलरी में रखी गई कई देवी देवताओं की मूर्तियों और स्थानीय संस्कृति से जुड़े हुए अवशेष बताते हैं. निकोलस सर्वाधिक हिंदू धर्म में भी रुचि रखते थे, लेकिन उन्हें बौद्ध धर्म में कापी रूचि थी. बौद्ध धर्म से जुड़े चित्र आज भी रोरिक आर्ट गैलरी की शोभा बढ़ा रहे हैं.

विश्व युद्ध से पहले बनाया रोरिक पैक्ट

निकोलस रोरिक दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी थे. उन्हें पहले ही दूसरे विश्व युद्ध का आभास हो गया था. इसलिए उन्होंने एक चार्टर लिखा, जिसे बाद में रोरिक पैक्ट के नाम से जाना गया. 15 अप्रैल, 1935 को रोरिक संधि पर संयुक्त राज्य अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों ने हस्ताक्षर किए. यह संधि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा के लिए पहली अंतरराष्ट्रीय स्तर की संधि थी. इस संधि में यह कहा गया कि ऐतिहासिक संग्रहालयों, इमारतों, कला, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संस्थानों को शांति और युद्ध के समय भी संरक्षित किया जाना चाहिए. रोरिक का मानना था कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमे अपनी कला और धरोहरों को संजोकर रखना चहिए.

रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ निकोलस रोरिक (रोरिक आर्ट गैलरी)

1942 में पंडित नेहरू से मुलाकात

निकोलस रोरिक 20 सदी के 40वें दशक में निकोलस रोरिक एक जाना पहचाना नाम बन चुके थे. पंडित नेहरू भी उनसे मिलने नग्गर आए थे. वही, कुल्लू के साहित्यकार अजीत राठौर का कहना है कि, 'निकोलस रोरिक ने भारत आने से पहले यूरोप के कई देशों रूस, यूरोप, मध्य एशिया, मंगोलिया, तिब्बत, चीन, जापान में भ्रमण करते रहे और उन्होंने कई देशों की यात्रा करने के बाद भारत का रुख किया. साल 1942 में अंग्रेजों के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी इनसे मिलने के लिए यहां पर आई थी और उनके साथ भी निकोलस ने भारत के धर्म संस्कृति वह हिमालय के सुंदरता को लेकर चर्चा की थी.बॉलीवुड की पहली महिला अभिनेत्री देविका रानी उनके बेटे की जीवन संगिनी बनी और उनके साथ नग्गर में उन्होंने अपने जीवन का काफी समय व्यतीत किया'

पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ निकोलस रोरिक (दाएं से दूसरे)
पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ निकोलस रोरिक (दाएं से दूसरे) (रोरिक आर्ट गैलरी)

200 बीघा जमीन में बनीं रोरिक आर्ट गैलरी

निकोलस रोरिक की मृत्यु 13 दिसंबर 1947 को कुल्लू में हुई. उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को उन पहाड़ों के सामने एक ढलान पर दफनाया गया. उनके बेटे स्तेवोस्लाव रोरिक ने 1967 में अपने पिता और अपनी पेंटिंग्स, पोर्ट्रेट्स और कीमती चीजों को संजोकर कुल्लू के नग्गर में रोरिक म्यूजियम की शुरुआत की. अब इसे रोरिक आर्ट गैलरी के नाम से जाना जाता है. इसे आज भी रूस और भारत सरकार के द्वारा संचालित किया जाता है. रोरिक आर्ट गैलरी में 200 बीघा जगह है और यहां पर अलग-अलग म्यूजियम भी बनाए गए हैं. रिक हाउस में निकोलस रोरिक की विभिन्न पेंटिंग देखने को मिलती हैं तो वही उसे दौरान उनके परिवार में प्रयोग की गई चीजें भी आज संजोकर रखी गई है.

