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उत्तराखंड के फ्रेजाइल हिमालय में भूस्खलन की चुनौतियों पर मंथन, ULMC और हिमालयन सोसायटी ऑफ जियोसाइंटिस्ट की पहल - FRAGILE HIMALAYA OF UTTARAKHAND

उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य बेहद संवेदनशील, आपदा के 3 चरणों से निपटने की तैयारी पर चर्चा, सराहनीय सेवाओं के लिए वैज्ञानिक सम्मानित

FRAGILE HIMALAYA OF UTTARAKHAND
भूस्खलन की चुनौतियों पर सेमिनार (PHOTO- ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 14, 2024, 10:15 AM IST

Updated : Nov 14, 2024, 12:38 PM IST

देहरादून: हिमालयन सोसायटी ऑफ जियोसाइंटिस्ट और उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन सेंटर (ULMMC) के संयुक्त तत्वावधान में पर्वतीय क्षेत्रों में रिस्क एसेसमेंट और चैलेंज को लेकर एक राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार आयोजित किया गया. इस दौरान सराहनीय सेवाओं के लिए वैज्ञानिक सम्मानित भी किया गया.

फ्रेजाइल हिमालय में भूस्खलन की चुनौतियों पर मंथन: बुधवार को देहरादून के सर्वे चौक स्थित IRDT सभागार में उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते भूस्खलन और इससे जुड़े समाधानों को लेकर देशभर की टेक कंपनियों के साथ-साथ सीबीआरआई रुड़की सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ताओं ने एक राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में इन सभी समस्याओं और उनके समाधान पर विचार विमर्श किया. यह सेमिनार हिमालयन सोसायटी ऑफ जियोसाइंटिस्ट और आपदा प्रबंधन विभाग के अंतर्गत संचालित उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (ULMMC) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सचिव आपदा प्रबंधन मौजूद रहे.

आपदा सुरक्षित उत्तराखंड का निर्माण पर चर्चा (VIDEO- ETV Bharat)

आपदाओं के लिहाज से संवेदनशील है उत्तराखंड: इस मौके पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आपदाओं के लिहाज से उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य बेहद संवेदनशील हैं. यहां की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि आपदा के तीन चरण होते हैं. सबसे महत्वपूर्ण चरण आपदा पूर्व तैयारी का है. आपदाओं का सामना करने के लिए हमारी जितनी अच्छी तैयारी होगी, आपदा का प्रभाव उतना ही कम होगा. चाहे मानव संसाधनों की क्षमता विकास करना हो, चाहे खोज एवं बचाव से संबंधित आधुनिक उपकरण क्रय करने हों, अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम करना हो, यह सबसे उपयुक्त समय है.

आपदा सुरक्षित उत्तराखंड का निर्माण: कार्यक्रम के बाद ULMMC के निदेशक शांतनु सरकार ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि ULMMC विभिन्न केंद्रीय संस्थानों के साथ मिलकर आपदा सुरक्षित उत्तराखंड के निर्माण की दिशा में कार्य कर रहा है. प्रमुख पर्वतीय शहरों के संपूर्ण जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल तथा जियोलॉजिकल अध्ययन की दिशा में कार्य किया जा रहा है. साथ ही लिडार सर्वे भी किया जा रहा है. जो भी डाटा मिलेगा, उसे रेखीय विभागों के साथ शेयर किया जाएगा. ताकि वे उसके अनुरूप कार्य कर सकें. उन्होंने कहा कि एनडीएमए ने उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलें चिन्हित की हैं. इनमें से पांच अत्यंत जोखिम वाली हैं. उनका भी अध्ययन किया जा रहा है, ताकि भविष्य में उनसे होने वाले संभावित जोखिम को कम किया जा सके.

सराहनीय सेवाओं के लिए वैज्ञानिक सम्मानित: इस मौके पर देशभर में विभिन्न बांधों के निर्माण में सराहनीय योगदान के लिए सुभाष चंद्र गुप्ता को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे पर महज तीन साल में नौ किमी लंबी टनल बनाने वाली एजेंसी के प्रतिनिधि सुरेश कुमार को बेस्ट टनलिंग अवॉर्ड दिया गया. एसके गोयल को बेस्ट माइक्रोपाइलिंग अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
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फ्रेजाइल हिमालय में भूस्खलन की चुनौतियों पर मंथन: बुधवार को देहरादून के सर्वे चौक स्थित IRDT सभागार में उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते भूस्खलन और इससे जुड़े समाधानों को लेकर देशभर की टेक कंपनियों के साथ-साथ सीबीआरआई रुड़की सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ताओं ने एक राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में इन सभी समस्याओं और उनके समाधान पर विचार विमर्श किया. यह सेमिनार हिमालयन सोसायटी ऑफ जियोसाइंटिस्ट और आपदा प्रबंधन विभाग के अंतर्गत संचालित उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (ULMMC) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सचिव आपदा प्रबंधन मौजूद रहे.

आपदा सुरक्षित उत्तराखंड का निर्माण पर चर्चा (VIDEO- ETV Bharat)

आपदाओं के लिहाज से संवेदनशील है उत्तराखंड: इस मौके पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आपदाओं के लिहाज से उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य बेहद संवेदनशील हैं. यहां की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि आपदा के तीन चरण होते हैं. सबसे महत्वपूर्ण चरण आपदा पूर्व तैयारी का है. आपदाओं का सामना करने के लिए हमारी जितनी अच्छी तैयारी होगी, आपदा का प्रभाव उतना ही कम होगा. चाहे मानव संसाधनों की क्षमता विकास करना हो, चाहे खोज एवं बचाव से संबंधित आधुनिक उपकरण क्रय करने हों, अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम करना हो, यह सबसे उपयुक्त समय है.

आपदा सुरक्षित उत्तराखंड का निर्माण: कार्यक्रम के बाद ULMMC के निदेशक शांतनु सरकार ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि ULMMC विभिन्न केंद्रीय संस्थानों के साथ मिलकर आपदा सुरक्षित उत्तराखंड के निर्माण की दिशा में कार्य कर रहा है. प्रमुख पर्वतीय शहरों के संपूर्ण जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल तथा जियोलॉजिकल अध्ययन की दिशा में कार्य किया जा रहा है. साथ ही लिडार सर्वे भी किया जा रहा है. जो भी डाटा मिलेगा, उसे रेखीय विभागों के साथ शेयर किया जाएगा. ताकि वे उसके अनुरूप कार्य कर सकें. उन्होंने कहा कि एनडीएमए ने उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलें चिन्हित की हैं. इनमें से पांच अत्यंत जोखिम वाली हैं. उनका भी अध्ययन किया जा रहा है, ताकि भविष्य में उनसे होने वाले संभावित जोखिम को कम किया जा सके.

सराहनीय सेवाओं के लिए वैज्ञानिक सम्मानित: इस मौके पर देशभर में विभिन्न बांधों के निर्माण में सराहनीय योगदान के लिए सुभाष चंद्र गुप्ता को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे पर महज तीन साल में नौ किमी लंबी टनल बनाने वाली एजेंसी के प्रतिनिधि सुरेश कुमार को बेस्ट टनलिंग अवॉर्ड दिया गया. एसके गोयल को बेस्ट माइक्रोपाइलिंग अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
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Last Updated : Nov 14, 2024, 12:38 PM IST
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