भरतपुर : जिले के राष्ट्रीय अनहद महायोग पीठ के पीठाधीश्वर रुद्रनाथ महाकाल ने बुधवार को भारत-पाक सीमा के नो मेंस लैंड से ऐतिहासिक अमृत कलश यात्रा का शुभारंभ किया. इस यात्रा के लिए उन्होंने पौराणिक महत्व की कृष्णगंगा नदी के जल से अमृत कलश भरा है. यह कलश 3,000 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए सात राज्यों के प्रमुख धार्मिक स्थलों से गुजरकर प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ तक पहुंचेगा. रुद्रनाथ महाकाल भरतपुर जिले के बयान के डांग क्षेत्र में स्थित राष्ट्रीय अनहद महायोग पीठ के पीठाधीश्वर हैं, जो कि इस अमृत कलश यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं.
तीन हजार किलोमीटर की यात्रा : पीठाधीश्वर रुद्रनाथ महाकाल ने बताया कि अमृत कलश यात्रा सात राज्यों- जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से गुजरते हुए 3,000 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. यह यात्रा प्रमुख धार्मिक स्थलों पर रुककर वहां धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करेगी. इसके बाद करीब एक माह का सफर तय कर 11 जनवरी को प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचकर अमृत कलश की स्थापना की जाएगी.
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महत्वपूर्ण पड़ाव और आयोजन
- जम्मू-कश्मीर: मार्तंड सूर्य मंदिर, खीर भवानी मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर.
- हरियाणा: कुरुक्षेत्र (जहां श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया).
- राजस्थान: गोविंद देव जी मंदिर (जयपुर), मदन मोहन मंदिर (करौली), कैला देवी मंदिर.
- उत्तर प्रदेश: वृंदावन में बिहारी जी मंदिर.
- समापन: प्रयागराज के महाकुंभ स्थल पर.
बयाना में यात्रा के स्वागत के लिए ऐतिहासिक बांगड़ फील्ड में एक बड़ी धर्मसभा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के धार्मिक और राजनीतिक नेता शामिल होंगे.
कृष्णगंगा का पौराणिक महत्व : पीठाधीश्वर रुद्रनाथ महाकाल ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश को दैत्यों से बचाया गया, तो उसे सरस्वती नदी के संगम पर सुरक्षित रखा गया. इसी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को चिह्नित करने के लिए कृष्णगंगा नदी के संगम पर स्थित इस स्थान से अमृत कलश को भरा गया है.
नो मेंस लैंड पर ऐतिहासिक पहल : नो मेंस लैंड, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. ऐसे में इस दौरान भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए.
सनातन संस्कृति का संदेश : पीठाधीश्वर रुद्रनाथ महाकाल ने बताया कि अमृत कलश यात्रा सनातन संस्कृति की दिव्यता, भारतीय गौरव और अखंड भारत की भावना को सशक्त करने का प्रतीक है. यह यात्रा धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों को एक नई पहचान देने का प्रयास है. इस यात्रा के माध्यम से देशवासियों को अपनी परंपराओं और विरासत से जोड़ने का संदेश दिया जा रहा है.