रोरिक म्यूजियम
रोरिक म्यूजियम (रोरिक आर्ट गैलरी)

आर्ट गैलरी में हैं कई देवी देवताओं का मूर्तियां

इसके अलावा निकोलस की विंटेज कार को भी यहां पर रखा गया है. जिला कुल्लू के पहाड़ी इलाकों से हिंदू धर्म के देवी देवताओं की पुरानी मूर्तियों सहित पुरानी सभ्यता के जो अवशेष मिले हैं. उन्हें भी रोरिक आर्ट गैलरी में संजोकर रखा गया है. इसके अलावा स्थानीय देवी देवताओं की मूर्तियां भी यहां पर स्थापित है, जिन्हें आज भी रोरिक आर्ट गैलरी के द्वारा ही संरक्षित किया जा रहा है. रोरिक आर्ट गैलरी निकोलस रोरिक के घर में ही बनाई गयी है. यहां निकोलस रोरिक की पेंटिंग के साथ उनके परिवार की चीजों को भी बंद कमरों में उसी तरह रखा गया है. जैसे उनके समय में हुआ करती थी. इन कमरों में जाने की किसी की अनुमति नहीं है. इस आर्ट गैलरी के हर कोने में कला ही झलकती है. रोरिक आर्ट गैलरी के दूसरे कोने में उरुस्वती म्यूजियम बनाया गया है. यहां हिमाचल की प्राचीन धरोहरें, मोहरें और कई तरह की कलात्मक चीजें देखने को मिलती हैं.

रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां
रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां (रोरिक आर्ट गैलरी)

1972 में नवरत्न का दर्जा

भारत सरकार ने पुरावशेष एवं कला निधि अधिनियम 1972 के तहत नौ कलाकारों की कृतियों को राष्ट्रीय कला निधि के रूप में मान्यता दी गई. इनमें राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल, जामिनी रॉय, रवींद्रनाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर, अवनींद्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस, निकोलस रोरिक, सैलोज मुखर्जी का नाम शामिल है. इन कलाकारों की कलाकृतियों को देश से बाहर निर्यात करने पर प्रतिबंध है.

वहीं कल्लू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि, 'महान चित्रकार निकोलस रोरीक ने नग्गर में जहां हिमालय की खूबसूरती को कैनवस पर उतारा. तो वहीं यहां की लोक संस्कृति के भी वो काफी कायल हुए. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में भी उन्होंने अपने बेटे के साथ सभी देवी देवताओं की जानकारी ली थी और वो यहां के देवी देवताओं पर भी काफी विश्वास रखते थे. ऐसे में आज भी रोरीक आर्ट गैलरी में हिंदू देवी देवताओं से संबंधित मूर्तियां और अन्य मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं.'

ये भी पढ़ें: हाईकोर्ट की सख्त चेतावनी, एमसी शिमला के आजीविका भवन में दुकान सबलेट की तो सील होगा परिसर

शिमला: प्रकृति ने हिमाचल की खूबसूरती में हर रंग भरा है. इसकी खूबसूरती के पाश से आजाद होना इतना आसान नहीं है. इसकी खूबसूरत वादियों को घंटों तक एकटक निहारा जा सकता है. कई लोग इस जन्नत की सैर के लिए आए, लेकिन अपने कदम वापस नहीं मोड़े और पहाड़ों की गोद में ही अपनी आखिरी सांस ली. ऐसे ही एक विदेशी को कुल्लू घाटी से प्यार हो गया और वो सदा सदा के लिए यहीं के हो रह गए और कभी अपने वतन नहीं लौटे. उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी यहीं ली थी. ये कोई और नहीं बल्कि रूसी चित्रकार निकोलस रोरिक थे.

निकोलस रोरिक का जन्म रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में 9 अक्टूबर 1874 को हुआ था. निकोलस रोरिक एक रूसी चित्रकार, लेखक, पुरातत्वविद्, थियोसोफिस्ट, दार्शनिक थे. उन्होंने भारत आने से पहले एशिया, यूरोप, अमेरिका महाद्वीप के कई देशों की यात्राएं की. उन्होंने सिक्किम, कश्मीर, लद्दाख, साइबेरिया, मंगोलिया, अल्ताई, चीन, तिब्बत के साथ साथ ट्रांस हिमालय के अज्ञात क्षेत्रों का भी भ्रमण किया.

हिमाचल की लोक संस्कृति से प्रभावित थे निकोलस रोरिक (ETV BHARAT)

1928 में आए थे कुल्लू

निकोलस रोरिक ने संयुक्त राज्य अमेरिका में संपन्न लोगों के बीच काफी ख्याति हासिल की. कई लोगों ने उनके दर्शन की सराहना की. 1923 में रोरिक आध्यात्मिकता की खोज में भारत और उसके पड़ोसी क्षेत्रों की एक विस्तृत खोज पर निकले. 1928 में रोरिक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में पहुंचे. इसके बाद रोरिक ने अपनी यात्राओं को यहीं विराम दिया और कुल्लू की प्राचीन राजधानी नग्गर को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया. नग्गर अपनी धार्मिक मान्यताओं और खूबसूरत वादियों के लिए जाना जाता है.

रोरिक आर्ट गैलरी
रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां और निकोलस रोरिक की पेंटिंग (रोरिक आर्ट गैलरी)

हिमालय के बनाए सात हजार से अधिक चित्र

रोरिक ने नग्गर में हिमालय और कुल्लू की संस्कृति पर कई चित्र बनाए. हिमालय पर करीब 7 हजार से अधिक चित्र भी रोरिक ने यहीं रहकर बनाए. उन्होंने हिमालय के साथ भारत और कुल्लू की संस्कृति को भी अपने कैनवस पर उतारा. 1928 में निकोलस रोरिक ने कुल्लू में उरुस्वती हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की. निकोलस रोरिक भारत की संस्कृति से काफी प्रभावित हुए. इसका उदाहरण रोरिक आर्ट गैलरी में रखी गई कई देवी देवताओं की मूर्तियों और स्थानीय संस्कृति से जुड़े हुए अवशेष बताते हैं. निकोलस सर्वाधिक हिंदू धर्म में भी रुचि रखते थे, लेकिन उन्हें बौद्ध धर्म में कापी रूचि थी. बौद्ध धर्म से जुड़े चित्र आज भी रोरिक आर्ट गैलरी की शोभा बढ़ा रहे हैं.

विश्व युद्ध से पहले बनाया रोरिक पैक्ट

निकोलस रोरिक दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी थे. उन्हें पहले ही दूसरे विश्व युद्ध का आभास हो गया था. इसलिए उन्होंने एक चार्टर लिखा, जिसे बाद में रोरिक पैक्ट के नाम से जाना गया. 15 अप्रैल, 1935 को रोरिक संधि पर संयुक्त राज्य अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों ने हस्ताक्षर किए. यह संधि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा के लिए पहली अंतरराष्ट्रीय स्तर की संधि थी. इस संधि में यह कहा गया कि ऐतिहासिक संग्रहालयों, इमारतों, कला, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संस्थानों को शांति और युद्ध के समय भी संरक्षित किया जाना चाहिए. रोरिक का मानना था कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमे अपनी कला और धरोहरों को संजोकर रखना चहिए.

रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ निकोलस रोरिक (रोरिक आर्ट गैलरी)

1942 में पंडित नेहरू से मुलाकात

निकोलस रोरिक 20 सदी के 40वें दशक में निकोलस रोरिक एक जाना पहचाना नाम बन चुके थे. पंडित नेहरू भी उनसे मिलने नग्गर आए थे. वही, कुल्लू के साहित्यकार अजीत राठौर का कहना है कि, 'निकोलस रोरिक ने भारत आने से पहले यूरोप के कई देशों रूस, यूरोप, मध्य एशिया, मंगोलिया, तिब्बत, चीन, जापान में भ्रमण करते रहे और उन्होंने कई देशों की यात्रा करने के बाद भारत का रुख किया. साल 1942 में अंग्रेजों के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी इनसे मिलने के लिए यहां पर आई थी और उनके साथ भी निकोलस ने भारत के धर्म संस्कृति वह हिमालय के सुंदरता को लेकर चर्चा की थी.बॉलीवुड की पहली महिला अभिनेत्री देविका रानी उनके बेटे की जीवन संगिनी बनी और उनके साथ नग्गर में उन्होंने अपने जीवन का काफी समय व्यतीत किया'

पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ निकोलस रोरिक (दाएं से दूसरे)
पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ निकोलस रोरिक (दाएं से दूसरे) (रोरिक आर्ट गैलरी)

200 बीघा जमीन में बनीं रोरिक आर्ट गैलरी

निकोलस रोरिक की मृत्यु 13 दिसंबर 1947 को कुल्लू में हुई. उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया गया और उनकी राख को उन पहाड़ों के सामने एक ढलान पर दफनाया गया. उनके बेटे स्तेवोस्लाव रोरिक ने 1967 में अपने पिता और अपनी पेंटिंग्स, पोर्ट्रेट्स और कीमती चीजों को संजोकर कुल्लू के नग्गर में रोरिक म्यूजियम की शुरुआत की. अब इसे रोरिक आर्ट गैलरी के नाम से जाना जाता है. इसे आज भी रूस और भारत सरकार के द्वारा संचालित किया जाता है. रोरिक आर्ट गैलरी में 200 बीघा जगह है और यहां पर अलग-अलग म्यूजियम भी बनाए गए हैं. रिक हाउस में निकोलस रोरिक की विभिन्न पेंटिंग देखने को मिलती हैं तो वही उसे दौरान उनके परिवार में प्रयोग की गई चीजें भी आज संजोकर रखी गई है.

रोरिक म्यूजियम
रोरिक म्यूजियम (रोरिक आर्ट गैलरी)

आर्ट गैलरी में हैं कई देवी देवताओं का मूर्तियां

इसके अलावा निकोलस की विंटेज कार को भी यहां पर रखा गया है. जिला कुल्लू के पहाड़ी इलाकों से हिंदू धर्म के देवी देवताओं की पुरानी मूर्तियों सहित पुरानी सभ्यता के जो अवशेष मिले हैं. उन्हें भी रोरिक आर्ट गैलरी में संजोकर रखा गया है. इसके अलावा स्थानीय देवी देवताओं की मूर्तियां भी यहां पर स्थापित है, जिन्हें आज भी रोरिक आर्ट गैलरी के द्वारा ही संरक्षित किया जा रहा है. रोरिक आर्ट गैलरी निकोलस रोरिक के घर में ही बनाई गयी है. यहां निकोलस रोरिक की पेंटिंग के साथ उनके परिवार की चीजों को भी बंद कमरों में उसी तरह रखा गया है. जैसे उनके समय में हुआ करती थी. इन कमरों में जाने की किसी की अनुमति नहीं है. इस आर्ट गैलरी के हर कोने में कला ही झलकती है. रोरिक आर्ट गैलरी के दूसरे कोने में उरुस्वती म्यूजियम बनाया गया है. यहां हिमाचल की प्राचीन धरोहरें, मोहरें और कई तरह की कलात्मक चीजें देखने को मिलती हैं.

रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां
रोरिक म्यूजियम में रखी मूर्तियां (रोरिक आर्ट गैलरी)

1972 में नवरत्न का दर्जा

भारत सरकार ने पुरावशेष एवं कला निधि अधिनियम 1972 के तहत नौ कलाकारों की कृतियों को राष्ट्रीय कला निधि के रूप में मान्यता दी गई. इनमें राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल, जामिनी रॉय, रवींद्रनाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर, अवनींद्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस, निकोलस रोरिक, सैलोज मुखर्जी का नाम शामिल है. इन कलाकारों की कलाकृतियों को देश से बाहर निर्यात करने पर प्रतिबंध है.

वहीं कल्लू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि, 'महान चित्रकार निकोलस रोरीक ने नग्गर में जहां हिमालय की खूबसूरती को कैनवस पर उतारा. तो वहीं यहां की लोक संस्कृति के भी वो काफी कायल हुए. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में भी उन्होंने अपने बेटे के साथ सभी देवी देवताओं की जानकारी ली थी और वो यहां के देवी देवताओं पर भी काफी विश्वास रखते थे. ऐसे में आज भी रोरीक आर्ट गैलरी में हिंदू देवी देवताओं से संबंधित मूर्तियां और अन्य मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं.'

ये भी पढ़ें: हाईकोर्ट की सख्त चेतावनी, एमसी शिमला के आजीविका भवन में दुकान सबलेट की तो सील होगा परिसर

Last Updated : Dec 10, 2024, 12:32 PM IST
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